जयदुर्गा शक्तिपीठ (देवी सती का हृदय गिरा था)

Jitendra Kumar Sinha
0

 

आभा सिन्हा, पटना


भारतभूमि संतों, ऋषियों, तपस्वियों और देवी-देवताओं की उपासना से अलंकृत है। यहाँ का प्रत्येक प्रदेश किसी न किसी धार्मिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व से जुड़ा हुआ है। विशेष रूप से शक्ति की उपासना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। यही कारण है कि देशभर में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, जिनमें से एक अत्यंत पावन और प्रख्यात शक्तिपीठ “जयदुर्गा शक्तिपीठ” है। यह शक्तिपीठ झारखंड राज्य के देवघर जिला के वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहाँ माता सती का हृदय गिरा था। माता की शक्ति जयदुर्गा और भैरव वैद्यनाथ कहलाते हैं।

जयदुर्गा शक्तिपीठ को समझने के लिए शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा जानना आवश्यक है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने जब अपनी कन्या सती और उनके पति भगवान शिव का अपमान किया, तब सती ने यज्ञकुंड में आत्मदाह कर लिया। दुःख और क्रोध से व्याकुल भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को कंधे पर लेकर ब्रह्मांड भर में विचरण करने लगे। उनके इस विकराल रूप से सृष्टि संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंग-प्रत्यंग को खंडित किया। जहाँ-जहाँ वे अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इन्हीं में से एक देवघर का स्थान है, जहाँ माता का हृदय गिरा और यह स्थल जयदुर्गा शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुआ।

जयदुर्गा शक्तिपीठ झारखंड राज्य के देवघर जिला में अवस्थित है। देवघर को ही वैद्यनाथधाम या बैद्यनाथधाम भी कहा जाता है। यह स्थान झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में पड़ता है। यहाँ पहुँचने के लिए मुख्य साधन रेल और सड़क मार्ग हैं। देवघर रेलवे स्टेशन से मंदिर परिसर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। राष्ट्रीय राजमार्गों से देवघर सीधे पटना, कोलकाता, राँची, भागलपुर और अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। देवघर में हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन हुआ है, जिससे यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए और भी सुविधा हो गई है।

देवघर का वैद्यनाथधाम संपूर्ण भारतवर्ष के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहाँ भगवान शिव को वैद्यनाथ के रूप में पूजा जाता है। यही कारण है कि इस शक्तिपीठ में भैरव स्वरूप में भगवान शिव वैद्यनाथ कहे जाते हैं। अद्वितीय विशेषता यह है कि एक ही परिसर में ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों स्थित हैं। भक्तजन यहाँ माता जयदुर्गा और भगवान वैद्यनाथ की संयुक्त उपासना कर अपने जीवन को पवित्र मानते हैं।

देवघर का यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही धार्मिक यात्राओं का प्रमुख केंद्र रहा है। शिव पुराण, कालिकापुराण और देवीभागवत पुराण में जयदुर्गा शक्तिपीठ का उल्लेख मिलता है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, यहाँ पर माता सती का हृदय गिरने के पश्चात भगवान शिव ने लम्बे समय तक तपस्या की। भक्त कवि और संतों की रचनाओं में भी वैद्यनाथधाम और शक्तिपीठ का उल्लेख मिलता है।

माता को यहाँ जयदुर्गा कहा जाता है। "जय" का अर्थ है विजय, और "दुर्गा" का अर्थ है दुष्टों का विनाश करने वाली देवी। यह नाम दर्शाता है कि माता अपने भक्तों को हर संकट से विजय दिलाती हैं। हृदयस्थल पर गिरी हुई शक्ति होने के कारण, यहाँ माता को करुणा, भक्ति और वात्सल्य की मूर्त स्वरूप भी माना जाता है।

प्रत्येक शक्तिपीठ में माता के साथ भैरव की भी पूजा होती है। देवघर में भैरव भगवान वैद्यनाथ के रूप में पूजे जाते हैं। वैद्यनाथ का अर्थ है रोगों का नाश करने वाले भगवान। मान्यता है कि यहाँ भगवान शिव ने राक्षस रावण को उसके तपस्या के बाद वरदान स्वरूप ज्योतिर्लिंग प्रदान किया। इसी कारण से यहाँ के जलाभिषेक का विशेष महत्व है।



जयदुर्गा शक्तिपीठ और वैद्यनाथधाम का मंदिर परिसर अत्यंत भव्य और दिव्य है। मुख्य मंदिर ऊँची शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में काले पत्थरों पर की गई नक्काशी प्राचीन कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। परिसर में छोटे-छोटे कई मंदिर भी बने हैं, जिनमें पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ विराजमान हैं। मंदिर के चारों ओर विशाल प्रांगण है, जिसमें श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं।

देवघर का सबसे बड़ा मेला सावन माह में लगता है। देशभर से लाखों कांवड़िए गंगा जल लेकर यहाँ भगवान शिव और माता जयदुर्गा का जलाभिषेक करते हैं। माता जयदुर्गा की विशेष पूजा होती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ और हवन अनिवार्य माना जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है, जिसमें बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश और यहाँ तक कि नेपाल से भी भक्त आते हैं। प्रतिदिन चार बार पूजा, आरती और भोग अर्पित किया जाता है। 

श्रद्धालु मानते हैं कि माता जयदुर्गा की पूजा करने से हृदय के विकार, मानसिक रोग और भावनात्मक संकट दूर होते हैं। अविवाहित लड़कियाँ यहाँ विवाह-सौभाग्य की कामना करती हैं। दंपति संतान प्राप्ति हेतु भी यहाँ पूजा-अर्चना करते हैं। भक्त अपने दुखों को दूर करने के लिए 'मानसिक संकल्प' या 'मानता' बाँधते हैं और पूर्ण होने पर पुनः आकर माता को धन्यवाद अर्पित करते हैं।

देवघर का जयदुर्गा शक्तिपीठ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ का श्रावणी मेला लोकगीतों, भजनों और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का बड़ा केंद्र होता है। संथाल परगना की आदिवासी संस्कृति भी इस क्षेत्र में मिश्रित है, जिससे इसकी पहचान और भी विशेष हो जाती है। यहाँ की पाहन पूजा और स्थानीय लोकविश्वास वैदिक परंपरा से जुड़कर एक अनोखा सामंजस्य रचते हैं।

जयदुर्गा शक्तिपीठ और वैद्यनाथधाम केवल आस्था का स्थल नहीं है, बल्कि पर्यटन का भी केंद्र है। यहाँ देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। मंदिर परिसर के अतिरिक्त देवघर में नौलखा मंदिर, सप्तर्षि तीर्थ, हरिला झरना, और त्रिकुट पर्वत जैसे स्थल भी दर्शनीय हैं। धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ प्राकृतिक पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान आकर्षक है।

सरकार और मंदिर प्रबंधन समिति ने यहाँ यात्रियों के लिए कई आधुनिक सुविधाएँ विकसित की हैं। मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण किया गया है। श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाएँ, अतिथि गृह और होटलों की व्यवस्था है। चिकित्सा केंद्र और सुरक्षा व्यवस्था भी यहाँ सुनिश्चित की गई है। ऑनलाइन दर्शन और डिजिटल सुविधा का प्रावधान भी किया जा चुका है।

मैथिली और भोजपुरी साहित्य में जयदुर्गा और वैद्यनाथ की महिमा का विशेष वर्णन मिलता है। लोकगीतों में 'बैद्यनाथ धाम चलीं, मैया के दर्शन करीं' जैसे गीत लोकप्रिय हैं। संत कवियों ने इसे 'हृदयस्थल की देवी' कहकर संबोधित किया है।

जयदुर्गा शक्तिपीठ देवघर न केवल झारखंड बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष का एक अनुपम धाम है। यहाँ माता सती का हृदय गिरा था, इसलिए यह स्थल भक्ति, करुणा और वात्सल्य का केंद्र माना जाता है। माता जयदुर्गा अपने भक्तों को हृदय की पवित्रता, आंतरिक शक्ति और सभी संकटों पर विजय का आशीर्वाद देती हैं। वहीं भैरव वैद्यनाथ भक्तों के सभी रोग और दुःख दूर करते हैं। धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से यह स्थल अमूल्य धरोहर है। 



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top