नवरात्र के आठवें दिन होती है महागौरी की पूजा - महागौरी की वाहन बैल और सिंह दोनों हैं

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना

नवरात्र के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। प्रत्येक दिन देवी के एक विशिष्ट रूप को समर्पित होता है। इस क्रम में अष्टमी तिथि यानि आठवां दिन “माता महागौरी” की पूजा-अर्चना के लिए माना गया है। महागौरी देवी को करुणा, शांति, सौंदर्य, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। इनका वर्ण श्वेत है और इनके वस्त्र तथा आभूषण भी श्वेत ही होते हैं। इसीलिए इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। महागौरी का नाम ही उनके स्वरूप और शक्ति की गवाही देता है। 'महा' का अर्थ है महान और 'गौरी' का अर्थ है गोरा या उज्ज्वल। इस प्रकार महागौरी का अर्थ है – महान गौर वर्ण वाली देवी। अष्टमी का दिन नवरात्रि में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन कन्या पूजन और दुर्गा अष्टमी का आयोजन होता है।

“मां महागौरी” को नवदुर्गाओं में सबसे अधिक तेजस्वी और सुंदर माना जाता है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी जाती है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है “अष्टवर्षा भवेद् गौरी।” महागौरी की चार भुजाएं हैं। ऊपर के दाहिने हाथ में त्रिशूल और नीचे वाले दाहिने हाथ में वर-मुद्रा है। ऊपर के बाएं हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे वाले बाएं हाथ में डमरू धारण करती हैं। उनका वाहन बैल और सिंह दोनों ही माने जाते हैं। उनकी मुद्रा अत्यंत शांत और सौम्य होती है।

कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान उनका शरीर काला हो गया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके शरीर को गंगा जल से धोया। गंगा स्नान के बाद माता पार्वती का वर्ण विद्युत के समान श्वेत और कांतिमान हो गया। तभी उन्हें गौरी नाम प्राप्त हुआ और यही स्वरूप आगे चलकर महागौरी कहलाया।

एक कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती तपस्या कर रही थी, तब एक भूखा सिंह उनके पास आ गया। भोजन न मिलने पर भी वह देवी के तपस्या पूर्ण होने तक वहीं बैठा रहा। तपस्या के बाद देवी ने सिंह को देखकर करुणावश उसे अपना वाहन बना लिया। इस प्रकार देवी महागौरी का वाहन सिंह भी माना जाता है।

कहा जाता है कि जब दानव दुर्गम के अत्याचारों से देवता और ऋषि त्रस्त हो गए तो वे माता शाकंभरी की शरण में गए। उसी समय माता ने महागौरी का रूप धारण कर त्रिलोकी को मुग्ध किया और दानव का संहार कर धर्म की पुनः स्थापना की।

महागौरी को सौभाग्य, सुख, शांति और समृद्धि की देवी माना जाता है। जो स्त्रियां महागौरी की पूजा करती हैं, देवी स्वयं उनके सुहाग की रक्षा करती हैं। माना जाता है कि महागौरी के आशीर्वाद से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है। देवी की आराधना से भक्तों के जीवन से कष्ट और क्लेश दूर होते हैं। वे मन को पवित्र करती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

अष्टमी तिथि पर मां महागौरी की पूजा विशेष विधि से की जाती है। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थान को पवित्र कर, माता की प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से स्नान करा कर, श्वेत वस्त्र, फूल और आभूषण अर्पित कर, नारियल का भोग लगाना चाहिए और बाद में उसे दान कर देना चाहिए।  कन्या पूजन करना चाहिए, क्योंकि अष्टमी पर कुंवारी कन्याओं की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। “सर्वमंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते” मंत्र का जप करना चाहिए।

अष्टमी को दुर्गा अष्टमी और महाअष्टमी कहा जाता है। इस दिन उपवास, हवन, कन्या पूजन और देवी की आराधना करने का विशेष महत्व है। इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए श्वेत वस्त्र धारण करना और श्वेत पुष्प अर्पित करना शुभ माना जाता है। कन्या पूजन के अंतर्गत छोटी बालिकाओं को देवी का स्वरूप मानकर उनके चरण पखारे जाते हैं, उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार दिए जाते हैं। इसे करने से मां महागौरी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

महागौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों माने जाते हैं। बैल उनके पति भगवान शिव का प्रिय वाहन है और सिंह उनके तपस्या साथी का प्रतीक। बैल धर्म, शक्ति और संयम का द्योतक है जबकि सिंह साहस, शौर्य और पराक्रम का। इस प्रकार देवी के दोनों वाहन उनके चरित्र की पूर्णता को दर्शाता है।




मां महागौरी को नारियल का भोग विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा दूध से बने पकवान, खीर, सफेद मिठाई और श्वेत फल अर्पित किए जाते हैं। भक्तों को इन्हें प्रसाद रूप में ग्रहण करना चाहिए।

मां महागौरी की उपासना से भक्तों को यह संदेश मिलता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, धैर्य और तपस्या के बल पर उन्हें पार किया जा सकता है। पवित्रता, शांति और करुणा ही सच्चे जीवन के मूल मंत्र हैं।

मूल मंत्र:

“येथे सम श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभंदद्यान्महादेव-प्रमोद-दा।।“

स्तुति:

“सर्वमंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।“

मां महागौरी नवरात्र की अष्टमी तिथि पर पूजित होती हैं। उनका रूप करुणा, शांति और पवित्रता का प्रतीक है। उनकी आराधना से भक्तों के जीवन में सौभाग्य, सुख और शांति का संचार होता है। देवी महागौरी की पूजा करके हर साधक अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, पवित्रता और संतोष का अनुभव करता है। इस प्रकार नवरात्र के आठवें दिन की महत्ता अपार है। मां महागौरी की आराधना से न केवल भक्त की व्यक्तिगत इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि उसे धर्म और अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी मिलती है।



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