लद्दाख, भारत के उत्तरी छोर पर बसा वह भूभाग है जिसे 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत अलग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला। तब इस निर्णय का स्वागत हुआ था, लेकिन समय के साथ यह स्पष्ट होता गया कि लद्दाख के लोगों की आकांक्षाएँ केवल ‘केंद्रशासित प्रदेश’ तक सीमित नहीं हैं। राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक संरक्षण, लोकसभा सीटों का पुनर्वितरण और रोजगार एव संसाधनों पर स्थानीय नियंत्रण, यह चार मुद्दा अब पूरे लद्दाख की राजनीति के केंद्र में हैं।
सितंबर 2025 की घटनाएँ इस संघर्ष को और तीखा बना गईं। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के संयुक्त बंद के दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें चार लोगों की मौत और 90 से अधिक घायल हुए। इसके बाद लेह में कर्फ्यू और करगिल सहित अन्य इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई।
लद्दाख हिमालय की गोद में बसा है, जिसकी सीमाएँ चीन और पाकिस्तान दोनों से लगती हैं। इसकी सामरिक स्थिति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। गलवान और पैंगोंग झील जैसे क्षेत्र आज भी भारत-चीन तनाव के प्रतीक बने हुए हैं।
लेह क्षेत्र बौद्ध बहुल है जबकि करगिल क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अधिक है। इन दोनों समुदायों में सांस्कृतिक अंतर के बावजूद सामाजिक समरसता लंबे समय से बनी हुई है। यही वजह है कि आंदोलन के दौरान भी लेह और करगिल के संगठन मिलकर अपनी माँगें रखते आए हैं।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने और लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाने का निर्णय ऐतिहासिक था। लेकिन चूँकि लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया, स्थानीय नेतृत्व और जनता को लगा कि उनका लोकतांत्रिक अधिकार सीमित हो गया है।
लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) ने मिलकर आंदोलन की कमान संभाली। दोनों संगठन पिछले चार साल से लगातार राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का विस्तार जैसी माँगों को लेकर आंदोलनरत हैं। मुख्य मांगे है लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। संविधान की छठी अनुसूची का विस्तार किया जाए ताकि आदिवासी संस्कृति, भूमि और संसाधनों की रक्षा हो सके। लेह और करगिल के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें बनाई जाएँ। लद्दाख लोक सेवा आयोग का गठन कर स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार की गारंटी दी जाए।
LAB द्वारा बुलाए गए बंद के दौरान लेह में युवाओं का एक समूह अचानक बेकाबू हो गया। स्थिति बिगड़ते-बिगड़ते हिंसा में बदल गई, जिसमें चार युवकों की मौत और 90 लोग घायल हो गए। पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ा और पूरे शहर को सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। लेह में लगातार तीन दिनों तक कर्फ्यू जारी रहा। करगिल और अन्य इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई। सभी स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए। गृह मंत्रालय ने तुरंत एक टीम लेह भेजी जिसने हालात का आकलन किया और सुरक्षा एजेंसियों के साथ बैठकें कीं। संभावना जताई जा रही है कि यदि स्थिति नियंत्रण में रही तो आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबंधों में आंशिक ढील दी जाएगी।
कुछ राजनीतिक हलकों ने पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर हिंसा को भड़काने का आरोप लगाया। LAB ने इन आरोपों को पूरी तरह से नकार दिया है। संस्था ने कहा कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण था और वांगचुक को राष्ट्रविरोधी कहना गलत है। LAB ने न्यायिक जांच की माँग की ताकि सच सामने आ सके।
हिंसा और कर्फ्यू के चलते लेह और आसपास के इलाकों में राशन, दूध और सब्जियों की भारी कमी हो गई। स्थानीय लोगों ने प्रशासन से तत्काल आपूर्ति बहाल करने की अपील की है। जिला मजिस्ट्रेट के आदेशानुसार सभी शैक्षणिक संस्थान बंद होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई।
कांग्रेस ने लद्दाख हिंसा की न्यायिक जांच की माँग की है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि चार युवकों की मौत दुखद है और दोषियों की पहचान जरूरी है। अब तक केंद्र सरकार ने केवल सुरक्षा और संवाद की नीति अपनाई है। लेकिन यह साफ है कि यदि आंदोलन लंबा खिंचा तो उसे राजनीतिक समाधान की ओर बढ़ना ही पड़ेगा।
भारत सरकार फिलहाल लद्दाख को राज्य का दर्जा देने से हिचकिचा रही है, क्योंकि आबादी कम और क्षेत्र व्यापक है। लेकिन बढ़ता जनाक्रोश सरकार को इस दिशा में सोचना मजबूर कर सकता है। लद्दाख की आदिवासी संस्कृति और संसाधनों की सुरक्षा के लिए छठी अनुसूची का विस्तार अपेक्षाकृत व्यावहारिक विकल्प है। लोक सेवा आयोग का गठन और स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षण जैसी माँगें वाजिब मानी जा रही हैं।
लद्दाख की ताजा हिंसा केवल एक प्रशासनिक घटना नहीं है, बल्कि यह उस लंबे आंदोलन का परिणाम है जिसमें स्थानीय लोग अपनी पहचान, अधिकार और भविष्य की सुरक्षा देख रहे हैं। राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची का संरक्षण, रोजगार और प्रतिनिधित्व, इन मुद्दों को नजरअंदाज करना अब संभव नहीं लग रहा है।
