रेगिस्तानी हवाओं के बीच सीरिया का प्राचीन नगर पलमायरा (Palmyra) आज खंडहरों में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष अब भी बीते समय की सुनहरी कहानियाँ बयाँ करते हैं। यह नगर कभी “रेगिस्तानी सिल्क रूट का पर्ल” कहा जाता था, जहाँ से व्यापार, संस्कृति और धर्म का संगम होकर निकलता था।
पलमायरा का इतिहास ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से शुरू होता है। यह नगर सिल्क रूट पर बसा होने के कारण रोम, फारस, भारत और चीन से जुड़ा एक अहम व्यापारिक केंद्र था। ऊँटों के कारवां मसाले, रेशम और गहनों से लदे यहाँ रुकते और आगे बढ़ते। इस दौरान विभिन्न सभ्यताओं का आदान-प्रदान हुआ, जिसने इसे सांस्कृतिक रूप से और भी समृद्ध बना दिया।
आज जो खंडहरों के रूप में दिखाई देता है, वह कभी अद्वितीय स्थापत्य का जीवंत उदाहरण था। लंबी स्तंभों से सजी सड़क (Colonnaded Street) यहाँ की पहचान थी। रोमन वास्तुकला की झलक लिए यह सड़क न केवल व्यापारियों और यात्रियों के लिए रास्ता था, बल्कि धार्मिक जुलूसों और सांस्कृतिक आयोजनों का भी केंद्र था। कहते हैं कि इस मार्ग से गुजरते हुए इंसान को लगता है मानो वह किसी जीवित इतिहास में प्रवेश कर रहा हो।
इन स्तंभों की खूबसूरती यह एहसास कराता है कि समय चाहे कितना ही क्रूर क्यों न हो, कला और संस्कृति अपना रास्ता खुद बना लेता है। युद्ध, आक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं ने इस नगर को बार-बार चोट पहुँचाई, लेकिन इसके स्तंभ आज भी खड़ा है, मानो यह बताने के लिए कि सभ्यताएँ भले मिट जाती हैं, पर उनकी आत्मा सदा जीवित रहती है।
हाल के दशकों में पलमायरा को आतंक और युद्ध ने बहुत क्षति पहुँचाई। कई अद्वितीय मूर्तियाँ और स्थापत्य ध्वस्त कर दिया गया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर इसके संरक्षण का प्रयास शुरू किया। यह याद दिलाता है कि सांस्कृतिक धरोहर केवल किसी एक देश की नहीं होती, बल्कि पूरी मानवता की साझा पूँजी होती है।
