बिहार की पहचान खेती-किसान से जुड़ा हुआ है। धान, गेंहू, मक्का और सब्ज़ियों के साथ अब राज्य में एक और फसल किसानों की आय बढ़ाने का माध्यम बन रहा है “मखाना”। पहले यह सीमित इलाकों तक सीमित था अब बिहार सरकार की नई पहल के तहत 16 जिलों में फैलने जा रहा है।
अभी तक मखाना की खेती मुख्य रूप से कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी, किशनगंज, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया जिलों में हो रहा है। इन जिलों की मिट्टी और जलवायु मखाना उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है। यहां के किसान पारंपरिक तरीकों से भी अच्छा उत्पादन कर रहा है और राज्य के साथ-साथ देश-विदेश में भी मखाना की खासी मांग है।
बिहार सरकार ने समस्तीपुर, भागलपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में भी मखाना की खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की है। इससे अब कुल 16 जिलों में मखाना उत्पादन होगा। कृषि विभाग ने इसके लिए दो वर्षों की कार्ययोजना तैयार की है और आधिकारिक तौर पर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है।
इस योजना के लिए 16 करोड़ 99 लाख रुपये की स्वीकृति दी गई है। यह राशि किसानों को विभिन्न रूपों में सहायता देने के लिए खर्च होगी। इसके तहत मखाना बीज उपलब्ध कराना, कुल लागत पर अनुदान देना और खेती में इस्तेमाल होने वाले यंत्रों पर सब्सिडी प्रदान करना शामिल है।
इस वित्तीय मदद से किसानों की लागत घटेगी और उन्हें आधुनिक तकनीक से खेती करने का अवसर मिलेगा। मखाना एक नकदी फसल है, जिसकी बाजार में ऊंची कीमत मिलती है। मखाना की मांग विदेशों में भी लगातार बढ़ रहा है। बिहार के किसान इससे सीधा लाभ उठा सकता है। मखाना की खेती से जुड़े कार्यों में ग्रामीणों को अधिक रोजगार मिलेगा। बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में मखाना खेती की पुरानी परंपरा है। इस अनुभव का लाभ नए जिलों के किसान भी उठा सकेंगे।
मखाना केवल स्वादिष्ट स्नैक ही नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाया जाता है। मधुमेह, हृदय रोग और मोटापे से जूझ रहे लोगों के लिए यह एक बेहतर विकल्प माना जाता है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों ही मखाना के गुणों को मान्यता देता है।
बिहार सरकार का यह कदम किसानों की आय दोगुनी करने और कृषि क्षेत्र में विविधता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा। 16 जिलों में मखाना की खेती का विस्तार न केवल स्थानीय किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करेगा, बल्कि बिहार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में “मखाना हब” के रूप में पहचान भी दिलाएगा। आने वाले वर्षों में यह पहल ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने में अहम योगदान करेगी।
