पाबेलोन लास निवेसः स्थायित्व एव जुड़ाव का प्रतीक

Jitendra Kumar Sinha
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कोलंबिया की राजधानी बोगोटा इन दिनों कला और संस्कृति के जीवंत रंगों से सराबोर है। यहां पहली बार आयोजित आर्ट बिएनियल में देश-विदेश के कलाकारों ने अपनी अनूठी कलाकृतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। इन्हीं रचनाओं में सबसे ज्यादा चर्चा बटोर रही है कोलंबियाई कलाकार अलेजांद्रो टोबोन की कृति ‘पाबेलोन लास निवेस’। यह केवल एक कला-स्थापना (इंस्टॉलेशन) ही नहीं, बल्कि स्थायित्व, प्रकृति और सामुदायिक जुड़ाव का गहरा संदेश भी देता है।

‘पाबेलोन लास निवेस’ का सबसे खास पहलू है कि इसे पूरी तरह लकड़ी और प्राकृतिक सामग्री से बनाया गया है। कलाकार ने पारंपरिक निर्माण शैली को आधुनिक सौंदर्यबोध के साथ मिलाकर एक ऐसा ढांचा खड़ा किया है, जो पर्यावरण और समाज दोनों के महत्व को दर्शाता है। लकड़ी का चुनाव केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि यह स्थायित्व और पुनःउपयोग की संभावनाओं का प्रतीक है।

अलेजांद्रो टोबोन की यह कृति दर्शाता है कि कला केवल दीवारों तक सीमित नहीं होती है, बल्कि वह समाज और समुदाय के भीतर गहराई तक उतर सकती है। ‘पाबेलोन लास निवेस’ को देखने वाले लोग केवल एक स्थापत्य को नहीं देखते हैं, बल्कि उसमें सामूहिकता, सहयोग और जुड़ाव की भावना महसूस करते हैं। यह ढांचा एक खुली जगह की तरह है, जहां लोग इकट्ठे होकर संवाद कर सकते हैं, विचार साझा कर सकते हैं और संस्कृति का उत्सव मना सकते हैं।

आज के दौर में जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है, तब ‘पाबेलोन लास निवेस’ एक सजग और सार्थक संदेश देता है। प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग और उनके संरक्षण का महत्व इसमें स्पष्ट झलकता है। यह कला याद दिलाती है कि विकास और आधुनिकता के बीच भी प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है।

बोगोटा का पहला आर्ट बिएनियल शहर को एक सांस्कृतिक मिलन स्थल में बदल देता है। यहां अलग-अलग देशों के कलाकार अपनी-अपनी दृष्टि और अनुभव साझा कर रहे हैं। इस उत्सव में शामिल ‘पाबेलोन लास निवेस’ ने न केवल कोलंबिया की कलात्मक परंपरा को सम्मान दिया है, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि कला समाज को जोड़ने और बदलने की ताकत रखती है।

‘पाबेलोन लास निवेस’ केवल एक कलाकृति नहीं है, बल्कि एक सजीव अनुभव है। यह प्रकृति और समुदाय दोनों की अहमियत से रूबरू कराता है। अलेजांद्रो टोबोन ने इस रचना के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया है कि कला तभी सार्थक होती है जब वह स्थायित्व, जुड़ाव और सामूहिकता का पुल बने। 


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