आभा सिन्हा, पटना,
धर्म में शक्तिपीठों का स्थान सर्वोच्च और पवित्र माना गया है। यह वह दिव्य स्थल हैं जहाँ माता सती के अंग, आभूषण या उनके वस्त्र के अंश गिरे थे। प्रत्येक शक्तिपीठ में शक्ति और भैरव के रूप में देवी और देवता की विशेष उपासना होती है। इन स्थलों का वर्णन पुराणों, तंत्र ग्रंथों और अनेक लोककथाओं में मिलता है।
नेपाल, जो हिमालय की गोद में बसा एक देश है, में ऐसे ही एक चमत्कारी और आध्यात्मिक शक्तिपीठ का अस्तित्व है “महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ”। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक साधकों, इतिहास प्रेमियों और संस्कृति के अन्वेषकों के लिए भी एक अमूल्य धरोहर है।
“महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” नेपाल के काठमांडू शहर में स्थित “गुजरेश्वरी मंदिर” के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर विश्वविख्यात पशुपतिनाथ मंदिर के बिल्कुल समीप स्थित है। पशुपतिनाथ मंदिर स्वयं शिवभक्तों के लिए मोक्षदायी स्थल माना जाता है, और इसके निकट स्थित “महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” इस क्षेत्र की आध्यात्मिक ऊर्जा को कई गुना बढ़ा देता है।
“महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” नेपाल के काठमांडू में गुजरेश्वरी (महामाया) मंदिर के नाम से पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्थित है। इस शक्ति का नाम महशिरा (महामाया) है और भैरव का नाम कपाली है। यहां देवी सती के दोनों घुटना (जानु) गिरा था।
महाशक्ति महशिरा की कथा माता सती के आत्मदाह और भगवान शिव के अनंत विलाप से जुड़ी है। प्रजापति दक्ष, जो भगवान शिव के ससुर थे, ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें शिव को आमंत्रित नहीं किया। माता सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए आग्रह करती हैं, परंतु शिव उन्हें रोकते हैं। फिर भी, सती अपने स्वाभाविक अधिकार से यज्ञ में पहुँचती हैं, लेकिन वहाँ उन्हें अपने पति के प्रति अपमानजनक बातें सुननी पड़ती हैं। आहत और क्रोधित होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपना शरीर त्याग दिया।
सती का देहांत होते ही शिव क्रोधित हो उठे और अपने गणों के साथ यज्ञ स्थल को नष्ट कर दिया। इसके बाद उन्होंने सती के शरीर को उठाया और तांडव करने लगे। यह तांडव इतना प्रचंड था कि सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।
तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया। जहाँ-जहाँ वे अंग गिरा, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुआ।
कथा के अनुसार, माता सती के दोनों घुटना (जानु) नेपाल के इस पावन स्थल पर गिरा था। इसीलिए यहाँ माता की शक्ति को महशिरा या महामाया कहा जाता है और भैरव को कपाली के रूप में पूजा जाता है।
“महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” मंदिर एक प्राचीन और अद्भुत स्थापत्य शैली का उदाहरण है, जिसमें नेपाल की पारंपरिक पगोडा शैली और भारतीय मंदिर वास्तुकला का अद्भुत संगम दिखाई देता है। यहाँ माता महामाया की प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जो अत्यंत दिव्य और तेजस्वी रूप में विराजमान है। मुख्य मंदिर के समीप भैरव कपाली का स्थान है, जहाँ विशेष रूप से तंत्र साधक पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लकड़ी की बारीक नक्काशी और स्वर्ण मंडप है। यहाँ भक्तों के लिए हवनकुंड और यज्ञशाला की व्यवस्था है।
“महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” केवल सामान्य पूजा का स्थान नहीं है, बल्कि तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ की शक्ति साधना विशेष रूप से शक्ति तंत्र और कौल मार्ग के साधकों के लिए महत्त्वपूर्ण है। नवरात्रि में विशेषकर शारदीय और चैत्र नवरात्रि में, यहाँ गुप्त अनुष्ठान होता है। तंत्रशास्त्र में वर्णित है कि “महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” मंदिर में साधना करने से साधक को सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
महामाया शक्तिपीठ के भैरव रूप को कपाली कहा जाता है। कपाली को तंत्र साधना में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन्हें देवी के रक्षक और अनुष्ठानों के संपूर्ण फलदाता माना जाता है। यहाँ विशेष रूप से भैरव अष्टमी पर भव्य अनुष्ठान आयोजित होता है।
नवरात्रि में नौ दिनों तक विशेष पूजा, यज्ञ, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को विशेष बलिदान और हवन का आयोजन होता है।
नेपाल में तीज का पर्व महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है। महिलाएँ “महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” के दर्शन कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। भैरव अष्टमी के दिन भैरव कपाली की विशेष पूजा होता है और रातभर भजन-संध्या का आयोजन किया जाता है।
“महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” का विशेष महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह विश्वविख्यात पशुपतिनाथ मंदिर के पास स्थित है। भक्त पहले “महशिरा (महामाया) शक्तिपीठ” के दर्शन कर पशुपतिनाथ के दर्शन करते हैं। यह क्रम “शक्ति और शिव” के मिलन का प्रतीक माना जाता है।
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में यहाँ आने वाले साधकों को रात में देवी के दिव्य स्वरूप के दर्शन होते थे। कहा जाता है कि एक बार एक साधक ने देवी की परीक्षा लेनी चाही, तब देवी ने स्वयं प्रकट होकर उसे आशीर्वाद दिया और कहा “यह स्थान केवल भक्ति और समर्पण का है, यहाँ छल करने वाले को कुछ नहीं मिलेगा।”
भक्तों का कहना है कि महशिरा शक्तिपीठ में दर्शन करने से घुटनों और पैरों से जुड़ी बीमारियाँ दूर होती हैं, क्योंकि यहाँ माता के घुटने गिरे थे। यात्री यहाँ आकर गहन मानसिक शांति और आंतरिक बल का अनुभव करते हैं। कई साधक इसे अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण साधना स्थली मानते हैं।
