बिहार की 18 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की केंद्रीय सूची में शामिल करने को लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य सरकार से सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन से जुड़े अद्यतन आंकड़े प्रस्तुत करने को कहा है। इस मुद्दे पर आयोग ने शनिवार को पटना के स्टेट गेस्ट हाउस में एक जनसुनवाई आयोजित की, जिसकी अध्यक्षता आयोग के चेयरमैन हंसराज गंगाराम अहीर ने की।
बैठक में आयोग के सदस्य भूषण कमल सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। इस जनसुनवाई में विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर अपनी-अपनी बात रखी और 18 जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने का पुरजोर समर्थन किया। आयोग ने स्पष्ट किया कि वह किसी भी नए समुदाय को सूची में शामिल करने से पहले उनके सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति से संबंधित प्रमाणिक आंकड़ों का गहन अध्ययन करेगा।
जनसुनवाई में जिन जातियों और उपजातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने का प्रस्ताव आया, उनमें बाथम वैश्य, वियाहुत कलवार, छिपी, दोनवार, गोसाई, लक्ष्मी नारायण गोला, सैंथवार, मोदक मायरा, सामरी वैश्य, सूत्रधार, गोढ़ी (छाबी), परथा और सुरजापुरी मुस्लिम सहित कुल 18 समुदाय शामिल हैं। इन जातियों के प्रतिनिधियों ने आयोग के समक्ष कहा कि समाज के इन वर्गों को अब भी सरकारी नौकरियों, शिक्षा और आर्थिक अवसरों में बराबरी नहीं मिल पाई है। इसलिए इन्हें केंद्रीय सूची में शामिल किया जाना जरूरी है, ताकि इन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं और आरक्षण नीतियों का लाभ मिल सके।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने राज्य सरकार से कहा है कि वह इन 18 जातियों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन से संबंधित अद्यतन सर्वेक्षण रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करे। आयोग ने संकेत दिया है कि यदि उपलब्ध आंकड़े इन जातियों की वास्तविक स्थिति को प्रमाणित करते हैं, तो इन्हें केंद्रीय सूची में शामिल करने की अनुशंसा केंद्र सरकार को भेजी जाएगी। इस विषय पर अगली सुनवाई अगले महीने आयोजित की जाएगी, जिसमें राज्य सरकार की रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा होगी।
यह जनसुनवाई बिहार में सामाजिक न्याय और समान अवसरों की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है। राज्य की कई जातियाँ वर्षों से केंद्रीय सूची में शामिल होने की मांग कर रही हैं, ताकि उन्हें शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ प्राप्त हो सके।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की यह पहल न केवल सामाजिक संतुलन को मजबूत करेगी, बल्कि उन समुदायों के लिए भी आशा की किरण बनेगी जो लंबे समय से सरकारी मान्यता और अवसरों से वंचित रहे हैं। अब सबकी नजरें राज्य सरकार की रिपोर्ट और आयोग के आगामी फैसले पर टिकी हैं, जो इन 18 जातियों के भविष्य को प्रभावित करेगा।
