कुरुक्षेत्र, जिसे महाभारत की भूमि और गीता के उपदेश स्थल के रूप में जाना जाता है, एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय “गीता महोत्सव” (आईजीएम) का गवाह बनेगा। इस वर्ष यह महोत्सव 15 नवंबर से 5 दिसंबर तक आयोजित किया जाएगा। महोत्सव का यह 10वां संस्करण है और इसमें मुख्य कार्यक्रम 24 नवंबर से एक दिसंबर तक होगा। यह आयोजन न केवल भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रदर्शन है, बल्कि विश्व पटल पर गीता के सार्वभौमिक संदेश को फैलाने का भी प्रयास है।
भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला का मार्गदर्शक है। इसमें कर्म, धर्म, भक्ति और ज्ञान का संतुलन साधने की शिक्षा दी गई है। यही कारण है कि यह ग्रंथ न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में दर्शन और जीवन प्रबंधन का आधार माना जाता है। महोत्सव का उद्देश्य इसी अमर संदेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा करना है।
इस वर्ष के आयोजन में 40 से अधिक देशों के विद्वान और राजदूत शामिल होंगे। वे न केवल गीता के दर्शन पर अपने विचार रखेंगे, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी करीब से समझेंगे। इससे भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद और आपसी समझ बढ़ेगा। गीता महोत्सव को एक प्रकार का "वसुधैव कुटुंबकम" का जीवंत उदाहरण कहा जा सकता है।
महोत्सव में गीता पाठ, योग सत्र, सांस्कृतिक कार्यक्रम, शास्त्रीय संगीत-नृत्य प्रस्तुतियां और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियां होगी। इसके साथ ही डिजिटल प्रदर्शनी और गीता से जुड़े साहित्यिक विमर्श भी आयोजित किए जाएंगे। विशेष रूप से कुरुक्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहरों को सजाकर प्रस्तुत किया जाएगा ताकि आने वाले दर्शक भारत की प्राचीन परंपरा और आधुनिकता का संगम देख सके।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव भारत की आत्मा और उसकी प्राचीन ज्ञान परंपरा को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है। यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवता के लिए गीता के सार्वभौमिक संदेश को फैलाने का माध्यम है। इस वर्ष का महोत्सव इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह न केवल कुरुक्षेत्र, बल्कि पूरे भारत और दुनिया को आध्यात्मिक एकता के सूत्र में पिरोने का अवसर देगा।
