आभा सिन्हा, पटना
भारतभूमि देवी महाशक्ति की उपासना का केंद्र रही है। संपूर्ण देश में फैले 51 शक्तिपीठों में “कालिका शक्तिपीठ” (कालीघाट, कोलकाता) का स्थान अत्यंत प्रमुख और पूजनीय है। यह वही स्थल है जहाँ माता सती के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यहाँ विराजमान शक्ति ‘कालिका’ कहलाती हैं और उनके भैरव ‘नकुशील’ नाम से पूजित हैं। यह शक्तिपीठ न केवल बंगाल की, बल्कि समूचे भारत की धार्मिक चेतना का केंद्र है।
कालीघाट कोलकाता के दक्षिणी भाग में स्थित है। माना जाता है कि यह स्थान प्राचीन काल से तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का केंद्र रहा है। “कालीघाट” नाम ही माँ काली से उत्पन्न हुआ है, जो ‘काल’ (समय) और ‘घाट’ (स्थान) के संयोग का द्योतक है।
प्राचीन ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, यहाँ के मंदिर का उल्लेख गुप्तकालीन अभिलेखों में भी मिलता है। कालांतर में यह स्थल बंगाल के नवजागरण, भक्ति और तांत्रिक परंपरा का जीवंत प्रतीक बन गया है।
शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा शिव पुराण, कलिका पुराण और देवी भागवत पुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है। जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपमान सह न पाने के कारण अपने प्राण अग्नि में समर्पित कर दिए, तब भगवान शिव शोकाकुल होकर सती का शव लेकर तांडव करने लगे। सृष्टि संतुलन के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड किया। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने। इन्हीं में से एक है कालीघाट का कालिका शक्तिपीठ, जहाँ बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था।
कालीघाट मंदिर का वर्तमान स्वरूप लगभग 18वीं शताब्दी का माना जाता है। बंगाल शैली की विशिष्ट झरोखेदार छत, ऊँचा गर्भगृह और पारंपरिक नवरत्न शिखर इसे अद्भुत बनाता है।
मुख्य गर्भगृह में माँ कालिका की मूर्ति कृष्णवर्णा, जिह्वा बाहर निकली हुई, और चार भुजाओं वाली है, जो सृष्टि, पालन, संहार और वरदान का प्रतीक माना जाता है। उनकी मूर्ति के चारों ओर सुनहरी आभा और भक्तों की आराधना का गूंजता स्वर वातावरण को शक्ति से भर देता है।
‘काली’ शब्द का अर्थ होता है, समय, मृत्यु और संहार की अधिष्ठात्री। माँ कालिका का रूप भले ही उग्र दिखाई दे, किंतु वह संहार के माध्यम से सृष्टि के पुनर्जन्म की प्रतीक हैं। वह अज्ञान का नाश कर सत्य, ज्ञान और आत्मबोध का प्रकाश फैलाती हैं। उनका कृष्णवर्ण शरीर, ब्रह्मांडीय अंधकार का द्योतक है, उनकी लाल जिह्वा पापों के भक्षण की और मुण्डमाला जीवन की क्षणभंगुरता की स्मृति दिलाती है।
हर शक्तिपीठ की तरह, कालिका शक्तिपीठ में भी भैरव की उपस्थिति अनिवार्य है। यहाँ के भैरव नकुशील कहलाते हैं। ‘नकुशील’ का अर्थ है ‘नखों जितने सूक्ष्म रूप में स्थित’, अर्थात् वह सर्वव्यापी शक्ति हैं जो माँ की सेवा और रक्षण में सदैव तत्पर रहते हैं। भक्त पहले भैरव नकुशील का दर्शन करते हैं और फिर माँ कालिका की पूजा से अपने जीवन को पूर्णता देते हैं।
कालीघाट में दैनिक पूजा के साथ-साथ अनेक विशेष पर्व मनाए जाते हैं, जिसमें काली पूजा (दीपावली की रात्रि), अमावस्या और नवमी तिथि की विशेष आरती, दुर्गा अष्टमी और महालया, शिवरात्रि एवं नवरात्रि के नौ दिन की साधना। इन अवसरों पर मंदिर प्रांगण में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। कालीघाट के पुजारी तांत्रिक विधियों से देवी की आराधना करते हैं, जिनमें बलिदान, मंत्रोच्चार, और दीप-अर्पण प्रमुख हैं।
कालीघाट शक्तिपीठ सदियों से तांत्रिक साधना का केंद्र रहा है। कई सिद्ध साधकों, जैसे रामकृष्ण परमहंस, बामाखेपा, और कमाख्या तंत्राचार्य, ने यहाँ साधना की। रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली को “सजीव, साक्षात् माँ” के रूप में अनुभव किया था। उन्होंने कहा कि “माँ काली ही ब्रह्म हैं, वही सृष्टि और साक्षात् प्रेम का स्रोत हैं।”
कालीघाट में प्रवेश करते ही एक अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है। घंटियों की ध्वनि, शंखनाद और ‘जय माँ काली’ के उद्घोष से वातावरण गूंज उठता है। भक्त यहाँ संकल्प, मोक्ष, और भय-निवारण की प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माँ कालिका के चरणों में शीश झुकाता है, उसके जीवन से अंधकार दूर होकर ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
कालीघाट मंदिर के कारण ही कोलकाता (Kolkata) का नाम ‘काली-काता’ पड़ा। यह शहर माँ की कृपा से सदा जीवंत, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक बना हुआ है। कालीघाट केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि बंगाल की भक्ति, शक्ति और तांत्रिक परंपरा का जीवित प्रतीक है।
माँ कालिका का यह पीठ यह सिखाता है कि संहार भी सृजन का मार्ग है। जब भीतर के अंधकार, अहंकार, भय, मोह और द्वेष, को नष्ट करते हैं, तभी आत्मा का प्रकाश प्रकट होता है। माँ कालिका इस परिवर्तन की अधिष्ठात्री हैं, जो अज्ञान का विनाश कर जीवन में नवज्योति लाती हैं।
कालिका शक्तिपीठ केवल एक पवित्र स्थान नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जहाँ भक्त अपनी आत्मा को माँ की गोद में समर्पित करता है। माँ कालिका के चरणों में जो शरण पाता है, उसे संसार का कोई भय नहीं सताता है। उनकी कृपा से ही जीवन के संघर्ष रूपी अंधकार का अंत होता है, और आरंभ होता है।
