फसल क्षतिपूर्ति के लिए 43 हजार से अधिक आवेदन - सत्यापन हुआ मात्र 1650 आवेदन

Jitendra Kumar Sinha
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किसान देश की रीढ़ कहे जाते हैं। जब भी प्राकृतिक आपदा आती है, सबसे पहले इसका असर उनकी मेहनत की फसलों पर पड़ता है। हाल ही में आई बाढ़ और अनियमित बारिश से बिहार के किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है। ऐसे में सरकार द्वारा दी जाने वाली फसल क्षतिपूर्ति ही उनके लिए राहत की उम्मीद है।

जिला में अब तक फसल क्षतिपूर्ति के लिए कुल 43,383 आवेदन प्राप्त हुए हैं। यह संख्या इस बात का प्रमाण है कि कितने किसानों की मेहनत पानी में बह गई है। इनमें से सबसे अधिक आवेदन बाढ़ अनुमंडल से आए हैं। प्रखंडवार स्थिति देखें तो खुसरूपुर प्रखंड पहले स्थान पर है, जबकि घोसवारी प्रखंड दूसरे स्थान पर है। यह बताता है कि इन क्षेत्रों के किसानों को इस आपदा ने सबसे अधिक प्रभावित किया है।

आवेदन की संख्या भले ही हजारों में हो, लेकिन अब तक मात्र 1650 आवेदनों का सत्यापन पूरा हो पाया है। यह स्थिति किसानों की चिंता बढ़ा रही है। समय पर सत्यापन न होने से क्षतिपूर्ति की राशि मिलने में देरी हो सकती है। किसानों को आशंका है कि यदि प्रक्रिया इसी गति से चली, तो बहुत से किसान समय पर लाभ से वंचित रह जाएंगे।

प्रशासन का कहना है कि 5 सितंबर तक आवेदन लिए जाएंगे। इसके बाद 7 या 8 सितंबर तक क्षतिपूर्ति राशि किसानों के खातों में भेजे जाने की संभावना है। हालांकि, यह तभी संभव होगा जब सत्यापन की गति तेज हो।

किसानों की सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि सरकार त्वरित कार्रवाई कर उनके खातों में सहायता राशि जल्द पहुंचाए। समय पर क्षतिपूर्ति न मिलने से वे अगली फसल की बुआई नहीं कर पाएंगे। यह स्थिति उनकी आर्थिक मुश्किलों को और बढ़ा सकती है। इसके लिए प्रशासन को चाहिए कि सत्यापन की प्रक्रिया में अधिक टीमों की तैनाती करे। आवेदन की जांच तकनीकी साधनों से की जाए, ताकि समय की बचत हो सके। किसानों को क्षतिपूर्ति प्रक्रिया की सटीक और पारदर्शी जानकारी मिले, ताकि अफवाह और भ्रम की स्थिति न बने।

फसल क्षतिपूर्ति योजना किसानों के लिए जीवनरेखा साबित हो सकती है, लेकिन यदि इसमें देरी हुई तो इसका वास्तविक उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। किसानों ने मेहनत से जो बीज बोए थे, वे बाढ़ में बह गए, अब उनकी उम्मीद सरकार की त्वरित कार्रवाई पर टिकी है। समय पर राहत मिलना ही उनकी जिन्दगी और खेती दोनों को आगे बढ़ा सकेगा।



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