भारत में कैंसर अब केवल स्वास्थ्य समस्या नहीं है , बल्कि एक गंभीर सामाजिक और राष्ट्रीय संकट बनता जा रहा है। हाल के अध्ययन ने इस भयावह सच्चाई को उजागर किया है कि देश में हर 100 लोगों में से लगभग 11 लोग अपने जीवनकाल में किसी न किसी रूप में कैंसर से प्रभावित हो सकते हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंता का विषय है, बल्कि सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी की घंटी भी है।
वर्ष 2024 में ही भारत में 15.6 लाख नये कैंसर के मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से करीब 8.74 लाख लोगों की मौत हो गई। इसका अर्थ है कि कैंसर अब केवल शहरी जीवनशैली तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देशभर में तेजी से फैल रहा है। रिपोर्ट में सामने आया कि कुल मरीजों में 51% महिलाएं थीं, हालांकि पुरुषों की तुलना में उनकी मृत्यु दर कम दर्ज की गई।
अध्ययन से जो सबसे चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई, वह उत्तर-पूर्व भारत की है। मिजोरम में कैंसर का जोखिम राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना पाया गया। इसका प्रमुख कारण यहां तंबाकू और शराब का अत्यधिक सेवन माना जा रहा है। यही नहीं, सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं और समय पर जांच न हो पाना भी बड़ी समस्या है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों के पीछे कई प्रमुख वजहें हैं, जिनमें तंबाकू और गुटखा का बढ़ता सेवन, शराब की लत, अस्वस्थ खानपान और फास्ट फूड की ओर झुकाव, प्रदूषण और बदलती जीवनशैली, देर से निदान और इलाज तक समय पर न पहुंच पाना शामिल है। इन कारणों से कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और आम लोगों के जीवन पर गहरा असर डाल रहा है।
यह अध्ययन केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक संदेश है कि समय रहते सतर्क होना होगा। जन-जागरूकता अभियान चलाना, नियमित स्वास्थ्य जांच की आदत डालना और तंबाकू-शराब पर सख्ती से नियंत्रण करना जरूरी है। साथ ही, ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में कैंसर जांच और इलाज की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करानी होगी।
कैंसर को लेकर लापरवाही अब महंगी साबित हो सकती है। हर 11वां भारतीय इस बीमारी के खतरे में है, यह अपने आप में एक भयावह आंकड़ा है। यदि सरकार, समाज और व्यक्ति तीनों स्तर पर मिलकर प्रयास न किए गए तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहराता जाएगा। अब वक्त है जागरूकता, सावधानी और समय पर इलाज की ओर कदम बढ़ाने का।
