शिक्षा समाज के विकास की सबसे मजबूत नींव है। यदि समाज के कमजोर तबके को शिक्षा के अवसर मिलता है तो न केवल उनका भविष्य उज्जवल होता है बल्कि देश की तरक्की की रफ्तार भी तेज होती है। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग ने एक अहम फैसला लिया है। हाल ही में विभागीय सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में दलित और आदिवासी बच्चों के लिए 10 नये छात्रावासों की मंजूरी दी गई है।
बिहार सरकार की इस योजना का सबसे बड़ा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दलित और आदिवासी समुदाय के बच्चों को पढ़ाई के लिये सुरक्षित और सुविधाजनक माहौल मिले। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों से आने वाले इन बच्चों के लिए छात्रावास शिक्षा का सबसे बड़ा सहारा बनता है। घर से दूर रहकर पढ़ाई करने की बाध्यता के बीच यह छात्रावास बच्चों को एक बेहतर शैक्षणिक वातावरण देगा।
बैठक में तय किया गया है कि मुजफ्फरपुर में चार, पटना में दो और दरभंगा, बेगूसराय, बक्सर और खगड़िया में एक-एक छात्रावास बनाये जायेंगे। इससे हजारों बच्चों को सीधा लाभ मिलेगा। खासकर उन परिवारों के बच्चों को जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और जो पढ़ाई जारी रखने में असमर्थ हो जाते हैं।
सरकार की ओर से बनने वाले इन छात्रावासों में बच्चों को रहने और खाने की सुविधा तो मिलेगी ही, साथ ही पुस्तकालय, पढ़ाई के लिए अलग कक्ष और खेल-कूद की सुविधाएं भी उपलब्ध कराने पर जोर रहेगा। विभाग की मंशा यह है कि बच्चे न सिर्फ पढ़ाई में अच्छे हों बल्कि संपूर्ण व्यक्तित्व विकास भी कर सकें।
दलित और आदिवासी समाज लंबे समय से शिक्षा की कमी और सामाजिक असमानता की मार झेलता रहा है। लेकिन सरकार के ऐसे फैसले इस स्थिति को बदलने की दिशा में मजबूत कदम साबित हो सकते हैं। जब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी तो वे आगे चलकर रोजगार और सामाजिक नेतृत्व की राह पर भी मजबूती से खड़ा होगा।
बैठक में यह भी चर्चा हुई कि आने वाले समय में राज्यभर में और अधिक छात्रावास खोले जायेंगे ताकि हर जिले के बच्चों को शिक्षा का समान अवसर मिल सके। विभाग शिक्षा से जुड़े अन्य सुधारों और योजनाओं पर भी काम कर रहा है, जिससे अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के बच्चों को, मुख्यधारा से जोड़ने का सपना साकार हो सके।
दलित और आदिवासी बच्चों के लिये नये छात्रावासों की मंजूरी केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है। इससे न सिर्फ शिक्षा का प्रसार होगा, बल्कि उन बच्चों के सपनों को भी पंख मिलेंगे जो आज तक संसाधनों की कमी के कारण अधूरा रह जाता था।
