सड़क सुरक्षा आज के समय में एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। आए दिन सड़कों पर हो रही दुर्घटनाओं में अनगिनत लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बड़ा और सराहनीय कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को घोषणा की है कि अब रोडवेज बस चालकों का मेडिकल और फिजिकल फिटनेस टेस्ट हर तीन महीने में अनिवार्य रूप से होगा। यह फैसला न केवल सड़क सुरक्षा को मजबूती देगा, बल्कि यात्रियों की जान की हिफाजत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
लखनऊ में परिवहन सेवाओं के लोकार्पण समारोह के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कहा है कि "अंदाजे से गाड़ी चलाने की छूट नहीं दी जा सकती।" उनका यह बयान स्पष्ट करता है कि सरकार सड़क दुर्घटनाओं को लेकर कितनी गंभीर है। फिटनेस टेस्ट के जरिए यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी चालक शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर होकर वाहन न चलाए।
अब तक ड्राइवरों का फिटनेस टेस्ट साल में एक बार या उससे भी कम अंतराल पर होता था। कई बार लंबे समय तक जांच न होने से चालक बीमारियों से ग्रसित हो जाता था, जिससे दुर्घटना की संभावना बढ़ जाता था। लेकिन अब हर तीन माह पर होने वाली जांच यह तय करेगी कि चालक की आंखों की रोशनी, रिफ्लेक्स, ब्लड प्रेशर, शुगर लेवल, और मानसिक स्थिति ठीक है या नहीं।
सरकार का यह निर्णय रोडवेज बसों से सफर करने वाले लाखों यात्रियों के लिए राहत भरा है। अक्सर यात्रियों की जान ड्राइवर की छोटी सी गलती के कारण खतरे में पड़ जाती है। नियमित फिटनेस जांच से ऐसी घटनाओं पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकेगी। इसके अलावा ड्राइवरों को भी अपनी सेहत को लेकर जागरूक रहने का मौका मिलेगा।
योगी सरकार सड़क सुरक्षा के लिए जनजागरूकता अभियान भी चला रही है। हेलमेट और सीट बेल्ट पहनने की अनिवार्यता, ओवरस्पीडिंग और शराब पीकर गाड़ी चलाने पर कड़ी कार्रवाई जैसे कदम पहले ही उठाए जा चुका है। अब ड्राइवरों के नियमित फिटनेस टेस्ट के साथ यह अभियान और मजबूत हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला न केवल एक प्रशासनिक आदेश है, बल्कि सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। हर तीन माह पर मेडिकल और फिजिकल टेस्ट से न केवल दुर्घटनाएं कम होगी, बल्कि चालक वर्ग भी अपनी जिम्मेदारी को और गंभीरता से निभाएगा। यात्रियों की सुरक्षा और सरकार की जवाबदेही, दोनों एक साथ मजबूत होगी। यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी एक आदर्श बन सकता है। अगर पूरे देश में इसे लागू किया जाए तो सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े निश्चित ही घटेंगे और लोगों की जानें बचाई जा सकेगी।
