तकनीक की दुनिया में जर्मनी ने एक नया इतिहास रच दिया है। बर्लिन में लॉन्च किया गया ‘जुपिटर’ सुपरकंप्यूटर न केवल यूरोप का, बल्कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली कंप्यूटरों में से एक बन गया है। यह 420 टन वजनी और 426 फीट लंबा तकनीकी दिग्गज है, जो प्रति सेकंड एक क्विंटिलियन (1 के बाद 18 शून्य) गणनाएं करने में सक्षम है। सरल शब्दों में कहा जाए तो, दुनिया की पूरी आबादी को मिलकर इतना काम करने में चार साल से ज्यादा लगेंगे, जबकि जुपिटर इसे पलक झपकते ही कर देता है।
जुपिटर को एनवीडिया (NVIDIA) कंपनी ने तैयार किया है। इसमें 24,000 से भी अधिक अत्याधुनिक एनवीडिया चिप्स लगे हैं, जो इसे इतनी जबरदस्त प्रोसेसिंग शक्ति प्रदान करते हैं। इस सुपरकंप्यूटर को ‘एक्सास्केल कंप्यूटर’ कहा जाता है, क्योंकि यह एक्सा-फ्लॉप्स स्तर की गणनाएं कर सकता है। एक्सा-फ्लॉप्स का मतलब है प्रति सेकंड एक अरब अरब गणनाएं।
जुपिटर का उपयोग सिर्फ तेज गणनाओं तक सीमित नहीं है। इसे वैज्ञानिक अनुसंधान, लंबी अवधि के जलवायु पूर्वानुमानों, मानव मस्तिष्क की प्रक्रियाओं के सिमुलेशन, नई ऊर्जा तकनीकों के विकास, और जटिल औद्योगिक समस्याओं के समाधान के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी योगदान देगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि जुपिटर की मदद से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अधिक सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा। इससे नीतियों को बेहतर बनाने, आपदा प्रबंधन को मजबूत करने और ऊर्जा बचत के नए उपाय खोजने में मदद मिलेगी।
अब तक अमेरिका और चीन ही सुपरकंप्यूटर रेस में आगे माने जाते थे। जुपिटर के लॉन्च के साथ यूरोप ने भी इस तकनीकी दौड़ में अपनी ताकत का अहसास करा दिया है। यह न केवल शोधकर्ताओं बल्कि पूरे महाद्वीप के लिए रणनीतिक बढ़त साबित हो सकता है।
जुपिटर को देखकर साफ है कि आने वाला समय डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है। यह सुपरकंप्यूटर नई दवाओं की खोज, अंतरिक्ष अनुसंधान, ऊर्जा संकट समाधान और स्मार्ट शहरों के डिजाइन में अहम भूमिका निभाएगा।
संक्षेप में कहा जाए तो जुपिटर सिर्फ एक मशीन नहीं है, बल्कि यह भविष्य की समस्याओं के समाधान का रास्ता है। इसकी ताकत का सही इस्तेमाल दुनिया को अधिक सुरक्षित, टिकाऊ और तकनीकी रूप से उन्नत बनाने में मदद कर सकता है।
