बिहार सरकार ने राज्य के छह प्रमुख शहरों पटना, गया, छपरा, सहरसा, भागलपुर और बेगूसराय में गैस (एलपीजी) आधारित “शवदाह गृह” स्थापित करेगी। यह आधुनिक और पर्यावरण हितैषी कदम परंपरागत लकड़ी आधारित अंतिम संस्कार व्यवस्था से होने वाले प्रदूषण और संसाधनों के अत्यधिक दोहन को रोकने में सहायक सिद्ध होगा।
उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की उपस्थिति में नगर विकास एवं आवास विभाग और कोयम्बटूर स्थित ईशा फाउंडेशन के बीच समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया गया। इस परियोजना के लिए संबंधित नगर निगमों द्वारा प्रत्येक शहर में एक एकड़ भूमि ईशा फाउंडेशन को दी जाएगी। भूमि 33 वर्षों की लीज पर महज 1 रुपये की टोकन राशि पर उपलब्ध कराई जाएगी।
अभी बिहार के अधिकांश नगर निकायों में पारंपरिक रूप से लकड़ी से शवदाह की प्रक्रिया होती है। इसके कारण अत्यधिक लकड़ी की खपत होती है, जिससे वनों का दोहन बढ़ता है। वायु प्रदूषण फैलता है, क्योंकि लकड़ी जलने से भारी मात्रा में कार्बन और धुआं निकलता है। शवदाह स्थलों पर स्वच्छता और आधुनिक सुविधाओं का अभाव रहता है, जिससे शोकाकुल परिवारों को असुविधा होती है।
विद्युत शवदाह गृह पहले भी बनाए गए हैं, लेकिन उसका रखरखाव और तकनीकी प्रबंधन चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। इसीलिए गैस आधारित शवदाह गृह एक व्यावहारिक और पर्यावरण अनुकूल विकल्प के रूप में सामने आ रहा है।
तमिलनाडु में ईशा फाउंडेशन अब तक करीब 15 गैस आधारित शवदाह गृह सफलतापूर्वक स्थापित और संचालित कर चुका है। संगठन का अनुभव और तकनीकी दक्षता बिहार में भी इस परियोजना को सफल बनाने में मदद करेगी।
इस योजना से वन संपदा की रक्षा होगी, क्योंकि लकड़ी की आवश्यकता न के बराबर रहेगी। स्वच्छ वातावरण बनेगा और कार्बन उत्सर्जन कम होगा। शवदाह की प्रक्रिया अधिक सम्मानजनक, तेज और सुरक्षित होगी। अंतिम संस्कार स्थलों पर बुनियादी सुविधाएं और साफ-सफाई बनी रहेगी। स्थानीय निकायों पर रखरखाव का अतिरिक्त बोझ कम होगा।
यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है, बल्कि यह आधुनिकता और परंपरा के संतुलन की मिसाल भी है। गैस आधारित शवदाह गृह से लोगों को अधिक स्वच्छ, सुरक्षित और सुविधाजनक विकल्प मिलेगा। बिहार सरकार और ईशा फाउंडेशन की यह साझेदारी आने वाले समय में अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकती है।
