भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रतीक - मण्डन मिश्र और शंकराचार्य - डाक टिकट हुआ जारी

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय संस्कृति और दर्शन के इतिहास में आठवीं शताब्दी का कालखंड अत्यंत गौरवपूर्ण रहा है। इसी काल में दो महापुरुषों,  आदि शंकराचार्य और मण्डन मिश्र,  ने भारतीय ज्ञान परंपरा को नई दिशा दी थी। अब इसी अमूल्य परंपरा को सम्मानित करने के उद्देश्य से भारत सरकार के डाक विभाग ने मण्डन मिश्र और शंकराचार्य पर विशेष डाक टिकट जारी किया है। यह कदम न केवल भारतीय बौद्धिक विरासत का सम्मान है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत है।

बिहार के सहरसा जिले के महिषी गांव को भारतीय दर्शनशास्त्र की भूमि कहा जा सकता है। प्राचीन काल में इसका नाम माहिष्मति नगरी था। यही वह पावन स्थान है जहाँ महान मीमांसा आचार्य मण्डन मिश्र का जन्म हुआ था। वे वेदों, उपनिषदों और मीमांसा दर्शन के प्रकाण्ड पंडित माने जाते हैं। मिथिला की भूमि ने जैसे राजा जनक को विदेह और ज्ञानयोग का प्रतीक बनाया, वैसे ही मण्डन मिश्र ने तर्क, शास्त्र और दर्शन की परंपरा को गौरवशाली बनाया।

दक्षिण भारत के केरल से निकले आदि शंकराचार्य का उद्देश्य पूरे भारतवर्ष में अद्वैत वेदांत का प्रचार करना था। वे मिथिला की इस ज्ञानभूमि पर पहुंचे, जहाँ पहले से ही मण्डन मिश्र और उनकी विदुषी पत्नी भारती देवी वैदिक दर्शन के ज्ञाता थे। दोनों के बीच हुआ वेदांत-मिमांसा शास्त्रार्थ भारतीय दर्शन के इतिहास में अमर हो गया।

कहा जाता है कि यह शास्त्रार्थ कई दिनों तक चला। भारती देवी, जो स्वयं अत्यंत विदुषी थीं, इस शास्त्रार्थ की निर्णायक बनीं। अंततः शंकराचार्य के तर्कों और अद्वैत सिद्धांत के बल पर उन्हें विजयी घोषित किया गया। किंतु शंकराचार्य ने अपनी विजय को नम्रता के साथ स्वीकार किया और मण्डन मिश्र को अपना शिष्य बनाकर सुरेश्वराचार्य नाम दिया।

इस शास्त्रार्थ ने यह दिखाया कि भारतीय परंपरा में मतभेद होते हुए भी संवाद और तर्क से ही सत्य तक पहुँचा जाता है। यहाँ पराजय भी सम्मानजनक होती है और विजय भी विनम्रता के साथ स्वीकार की जाती है। यह संवाद न केवल दो विद्वानों के बीच था, बल्कि दो दर्शन धाराओं, मीमांसा और वेदांत, के बीच वैचारिक संगम का प्रतीक था।

भारत सरकार द्वारा जारी यह विशेष डाक टिकट भारतीय बौद्धिक विरासत को सम्मान देने का प्रतीक है। यह कदम नई पीढ़ी को यह संदेश देता है कि भारत का वास्तविक गौरव उसकी ज्ञान परंपरा, तर्कशीलता और दर्शनिक चिंतन में निहित है।

महिषी की यह भूमि अब केवल ऐतिहासिक नहीं रही, बल्कि सांस्कृतिक तीर्थ के रूप में पुनर्जीवित हो रही है। डाक टिकट के माध्यम से देश और दुनिया अब इस महान परंपरा से परिचित होगी।

मण्डन मिश्र और शंकराचार्य का संवाद केवल अतीत की घटना नहीं है, बल्कि आज भी भारतीय चिंतन की आत्मा है। यह सिखाता है कि मतभेद विचारों के विकास का आधार हैं, और सच्चा ज्ञान हमेशा विनम्रता में फलता-फूलता है। डाक विभाग की यह पहल भारत की ज्ञानगंगा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास है।



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