एफआईआर की कॉपी - शिकायतकर्ता को मिलेगी - उनकी अपनी भाषा में

Jitendra Kumar Sinha
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देश में न्याय की पहुंच को आम लोगों की भाषा तक ले जाने की दिशा में एक अहम कदम उठाया गया है। अब केस दर्ज कराने के बाद शिकायतकर्ता को उसकी मातृभाषा में एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाएगी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के निदेशक आईपीएस आलोक रंजन ने इस संबंध में बिहार सहित सभी राज्यों की पुलिस को पत्र जारी किया है। इस निर्णय से विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय इलाकों में रहने वाले लोगों को काफी राहत मिलेगी, जहां अधिकांश लोग हिन्दी या अंग्रेजी में एफआईआर पढ़ने या समझने में असमर्थ होते हैं।

अब तक पुलिस थानों में केस दर्ज कराने के बाद शिकायतकर्ता को एफआईआर की कॉपी हिन्दी या अंग्रेजी में दी जाती थी। कई बार शिकायतकर्ता उस कॉपी को पढ़ ही नहीं पाते थे और उन्हें यह भी समझ नहीं आता था कि पुलिस ने वास्तव में उनकी शिकायत को किस रूप में दर्ज किया है। लेकिन अब पुलिस यह पूछेगी कि शिकायतकर्ता अपनी एफआईआर की प्रति किस भाषा में चाहते हैं। उसके बाद वही कॉपी उनकी बताई गई भाषा में उपलब्ध कराई जाएगी।

एनसीआरबी की इस नई व्यवस्था के तहत कुल 23 भारतीय भाषाओं में एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाएगी। इनमें हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली, संथाली, नेपाली, असमी, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु, उर्दू और मणिपुरी जैसी भाषाएं शामिल हैं।

इस पहल से बिहार, झारखंड, पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तर भारत के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को विशेष लाभ मिलेगा। जैसे- बिहार के मिथिला क्षेत्र के लोगों को मैथिली में, झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के लोगों को संथाली में और सीमांचल एव उत्तर बिहार के क्षेत्रों में रहने वालों को नेपाली में एफआईआर कॉपी प्राप्त करने की सुविधा मिलेगी।

यह कदम ‘न्याय सबके लिए, भाषा की बाधा बिना’ के सिद्धांत को मजबूत करता है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को यह सुविधा देकर सरकार ने यह संदेश दिया है कि भाषा अब न्याय के रास्ते में दीवार नहीं बनेगी। एनसीआरबी के निदेशक आलोक रंजन के अनुसार, “एफआईआर की भाषा शिकायतकर्ता की समझ के अनुसार होनी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों और दर्ज मामले की प्रकृति को भली-भांति जान सकें।”

अब एफआईआर सिस्टम डिजिटल हो चुका है, जिससे किसी भी भाषा में ट्रांसलेटेड कॉपी निकालना तकनीकी रूप से संभव है। इस फैसले से न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि पुलिस और आम जनता के बीच भरोसा भी मजबूत होगा।

एफआईआर की कॉपी मातृभाषा में देने का निर्णय भारत के न्यायिक तंत्र को आम जनता के और करीब लाने वाला है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी व्यक्ति भाषा की वजह से न्याय से वंचित न रहे। यह कदम न सिर्फ प्रशासनिक सुधार है, बल्कि भाषाई सम्मान और नागरिक सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल भी है।



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