अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बयानबाज़ी कभी-कभी वह असर डाल जाती है, जिसकी कल्पना भी मुश्किल होती है। हाल ही में जापान में अमेरिका के पूर्व राजदूत रहम इमैनुएल ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ट्रंप ने अपने अहंकार, व्यक्तिगत स्वार्थ और पारिवारिक आर्थिक लेन-देन के कारण भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान पहुंचाया है।
इमैनुएल के अनुसार, डॉनल्ड ट्रंप का व्यक्तित्व हमेशा से आत्मकेंद्रित और अहंकारी रहा है। उन्होंने कहा कि ट्रंप केवल उन्हीं नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं जो उनकी प्रशंसा करते हैं या उन्हें "वैश्विक नेता" के रूप में मान्यता देते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य नहीं बताया, तो ट्रंप ने इसे अपने सम्मान पर चोट माना। इसके बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में ठंडक आ गई। कई रणनीतिक और व्यापारिक मुद्दों पर संवाद रुक-रुक कर चलने लगा।
इमैनुएल ने यह भी आरोप लगाया है कि ट्रंप के बेटे को पाकिस्तान से आर्थिक लाभ मिला है, जिसने अमेरिकी नीति को भारत के खिलाफ झुका दिया है। ट्रंप प्रशासन के दौरान कई बार पाकिस्तान को आतंकवाद पर नरम रुख अपनाने का आरोप झेलना पड़ा है। यह वही दौर था जब भारत आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा था और अमेरिका से स्पष्ट समर्थन चाहता था।
ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को कमजोर किया और भारत-अमेरिका के बीच की रणनीतिक साझेदारी भी इससे अछूती नहीं रही है।
ट्रंप कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में दोनों देशों के बीच रक्षा और व्यापार सहयोग में सुधार देखा गया था, लेकिन 2019 के बाद से मतभेद बढ़ने लगा। वीजा नीतियों में बदलाव, व्यापार कर विवाद, और भारत को मिलने वाली विशेष व्यापारिक छूट (GSP) का रद्द होना, यह सभी कदम भारतीय पक्ष को खटकने लगा। इमैनुएल का बयान इसी पृष्ठभूमि में आया है, जो यह दर्शाता है कि संबंधों में आई दरार केवल नीति आधारित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत अहंकार और राजनीतिक हितों का परिणाम भी था।
रहम इमैनुएल का यह आरोप न केवल ट्रंप की कार्यशैली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जब किसी राष्ट्राध्यक्ष की अहंकारपूर्ण सोच और निजी हित कूटनीति पर हावी हो जाएं, तो उसका खामियाजा अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भुगतना पड़ता है। भारत-अमेरिका संबंध दशकों की मेहनत से बने हैं उन्हें व्यक्तियों के स्वार्थ से ऊपर उठकर, आपसी सम्मान और दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टि पर आधारित रहना चाहिए।
