उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया कि प्रदेश में किसी भी समानांतर व्यवस्था या वैकल्पिक प्रमाणन प्रणाली की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत में कानून और शासन की व्यवस्था पहले से ही सशक्त है, ऐसे में किसी धार्मिक या निजी संगठन को उत्पादों या सेवाओं के लिए अलग से सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है। योगी ने कहा कि ऐसी व्यवस्थाएँ केवल भ्रम फैलाने और समाज में विभाजन उत्पन्न करने का काम करती हैं। उनके अनुसार, “देश में पहले से ही एफएसएसएआई जैसे वैधानिक संस्थान हैं जो खाद्य सुरक्षा और मानक तय करते हैं। फिर किसी और प्रमाणन की जरूरत ही क्यों?”
योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद सियासी हलचल तेज हो गई। समाजवादी पार्टी ने सरकार के इस रुख को “धार्मिक ध्रुवीकरण” की राजनीति बताया और आरोप लगाया कि भाजपा सरकार चुनाव से पहले धार्मिक मुद्दों को हवा देकर जनता का ध्यान असली समस्याओं से भटकाना चाहती है। सपा के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार को युवाओं की बेरोजगारी, किसानों की परेशानियों और महंगाई जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, न कि ऐसे फैसले लेने चाहिए जो समाज को बाँटने का काम करें।
वहीं दूसरी ओर, इस मुद्दे पर इस्लामिक संगठनों की प्रतिक्रियाएँ भी सामने आईं। प्रमुख धर्मगुरु मौलाना शाहबुद्दीन रज़वी ने कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन कोई राजनीतिक या विभाजनकारी विषय नहीं है, बल्कि धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है जो मुसलमानों को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि उनके खाद्य पदार्थ इस्लामी नियमों के अनुसार हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को किसी संस्था की प्रक्रिया पर आपत्ति है, तो बातचीत के जरिए समाधान निकाला जाना चाहिए, न कि प्रतिबंध या धमकी के जरिए।
हालांकि, योगी सरकार के समर्थक इसे कानून और प्रशासनिक व्यवस्था की मजबूती के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि किसी भी तरह का ‘प्राइवेट सर्टिफिकेशन’ आर्थिक शुद्धता और नियामक पारदर्शिता के खिलाफ है। ऐसे प्रमाणपत्र अक्सर विदेशों में उत्पादों के निर्यात पर भी असर डालते हैं, क्योंकि कई बार इनका उपयोग व्यावसायिक या धार्मिक दबाव बनाने के लिए किया जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ का यह बयान आगामी चुनावों से पहले एक स्पष्ट संदेश है कि उनकी सरकार समान नागरिक और आर्थिक व्यवस्था के पक्ष में है, जहाँ किसी भी वर्ग या संस्था को अलग से मान्यता नहीं दी जाएगी। हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर पहले भी विवाद उठ चुके हैं, खासकर तब जब कुछ संगठनों ने दावा किया था कि इससे गैर-मुस्लिम व्यापारियों को नुकसान होता है और बाजार में भेदभाव बढ़ता है।
इस पूरे विवाद के बीच यह साफ है कि हलाल सर्टिफिकेशन अब केवल धार्मिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का केंद्र बन चुका है। योगी आदित्यनाथ का यह कदम एक ओर जहाँ समर्थकों के बीच सख्त प्रशासनिक छवि को मजबूत करता है, वहीं विपक्ष के लिए इसे हिंदुत्व राजनीति का प्रतीक बताने का मौका भी देता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का असर व्यापारिक नीतियों, धार्मिक संगठनों और राज्य की राजनीति पर किस तरह पड़ता है।
