आभा सिन्हा, पटना
हिन्दू संस्कृति में गीता को जीवन का अद्वितीय मार्गदर्शक माना गया है। कहा जाता है कि यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि जीवन प्रबंधन की अनोखी पाठशाला है। जब-जब व्यक्ति कठिनाई में पड़ता है, तब-तब गीता के उपदेश उसे राह दिखाता है। इसी तरह, मंदिर को देवताओं का निवास स्थल और पूजा-पाठ का पवित्र स्थान माना गया है। शुद्धता और आस्था यहाँ सर्वोपरि है। इसलिए गीता जीवन जीने की कला सिखाता है और मंदिर की मर्यादाएँ आस्था का अनुशासन सिखाता है। दोनों मिलकर जीवन को संतुलित और सफल बनाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को “गीता जयंती” मनाई जाती है। इसी दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसे मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन लोग पूजा-अर्चना करते हैं, गीता का पाठ करते हैं और संकल्प लेते हैं कि वे धर्म, सत्य और कर्मपथ पर चलेंगे।
गीता के कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इनमें कर्म, ज्ञान, भक्ति, योग, संतुलन और आत्मबोध का अद्भुत समन्वय है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन का मूल मंत्र है, निष्काम कर्म यानि फल की चिंता किए बिना कर्म करना।
गीता कहती है कि क्रोध से बुद्धि नष्ट हो जाती है और व्यक्ति अपने ही अहित का कारण बनता है। क्रोध- भ्रम- तर्क का नाश- आत्मविनाश। जीवन में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले क्रोध को वश में करना जरूरी है। भगवान श्रीकृष्ण का स्पष्ट संदेश है कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” यानि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं। सफलता मिले तो विनम्र रहें। असफलता मिले तो सीख लें। मन चंचल है, इच्छाएँ असीम हैं। कृष्ण कहते हैं कि “असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।” लेकिन अभ्यास और वैराग्य से मन को काबू में किया जा सकता है। यही आत्मबल सफलता की कुंजी है। जीवन में न सुख की अति करें, न दुख की। संतुलन ही स्थायी शांति देता है। सुख में उन्माद न करें। दुख में निराश न हो। प्रेम, धन, शक्ति, सबका संतुलित प्रयोग करें। गीता कहती है “आत्मानं विद्धि।” जो स्वयं को जान लेता है, वह अपनी खूबियों और कमियों को पहचानकर जीवन को सही दिशा में ले जाता है। आत्मज्ञान ही आत्मबल है।
सुबह स्नान करके “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें। पीले फूलों से श्रीकृष्ण की पूजा करें। गुलाब जल और केसर से श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएँ, उसमें तुलसी पत्ता अवश्य डालें। गीता जयंती के दिन केले के पेड़ लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इन उपायों से जीवन में सुख-समृद्धि और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गीता आंतरिक शुद्धता का संदेश देती है, वहीं मंदिर बाहरी शुद्धता का अनुशासन सिखाता है। मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने के कुछ नियम हैं, जिनका पालन हर भक्त को करना चाहिए। मंदिर पवित्र स्थल है। यहाँ चमड़े की वस्तुएँ (पर्स, बेल्ट, जैकेट, बैग आदि) नहीं ले जानी चाहिए। साफ-सुथरे कपड़े पहनकर जाएँ। शराब या मांसाहार का सेवन कर मंदिर न जाएँ। मंदिर में ऊँची आवाज या मोबाइल का उपयोग न करें। भगवान को चढ़ाई गई वस्तु शुद्ध होनी चाहिए। गीता सिखाती है कि मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करें। मंदिर सिखाता है कि शरीर, आचरण और वातावरण को शुद्ध करें। दोनों मिलकर जीवन को दिव्यता और संतुलन से भर देता है।
गीता जयंती केवल एक त्योहार नहीं बल्कि जीवन जीने की कला की याद है। इसके पाँच मुख्य उपदेश, क्रोध पर नियंत्रण, कर्म पर भरोसा, मन पर नियंत्रण, संतुलन और आत्मज्ञान, हर संकट से उबरने का मार्ग दिखाता हैं। इसी तरह मंदिर की मर्यादा और शुद्धता याद दिलाती है कि आस्था केवल भावनाओं से नहीं, अनुशासन और नियमों से भी जुड़ी होती है।
