बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 - पहले चरण में 'होम वोटिंग' की हुई शुरुआत

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 के पहले चरण में बुधवार से दो दिवसीय 'होम वोटिंग' सेवा की शुरुआत हुई। दीघा विधानसभा क्षेत्र के बुजुर्ग मतदाता 94 वर्षीय श्याम नारायण सिन्हा बुधवार की सुबह अपने घर पर मतदान कर पहली सूची में शामिल हुए। चुनाव आयोग की टीम फाइलों की औपचारिकता और चेहरे पर जिम्मेदारी की गंभीरता के साथ उनके दरवाजे पर पहुंची।

श्याम नारायण सिन्हा के पुत्र इंजीनियर हेमंत कुमार ने बताया कि मतदान पूरी गोपनीयता के साथ कराया गया।वाकई, यह सिर्फ एक प्रक्रियात्मक काम नहीं था, यह उस पीढ़ी के सम्मान का क्षण था जिसने देश को आजादी से लेकर आज तक की यात्रा को देखा है।

'होम वोटिंग' की सुविधा दो वर्गों के लिए तय की गई है, जिसमें 80 साल से अधिक उम्र वाले नागरिक और दिव्यांग मतदाता शामिल हैं। 

जो मतदाता इस श्रेणी में आते हैं, वे पहले आवेदन करते हैं, उसके बाद चुनाव आयोग की टीम उनके घर आकर मतदान कराती है। यह व्यवस्था किसी सरकारी आदेश जैसी नहीं लगती, यह लोकतंत्र की कोमलता और संवेदनशीलता की असली मिसाल है।

पहले मतदान केंद्र ही लोकतंत्र का मंदिर माना जाता था। अब यह मंदिर उन लोगों के घरों तक जा रहा है जिनके कदम लड़खड़ाते हैं, आंखें धुंधली हो चुकी हैं या जीवन की कठिनाई उन्हें बाहर कदम रखने नहीं देती। इससे न सिर्फ मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश है, बल्कि नागरिकों के सम्मान और सहभागिता को भी बढ़ावा है।

एक तरह से देखा जाए, तो यह सेवा उस पुराने पेड़ जैसी है जो पतझड़ के मौसम में भी अपने पत्तों को सहेजने की कोशिश करती है।  बुजुर्ग मतदाताओं के लिए यह सम्मान एक मधुर स्मृति की तरह है, मानो देश कह रहा हो, “आपने हमें खड़ा किया, अब आपकी आवाज सुनी जाएगी, चाहे आप जहाँ हों.”

आज के दौर में जब तकनीक चुनाव प्रक्रिया को बदल रही है, 'होम वोटिंग' लोकतंत्र के मानवीय चेहरे को और उजागर करती है। यह सेवा गुरुवार को समाप्त हो जाएगी, लेकिन इसका संदेश लंबे समय तक गूंजेगा कि वोट सिर्फ अधिकार नहीं, हर उम्र के लिए सम्मान भी है.

बिहार के इस प्रयोग से उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में यह सेवा पूरे देश में और बेहतर रूप में लागू होगी, क्योंकि लोकतंत्र तभी पूर्ण होता है जब हर आवाज सुनी जाए, चाहे वह स्कूल की पहली घंटी जैसी उत्साही हो या बुज़ुर्ग दादाजी की धीमी, पर दृढ़ आवाज जैसी। मतपेटी के पहियों ने यह साबित किया है कि लोकतंत्र सिर्फ चुनाव नहीं, संवेदना का पर्व है।



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