आभा सिन्हा, पटना
भारतवर्ष और इसके सांस्कृतिक विस्तार बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत व श्रीलंका में फैले शक्तिपीठों की परंपरा सनातन धर्म का आधार स्तंभ रही है। यह केवल तीर्थ नहीं है, बल्कि चेतना के वह केंद्र हैं जहाँ साक्षात देवी की शक्ति वास करती है। शक्ति उपासना के इसी दिव्य क्रम में एक पवित्र और रहस्यमयी स्थान आता है — सुगंधा-सुनंदा शक्तिपीठ, जो आज के बांग्लादेश के बरिसल जिले के शिकारपुर नामक स्थान पर स्थित है।
यह स्थान इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहीं देवी सती की नासिका गिरी थी। यही कारण है कि इस शक्तिपीठ को विशेष मान्यता प्राप्त है। यहाँ देवी को "सुनंदा" और भगवान शिव को "त्र्यंबक" के नाम से जाना जाता है। यह पावन स्थल, श्रद्धालुओं के लिए आस्था, तप, ध्यान और अध्यात्म का केंद्र है।
शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा पौराणिक है। यह कथा देवी पुराण, कालिका पुराण और अन्य अनेक ग्रंथों में मिलता है।
दक्ष प्रजापति ने जब शिव को आमंत्रित किए बिना यज्ञ किया, तो उनकी पुत्री सती ने पिता के अपमान पर आत्मदाह कर लिया। इससे व्यथित शिव ने सती के शव को अपने कंधे पर उठा कर तांडव करना आरंभ किया। ब्रह्मांड को संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया।
इन्हीं टुकड़ों के जहाँ-जहाँ गिरने से जो स्थान बने, वे शक्तिपीठ कहलाए। सुगंधा-सुनंदा शक्तिपीठ उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जहाँ माँ सती की नासिका गिरी थी।
"सुगंधा" और "सुनंदा" नामों में ही वह माधुर्य और कोमलता है, जो इस शक्तिपीठ को विशेष बनाता है। माँ सुनंदा को सौंदर्य, कोमलता और सुगंधित चेतना की देवी माना जाता है।
माँ का यह स्वरूप विशेष रूप से स्त्री सौंदर्य, पवित्रता, और अंतःकरण की शुद्धता का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता है कि यहाँ माँ की पूजा करने से मानसिक तनाव, नेत्र दोष, मुख रोग और सौंदर्य से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
बांग्लादेश के बरिसल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ शिकारपुर गांव में आता है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण अत्यंत मनोरम है। सोंध नदी के किनारे बसा यह स्थल, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है।
सोंध नदी की निर्मल धारा, हरे-भरे वृक्षों के बीच स्थित यह मंदिर मन को एक अलग ही चेतना से जोड़ देता है। भक्तों का मानना है कि यहाँ का वातावरण ही भक्तों को समाधिस्थ अवस्था में ले जाता है।
सुगंधा मंदिर का निर्माण बेहद प्राचीन है, किंतु इसे कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। मंदिर की बनावट सरल लेकिन आभामंडल अत्यंत प्रभावशाली है। गर्भगृह में माँ सुनंदा की मूर्ति स्थापित है, जिसके पास शिव के त्र्यंबक रूप की भी पूजा होती है।
यहाँ विशेष रूप से सुगंधित पुष्पों, इत्र, धूप और चंदन से पूजन किया जाता है। मान्यता है कि माँ सुनंदा को सुगंध प्रिय है, इसलिए हर दिन मंदिर में इत्र से स्नान, चंदन का लेप और पुष्पों की माला अर्पित किया जाता है।
नवरात्रि में पूरे नौ दिन विशेष पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ, और रात्रि जागरण होता है। माघ पूर्णिमा में बड़ी संख्या में भक्त गंगा स्नान कर इस शक्तिपीठ में दर्शन करते हैं। सुगंधा उत्सव- एक वार्षिक उत्सव है जिसमें स्थानीय लोग पारंपरिक नृत्य, गीत और धार्मिक जुलूसों के माध्यम से देवी की स्तुति करते हैं।
जहाँ देवी के हर शक्तिपीठ में एक भैरव स्वरूप होते हैं, वहीं यहाँ के भैरव हैं त्र्यंबक। त्र्यंबक, यानि तीन नेत्रों वाले शिव – ज्ञान, शक्ति और समय के अधिपति। यहाँ एक छोटा मंदिर त्र्यंबक भैरव को समर्पित है, जहाँ तांत्रिक साधनाएँ भी किया जाता है।
श्रद्धालु त्र्यंबक की पूजा विशेष रूप से रोग निवारण, शत्रु बाधा और तांत्रिक संकटों से मुक्ति के लिए करते हैं।
यद्यपि यह शक्तिपीठ आज बांग्लादेश में स्थित है, परंतु भारतीय श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान एक पवित्र तीर्थ है। हर वर्ष पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा से हजारों लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
कहा जाता है कि जो सच्चे मन से माँ की आराधना करता है, उसे रात्रि में सुगंधित पुष्पों की वर्षा वाले स्वप्न आता है। यह माँ की कृपा का संकेत माना जाता है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि यहाँ देवी के पूजन से नाक, गला, और श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियाँ ठीक होती है। स्त्रियाँ विशेष रूप से माँ सुनंदा से सौंदर्य और सौम्यता की कृपा पाने के लिए आराधना करती हैं।
“सुगंधा-सुनंदा शक्तिपीठ” को तंत्र साधना का एक प्राचीन केंद्र माना जाता है। कहा जाता है कि आदिशक्ति की ऊर्जा यहाँ विशेष रूप से सक्रिय है। कुछ विशेष साधक अष्टमी की रात को यहाँ त्र्यंबक भैरव के मंदिर में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं।
चूँकि यह मंदिर अब बांग्लादेश में है, वहाँ की सरकार और स्थानीय हिन्दू संगठन इस पवित्र स्थल की देखरेख करते हैं। हाल के वर्षों में यहाँ सुरक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है। बांग्लादेश सरकार की ओर से भी इस ऐतिहासिक शक्तिपीठ को एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दिए जाने की प्रक्रिया चल रही है।
धार्मिक विद्वानों और पंडितों का मत है कि माँ सुनंदा का यह स्थल मानसिक शुद्धता और आत्मिक सौंदर्य की साधना का आदर्श स्थान है।
भारतीय धर्मशास्त्रों में यह शक्तिपीठ मन और इंद्रियों की संयम साधना के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह वह स्थान है जहाँ देवी के साक्षात दर्शन की अनुभूति संभव है।
आज जब आध्यात्मिक पर्यटन का चलन बढ़ रहा है, सुगंधा-सुनंदा शक्तिपीठ उस दिशा में एक अनूठा स्थल है। यहाँ आकर व्यक्ति केवल धार्मिक अनुभव नहीं करता, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और श्रद्धा का सम्मिलन भी देखता है।
माँ सुनंदा का मंत्र और स्तुति है :-
मंत्र:
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सुनंदायै नमः।"
स्तुति:
"शुभ्रवर्णा सुगंधिता, सौरभ्य विमला सदा।
नासिकास्थित सुन्दरी, नमामि त्वां सुनंदिका॥"
सुगंधा-सुनंदा शक्तिपीठ केवल एक तीर्थ नहीं है, बल्कि आत्मा को सुगंधित करने वाला एक अनूठा स्थल है। यह वह भूमि है जहाँ माँ की नासिका गिरी, सुगंध बसी, और भक्तों को शुद्धता का वरदान मिला। माँ सुनंदा की पूजा यह सिखाता है कि सौंदर्य केवल बाहरी नहीं होता है, बल्कि आंतरिक शुद्धता, संयम, और भक्ति ही सच्ची सुंदरता है।
