काल और संस्कृति का अद्वितीय संग्रहालय - ‘युगे युगीन’

Jitendra Kumar Sinha
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भारत के इतिहास की सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि उसने समय को केवल घड़ी की टिक-टिक से नहीं, बल्कि दार्शनिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से समझा है। यही कारण है कि आज भी जब दुनिया समय मापने के उपकरणों पर केंद्रित होती है, भारत उसे कालचक्र और नटराज के अनंत नृत्य के रूप में देखता है। इसी अद्वितीय दृष्टिकोण को दर्शाने के लिए केन्द्र सरकार ने एक ऐतिहासिक पहल की है ‘युगे युगीन’ संग्रहालय।

नॉर्थ ब्लॉक, जो कभी भारत के सबसे ताकतवर निर्णयों का गवाह रहा है, अब एक इतिहास और संस्कृति की गैलरी में तब्दील होने जा रहा है। यहां तैयार हो रही प्रदर्शनी ‘टाइम एंड टाइमलेसनेस’ में 100 से अधिक दुर्लभ वस्तुएं प्रदर्शित होंगी, जो भारत के हजारों वर्षों की यात्रा को जीवंत करेंगी।

‘युगे युगीन’ शब्द का आशय है, जो युगों-युगों से चलता आ रहा हो, शाश्वत और कालातीत। भारत की सभ्यता का यही पहचान है। यहाँ समय केवल घड़ी या पंचांग नहीं, बल्कि जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। ऋग्वेद से लेकर उपनिषद तक, काल को ब्रह्म का पर्याय माना गया है। नटराज की प्रतिमा में ‘अनंत नृत्य’ समय के प्रवाह और सृष्टि-विनाश की चक्रीय प्रक्रिया को दर्शाता है। महाकाव्यों में युगों की अवधारणा सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग, समय को दार्शनिक और सांस्कृतिक रूप देती है। इसलिए जब इस गैलरी का नाम ‘युगे युगीन’ रखा गया है, तो यह केवल इतिहास नहीं बल्कि समय को जीने की भारतीय परंपरा का प्रतीक बन गया।

ब्रिटिश काल में बनी नॉर्थ ब्लॉक इमारत भारत सरकार का शक्ति केन्द्र रही है। वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय और कई महत्वपूर्ण कार्यालय यहां संचालित होते थे। सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना के तहत अब इन भवनों को एक नया जीवन दिया जा रहा है। पुराने दफ्तरों की जगह अब यहां संग्रहालय और सांस्कृतिक गैलरियां होगी। साउथ ब्लॉक और नॉर्थ ब्लॉक दोनों मिलकर भारत के हजारों साल के इतिहास को प्रदर्शित करेगा। यानि जहां कभी राजनीति और शासन का केन्द्र था, अब वहीं इतिहास, कला और विज्ञान का संगम दिखेगा।

इस गैलरी का क्षेत्रफल लगभग 1,500 वर्गमीटर, करीब 100 दुर्लभ कलाकृतियां, दो खंड- काल-अवधारणा (Time as Philosophy) और काल-गणना (Time as Science and Measurement)। यह संरचना दर्शाता है कि भारत ने समय को दो दृष्टियों से देखा है दार्शनिक अनुभव और वैज्ञानिक गणना।

भारत के ऋषियों और दार्शनिकों ने समय को केवल गणना के रूप में नहीं देखा। उनके लिए यह जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र था। इस खंड में प्रदर्शित होगी, नटराज की कांस्य प्रतिमा (चोल काल, 10वीं सदी)- शिव का नटराज रूप ‘अनंत नृत्य’ का प्रतीक है। यह नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति, संरक्षण और संहार तीनों को दर्शाता है। सूर्य की मूर्तियां-  सूर्य को ‘कालचक्र’ का संचालक माना गया है। विष्णु प्रतिमा और कालचक्र चित्रण- विष्णु के ‘अनंत शेषनाग’ पर शयन से लेकर कालचक्र का प्रतीकात्मक वर्णन। पौराणिक युग चक्र-   सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग का चित्रण। आर्यभटीय और अन्य पांडुलिपियों के अंश: भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने समय की परिभाषा और खगोलीय गणनाओं का उल्लेख किया था। यह खंड दर्शकों को बताएगा कि भारत में समय केवल संख्या नहीं बल्कि जीवन का अनुभव है।

भारत खगोल विज्ञान और गणित की अद्भुत परंपरा का केन्द्र रहा है। यहां प्राचीन काल से ही समय मापने के लिए उपकरण और विधियां विकसित की गईं। इस खंड में होगी कालीबंगा (हड़प्पा सभ्यता) की घड़ी (2500–1700 ईसा पूर्व)- दुनिया की सबसे प्राचीन समय मापने की विधियों में से एक। लाहौर का नक्षत्र यंत्र (1567 ईस्वी)-  तारों और ग्रहों की स्थिति के आधार पर समय मापने वाला उपकरण। सूर्यघड़ी और जलघड़ी- समय मापने की दो प्रमुख भारतीय पद्धतियां। गुप्तकालीन मूर्तियां (5वीं सदी)-  इसमें खगोलीय ज्ञान और समय की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति। पांडुलिपियां- सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत जैसी ग्रंथों से अंश। यह खंड दिखाएगा कि कैसे भारत ने गणित, खगोल और विज्ञान को समय मापन की विधियों से जोड़ा।

इस गैलरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें भारत के इतिहास की लगातार धारा को दिखाया जाएगा। हड़प्पा सभ्यता (2500 ईसा पूर्व)-  कालीबंगा की घड़ी और नगर नियोजन। गुप्तकाल (5वीं सदी)- मूर्तिकला और खगोल विज्ञान। चोल काल (10वीं सदी)- कांस्य मूर्तियां, विशेषकर नटराज। मध्यकाल (1567 ईस्वी)- लाहौर का नक्षत्र यंत्र। यानि सभ्यता की शुरुआत से लेकर मध्यकालीन विज्ञान और कला तक की पूरी यात्रा।

भारतीय विद्वानों ने समय और खगोल पर गहन अध्ययन किया और उसे ग्रंथों में संजोया। आर्यभटीय (आर्यभट्ट)-  समय की गणना, ग्रहों की गति। सूर्य सिद्धांत- खगोल विज्ञान का आधारभूत ग्रंथ। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत (ब्रह्मगुप्त)- गणित और खगोल दोनों में अद्भुत योगदान। लघुभास्करीय (भास्कराचार्य)-  समय मापन और गणितीय सिद्धांत। ये पांडुलिपियां गैलरी में प्रदर्शित होंगी ताकि आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि भारत ने वैज्ञानिक समय गणना में कितना योगदान दिया।

पहली बार भारत का इतिहास और समय दर्शन एक ही जगह प्रदर्शित होगा। यह गैलरी बताएगी कि भारत ने समय को केवल मापा नहीं, जिया जाता था। यहां कला, दर्शन और विज्ञान, तीनों का संगम होगा। यह केवल म्यूजियम नहीं, बल्कि भारत की पहचान का दर्पण बनेगी।

भारत का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों का नहीं है। यह ज्ञान, कला और संस्कृति की यात्रा है। यहां समय को अनंत और शाश्वत माना गया है। यहां विज्ञान और दर्शन में कोई विरोध नहीं, बल्कि संगति है। यही कारण है कि भारत को ‘विश्वगुरु’ कहा गया है। यह गैलरी आने वाली पीढ़ियों को यही संदेश देगी कि भारत की पहचान समय को देखने की अनूठी दृष्टि में छिपी है।

जब यह गैलरी तैयार होगी, तो यह केवल अवशेषों का प्रदर्शन नहीं होगी। यह एक अनुभव होगा। यहां दर्शक हड़प्पा की घड़ी से लेकर चोल के नटराज तक की यात्रा करेंगे। यहां वे समझेंगे कि समय केवल मापा हुआ नहीं, बल्कि जिया हुआ है। यहां वे देखेंगे कि भारत ने समय को दर्शन, कला और विज्ञान—तीनों में एक साथ रूपांतरित किया है। ‘युगे युगीन’ वास्तव में भारत की उस अविच्छिन्न धारा का प्रतीक है, जो हजारों वर्षों से बह रही है और आने वाले समय तक बहती रहेगी।



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