कश्मीर में फिर शुरू होगा परंपरा की वापसी - ‘दरबार मूव’

Jitendra Kumar Sinha
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जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उस ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित करने की घोषणा की है, जो सदी भर से इस प्रदेश की पहचान रही है ‘दरबार मूव’। यह वही परंपरा है, जिसके तहत हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी बदल दी जाती थी, गर्मियों में श्रीनगर और सर्दियों में जम्मू। इस व्यवस्था को 2021 में उपराज्यपाल प्रशासन ने स्थगित कर दिया था, लेकिन अब उमर सरकार इसे फिर से शुरू करने जा रही है।

दरबार मूव की शुरुआत 19वीं सदी में डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह ने की थी। इसका उद्देश्य था प्रशासनिक सुविधा और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप शासन संचालन। श्रीनगर की ठंडी सर्दियों में जब बर्फबारी से रास्ता बंद हो जाता था, तब राजधानी को जम्मू स्थानांतरित किया जाता था। वहीं, गर्मियों में जब जम्मू का तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला जाता था, तब सरकारी दफ्तर और अधिकारी श्रीनगर पहुँच जाते थे। यह प्रक्रिया आमतौर पर अप्रैल और नवंबर में होती थी।

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद प्रदेश की प्रशासनिक संरचना में कई बड़े बदलाव हुए। उपराज्यपाल शासन के दौरान 2021 में ‘दरबार मूव’ को स्थगित कर दिया गया था। तर्क यह दिया गया था कि यह व्यवस्था आधुनिक दौर में “अनावश्यक रूप से खर्चीली और जटिल” हो चुकी है। हर बार राजधानी बदलने में लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च होते थे, क्योंकि हजारों फाइलें, अधिकारी और कर्मचारी एक शहर से दूसरे शहर ले जाए जाते थे। डिजिटल प्रशासन और ई-गवर्नेंस के युग में इसे अप्रासंगिक माना गया था।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि दरबार मूव केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव की परंपरा है। यह जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों के बीच एकता का प्रतीक रहा है। उनके अनुसार, “दरबार मूव केवल फाइलों का स्थानांतरण नहीं है, बल्कि यह जम्मू और श्रीनगर को एक सूत्र में पिरोने वाली परंपरा है। इसे रोकना दोनों क्षेत्रों के बीच दूरी बढ़ाने जैसा था।”

राजनीतिक दृष्टि से यह निर्णय क्षेत्रीय संतुलन बहाल करने का प्रयास माना जा रहा है। जम्मू के व्यापारी संगठन और श्रीनगर के होटल व्यवसायी भी इस कदम से उत्साहित हैं, क्योंकि दरबार मूव के दौरान दोनों शहरों में आर्थिक गतिविधियाँ तेज हो जाती हैं। हालांकि, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों का मानना है कि इससे खर्च और संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा, जो डिजिटल शासन के सिद्धांतों के विपरीत है।

‘दरबार मूव’ की पुनर्स्थापना कश्मीर की परंपरागत पहचान को फिर से जीवंत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह निर्णय जहां एक ओर लोगों के बीच भावनात्मक जुड़ाव बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक दृष्टि से चुनौतियाँ भी ला सकता है। फिलहाल इतना निश्चित है कि उमर अब्दुल्ला की इस घोषणा ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति और जनता में नए संवाद और उम्मीद की लहर पैदा कर दी है।



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