भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ हर नागरिक का वोट बेहद कीमती है, क्योंकि यह न केवल सरकारें बनाता है बल्कि देश के भविष्य की दिशा तय करता है। परंतु हाल के वर्षों में यह सवाल उठने लगा था कि क्या मतदाता सूची वास्तव में इतनी पारदर्शी और अद्यतन है कि हर योग्य नागरिक को वोट देने का मौका मिले और कोई भी फर्जी नाम शामिल न हो? इसी पृष्ठभूमि में निर्वाचन आयोग (ECI) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है “विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR)” को पूरे देश में लागू करने का फैसला।
विशेष गहन पुनरीक्षण का अर्थ है ‘मतदाता सूची का व्यापक सत्यापन’, जिसमें किए जाते हैं मृत मतदाताओं के नाम हटाना, फर्जी या दोहराए गए नामों को चिन्हित कर उन्हें डिलीट करना, ऐसे नागरिकों के नाम जोड़ना जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हैं, प्रवासी या स्थानांतरित मतदाताओं की जानकारी अपडेट करना, महिला मतदाताओं, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों का विशेष सत्यापन। SIR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता सूची बिल्कुल साफ-सुथरी और अद्यतन हो, ताकि चुनाव में किसी प्रकार की अनियमितता की गुंजाइश न बचे।
इस अभियान की शुरुआत बिहार से हुई है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पद संभालने के बाद सबसे पहले बिहार में इस प्रयोग को शुरू करने का फैसला किया। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले SIR को लागू किया गया ताकि मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी न रह जाए। विपक्षी दलों ने इस कदम पर कई सवाल उठाए। उनका आरोप था कि यह प्रक्रिया उनके वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है। इसके बावजूद आयोग ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया और अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की तैयारी है। बिहार में SIR के अनुभव ने आयोग को यह भरोसा दिलाया है कि इस मॉडल को पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
देशभर में इस मुहिम को लागू करने के लिए 10 सितंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) की बैठक बुलाई गई है। यह बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक होगी क्योंकि यह तय किया जाएगा कि SIR को चरणबद्ध तरीके से कब और कैसे लागू किया जाए। राज्यों को तकनीकी और मानव संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से सत्यापन की व्यवस्था बनाई जाएगी। ज्ञानेश कुमार की यह तीसरी बड़ी बैठक होगी, जिसमें उनका फोकस चुनाव सुधार को तेज गति देने पर रहेगा।
आज के समय में SIR केवल कागजी कार्यवाही नहीं रह गई है। निर्वाचन आयोग ने कई तकनीकी नवाचार किए हैं। NVSP पोर्टल (National Voter Service Portal) के माध्यम से ऑनलाइन सत्यापन, Voter Helpline App से घर बैठे विवरण अपडेट करने की सुविधा, आधार लिंकिंग के माध्यम से डुप्लीकेट एंट्री रोकना, AI आधारित डाटा एनालिटिक्स से फर्जी वोटर पहचानना, ब्लॉकचेन जैसी उभरती तकनीकों पर भी भविष्य में विचार किया जा सकता है। तकनीकी हस्तक्षेप से यह प्रक्रिया पारदर्शी और तेज हो रही है, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी।
SIR के राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने से कई राजनीतिक दलों में हलचल है। विपक्ष के कुछ दल इसे सत्ताधारी दल का वोटर सूची में हेरफेर का प्रयास मानते हैं। सत्तापक्ष का तर्क है कि यह कदम निष्पक्ष चुनाव की गारंटी देगा और लोकतंत्र को और मजबूत करेगा। जबकि आम मतदाता इसे स्वागत योग्य कदम मानते हैं क्योंकि इससे उनका वोट सुरक्षित रहेगा। लोकतंत्र में पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि इस तरह की कवायद को राजनीतिक हथियार न बनाया जाए।
SIR को पूरे देश में लागू करना आसान नहीं है। भारत के विशाल आकार और विविधता को देखते हुए हर घर तक पहुंचना कठिन होगा। बड़ी संख्या में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की आवश्यकता होगी। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में तकनीकी जागरूकता कम होने से ऑनलाइन सत्यापन मुश्किल हो सकता है। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दल प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्वाचन आयोग को कठोर दिशा-निर्देश और पारदर्शी मॉनिटरिंग व्यवस्था बनानी होगी।
किसी भी सुधार की सफलता का सबसे बड़ा आधार होता है जन भागीदारी। आयोग को व्यापक SVEEP (Systematic Voters’ Education and Electoral Participation) अभियान चलाना होगा। सोशल मीडिया, रेडियो, टीवी, मोबाइल मैसेजिंग के माध्यम से लोगों को जागरूक करना होगा। कॉलेज, पंचायत, स्वयंसेवी संगठनों को जोड़कर युवा मतदाताओं को प्रेरित करना होगा। जब नागरिक खुद अपने नाम की जांच करेंगे, तभी मतदाता सूची वास्तव में सही और त्रुटिहीन बन पाएगी।
भारत में महिला मतदाता और युवा वोटर लोकतंत्र की धुरी हैं। महिलाएं जिनका विवाह के बाद नाम पुराने पते पर ही रह जाता है। SIR इस समस्या को हल कर सकती है। 18 वर्ष की आयु पूरी करते ही उनका नाम जोड़ा जाना चाहिए। शहरों में काम करने वाले मजदूरों का नाम सही जगह दर्ज होना बेहद जरूरी है। इन वर्गों के सटीक पंजीकरण से वास्तविक मतदान प्रतिशत बढ़ेगा।
कई लोकतांत्रिक देशों में मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण सामान्य प्रक्रिया है। अमेरिका में ‘Voter Registration Drive’ अभियान चलता है। यूनाइटेड किंगडम में हर साल ‘Annual Canvass’ होता है। ऑस्ट्रेलिया में अनिवार्य पंजीकरण और वोटिंग है। भारत में इस तरह का राष्ट्रीय स्तर पर SIR कदम इसे वैश्विक मानकों के और करीब ले जाएगा।
SIR केवल तकनीकी कवायद नहीं है, यह भारतीय लोकतंत्र में विश्वास को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है। इससे फर्जी वोटिंग, डुप्लीकेट नाम और मृत व्यक्तियों के नाम से होने वाली गड़बड़ियों पर रोक लगेगी। आम नागरिक को भरोसा होगा कि उसका वोट गिने जाने योग्य है। राजनीतिक दलों के लिए भी यह एक पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव की गारंटी होगी। यदि यह प्रक्रिया सफल रही, तो भारत का चुनाव आयोग दुनिया के सबसे भरोसेमंद और आधुनिक चुनाव संस्थानों में गिना जाएगा।
