गंडकी शक्तिपीठ (देवी सती के मस्तक अर्थात गंडस्थल (कनपटी गिरी) गिरा था)

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

भारत और नेपाल की धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा इतनी गहरी है कि यहाँ की नदियाँ, पर्वत, मंदिर और शक्तिपीठ केवल भौगोलिक स्थल नहीं है, बल्कि आस्था के विराट प्रतीक हैं। इन्हीं में से एक है गंडकी शक्तिपीठ, जो नेपाल के पोखरा के पास स्थित मुक्तिनाथ मंदिर के पवित्र क्षेत्र में विद्यमान है। यह शक्तिपीठ अपनी अलौकिकता, शक्ति और मोक्षदायी महिमा के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।

गंडकी शक्तिपीठ का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहाँ गंडकी माता का मस्तक अर्थात गंडस्थल (कनपटी गिरी) प्रतिष्ठित माना जाता है। देवी की शक्ति यहाँ गंडकी चण्डी के रूप में पूजित हैं और उनके भैरव चक्रपाणि माने जाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे, तो वही स्थल शक्तिपीठ कहलाए। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 51 प्रमुख शक्तिपीठ माने जाते हैं, जिनमें से एक है “गंडकी शक्तिपीठ”।

“गंडकी शक्तिपीठ” नेपाल के गंडकी प्रदेश में स्थित है। गंडकी नदी स्वयं विष्णुप्रिय नदी कही जाती है क्योंकि यही एकमात्र नदी है जहाँ से शालिग्राम शिला प्राप्त होता है। गंडकी माता का मस्तक यहाँ विराजमान है, इसलिए इसे आस्था और शक्ति दोनों का संगम माना जाता है।

गंडकी नदी नेपाल से निकलकर बिहार में गंगा में मिलती है। यह नदी हिमालय की गोद से बहती हुई अनेक धार्मिक स्थलों को स्पर्श करती है। शालिग्राम शिला केवल गंडकी नदी से ही प्राप्त होती है। यह शालिग्राम भगवान विष्णु के स्वरूप माना जाता है। स्कंदपुराण और पद्मपुराण में गंडकी को विष्णु का प्रिय क्षेत्र बताया गया है।

गंडकी नदी का उद्गम स्थल मुक्तिनाथ क्षेत्र के पास माना जाता है। मुक्तिनाथ स्वयं मोक्षदायिनी शक्ति का स्थल है और यहाँ की गंडकी धारा आत्मशुद्धि का अद्वितीय साधन माना जाता है।

मुक्तिनाथ मंदिर नेपाल के मुस्तांग जिला में समुद्रतल से लगभग 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू और बौद्ध दोनों धर्मावलंबियों के लिए पवित्र स्थल है। यहाँ 108 दिव्य जलधाराएँ हैं, जिनमें स्नान करने से पापों का नाश होता है।

मुक्तिनाथ क्षेत्र में ही “गंडकी शक्तिपीठ” स्थित है। यहाँ देवी गंडकी चण्डी के रूप में पूजित हैं। उनके भैरव चक्रपाणि हैं, जो भक्तों की रक्षा करते हैं।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, माता सती के शरीर का गंडस्थल (कनपटी गिरी/मस्तक) इस स्थान पर गिरा था। इसी कारण से इसे “गंडकी शक्तिपीठ” कहा जाता है। यहाँ देवी की पूजा गंडकी चण्डी नाम से की जाती है। कथाओं में उल्लेख है कि जो भी भक्त इस शक्तिपीठ के दर्शन कर सच्चे मन से साधना करता है, उसे जीवन में शक्ति और अंत समय में मोक्ष प्राप्त होता है।

गंडकी प्रदेश नेपाल का एक प्रमुख प्रशासनिक क्षेत्र है। पोखरा इसका मुख्य नगर है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्वविख्यात है। गंडकी प्रदेश में अनेक मंदिर, बौद्ध विहार और प्राकृतिक स्थलों का संगम है। यह क्षेत्र हिन्दू और बौद्ध धर्म के साझा सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है।

“गंडकी शक्तिपीठ” में देवी की उपासना विशेषकर नवरात्रि में किया जाता है। साधक यहाँ शक्ति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति के लिए साधना करते हैं।

“गंडकी शक्तिपीठ” के भैरव चक्रपाणि की उपासना से संकटों का निवारण होता है। भक्त मानते हैं कि चक्रपाणि सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर कर साधक की रक्षा करते हैं।

“गंडकी शक्तिपीठ” और “मुक्तिनाथ” दोनों ही मोक्षदायी स्थलों में गिना जाता है। यहाँ आकर श्रद्धालु शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि का अनुभव करता है। गंडकी की धारा और मुक्तिनाथ के दर्शन से जीवन की बंधनाओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

हर वर्ष हजारों भारतीय और नेपाली श्रद्धालु “गंडकी शक्तिपीठ” और “मुक्तिनाथ मंदिर” के दर्शन करने आते हैं। यहाँ की यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन आस्था इसे सहज बना देती है। गंडकी प्रदेश अपने हिमालयी नजारों, पोखरा झीलों और पर्वतीय सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। धार्मिक आस्था के साथ यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी यात्रियों को आकर्षित करती है।

नवरात्रि में देवी गंडकी चण्डी की विशेष पूजा होती है। वैशाख पूर्णिमा में मुक्तिनाथ क्षेत्र में बौद्ध और हिन्दू दोनों मिलकर पर्व मनाते हैं। छठ पूजा में गंडकी नदी के किनारे भी छठ पर्व का आयोजन होता है।

“गंडकी शक्तिपीठ” केवल एक मंदिर या तीर्थस्थल नहीं है, बल्कि यह शक्ति, भक्ति और मोक्ष का प्रतीक है। यह बताता है कि शक्ति और भक्ति का संगम ही मनुष्य को जीवन के उच्चतम सत्य तक पहुँचा सकता है। गंडकी माता की उपासना जीवन को साहस और आस्था से भर देता है।

“गंडकी शक्तिपीठ”, मुक्तिनाथ और गंडकी नदी तीनों मिलकर आस्था, शक्ति और मोक्ष की त्रिवेणी हैं। यह स्थल सिखाता है कि शक्ति की साधना जीवन में साहस देती है। भक्ति ईश्वर से जोड़ती है और मोक्ष की प्राप्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करती है।



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