गूगल को लगा 3744 करोड़ रुपए का जुर्माना

Jitendra Kumar Sinha
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डिजिटल युग में डेटा ही नई पूंजी है। ऐसे में जब कोई बड़ी टेक कंपनी यूजर्स की निजता का उल्लंघन करती है, तो यह केवल एक कानूनी मामला नहीं है, बल्कि उपभोक्ताओं के भरोसे पर चोट भी है। हाल ही में अमरीका की संघीय ज्यूरी ने अल्फाबेट के स्वामित्व वाली गूगल पर 425 मिलियन डॉलर यानि लगभग 3744 करोड़ रुपए का भारी जुर्माना लगाया है।

यह विवाद करीब आठ साल पुराना है। आरोप था कि गूगल ने अपने "वेब एंड ऐप एक्टिविटी" फीचर को बंद करने के बाद भी मोबाइल डिवाइस से यूजर्स का डेटा एकत्र करना जारी रखा। इसका मतलब यह है कि यूजर को लगता था कि उसकी लोकेशन और ऑनलाइन गतिविधियां सुरक्षित हैं, लेकिन गूगल बैकग्राउंड में उन्हें ट्रैक करता रहा।

जुलाई 2020 में दायर इस मुकदमे में लगभग 9.8 करोड़ यूजर्स और 17.4 करोड़ डिवाइस शामिल बताए जाते हैं। वादियों ने 31 बिलियन डॉलर से अधिक का दावा किया था, हालांकि अदालत ने 425 मिलियन डॉलर का हर्जाना तय किया। यह राशि भी इतनी बड़ी है कि टेक दिग्गजों को एक स्पष्ट संदेश देती है कि उपभोक्ता डेटा के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

गूगल ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह अदालत के इस निर्णय को चुनौती देगा। कंपनी का कहना है कि उसने यूजर्स की प्राइवेसी को प्राथमिकता दी है और उनके डेटा की सुरक्षा को लेकर कई सख्त कदम उठाए हैं।

यह मामला केवल गूगल तक सीमित नहीं है। आज लगभग हर इंटरनेट कंपनी डेटा कलेक्शन और ट्रैकिंग करती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लेकर शॉपिंग ऐप तक, सभी यूजर्स के व्यवहार को समझने और टारगेटेड विज्ञापन दिखाने के लिए डेटा का उपयोग करते हैं। सवाल यह है कि क्या यूजर्स को वास्तव में पता है कि उनका डेटा कहां और कैसे इस्तेमाल हो रहा है?

यह फैसला एक मिसाल है कि टेक दिग्गजों को भी यूजर्स की गोपनीयता का सम्मान करना होगा। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों से कंपनियां अधिक पारदर्शिता बरतने के लिए मजबूर होगी। साथ ही, यह उपभोक्ताओं को भी जागरूक करता है कि वे अपने डिवाइस में प्राइवेसी सेटिंग्स को समय-समय पर जांचें और केवल आवश्यक अनुमतियां ही दें।

गूगल पर लगाया गया यह जुर्माना डेटा प्राइवेसी के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक फैसला है। यह डिजिटल कंपनियों को याद दिलाता है कि तकनीक की ताकत के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती है। आने वाले समय में उम्मीद की जा सकती है कि इस तरह के फैसले उपभोक्ता हितों की रक्षा करेंगे और ऑनलाइन दुनिया को अधिक सुरक्षित बनाएंगे।




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