नेपाल की राजनीतिक उथल-पुथल के बीच जब प्रधानमंत्री ने पद छोड़ा तो अंतरिम सरकार के लिए नए नेतृत्व की तलाश शुरू हुई। इस दौरान सबसे ज़्यादा चर्चा पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नाम की हुई। कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ़ जस्टिस रही हैं और अपनी ईमानदार छवि, भ्रष्टाचार विरोधी रुख और निष्पक्ष न्यायप्रियता के लिए युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। इसी वजह से “Gen Z आंदोलन” से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर सामने लाने की पहल की थी। शुरुआती दौर में सुशीला कार्की ने भी इस जिम्मेदारी के लिए हामी भरी, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। उनके पीछे हटने की वजह संवैधानिक और कानूनी अड़चनें बताई गईं। खुद कार्की ने कहा कि परिस्थितियाँ ऐसी नहीं हैं कि वे इस पद की जिम्मेदारी निभा सकें और उनकी व्यक्तिगत झिझक भी इसमें एक बड़ा कारण रही।
सुशीला कार्की के नाम वापसी के बाद आंदोलनकारी युवाओं ने कुर्मन घिसिंग को आगे बढ़ाने की बात रखी। कुर्मन घिसिंग नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के प्रमुख रह चुके हैं और उन्हें उस दौर के लिए जाना जाता है जब उन्होंने देश में सालों से चली आ रही बिजली कटौती खत्म कर दी थी। उन्होंने तकनीकी दक्षता और प्रशासनिक पारदर्शिता से जनता का भरोसा जीता और आम लोगों के बीच एक “नायक” की छवि बनाई। यही वजह है कि अब उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है। कार्की की तरह ही घिसिंग भी राजनीति से सीधे तौर पर जुड़े नहीं हैं, लेकिन युवाओं का मानना है कि यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है क्योंकि वे भ्रष्ट राजनीतिक ढांचे से बाहर रहकर प्रशासन को दिशा दे सकते हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने नेपाल की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, जहाँ परंपरागत नेताओं से हटकर अब न्यायपालिका और प्रशासन से जुड़े ईमानदार चेहरों को जनता भविष्य की उम्मीदों से जोड़ रही है।
