भारत जैसे विशाल देश में गरीबी केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक असमानता, अवसरों की कमी और व्यवस्था की विफलता का भी प्रतीक रही है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक केंद्र और राज्य सरकारों ने गरीबी मिटाने के कई प्रयास किए, परंतु ‘अत्यंत गरीबी’ यानि वह स्थिति जिसमें व्यक्ति अपनी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाता, देश के कई हिस्सों में आज भी एक कठोर सच्चाई बनी हुई है। लेकिन अब केरल ने इतिहास रच दिया है। इस दक्षिण भारतीय राज्य ने आधिकारिक रूप से “अत्यंत गरीबी मुक्त राज्य” बनकर न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई मिसाल पेश की है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व में चलाया गया “स्टेट पावर्टी एलिमिनेशन मिशन” यानि नवकेरला मिशन आज उस सामाजिक-आर्थिक प्रयोग का उदाहरण बन चुका है, जिसमें सरकार, समाज, स्थानीय निकाय, स्वयंसेवी संस्थाएँ और आम नागरिक, सभी ने मिलकर गरीबी के खिलाफ एकजुट मोर्चा खोला।
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की दैनिक आय 1.90 अमेरिकी डॉलर (भारतीय मुद्रा में लगभग ₹158.10) से कम है, तो उसे “अत्यंत गरीब” श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन केरल ने इस परिभाषा को केवल आर्थिक आय तक सीमित नहीं रखा। मुख्यमंत्री विजयन ने घोषणा की कि “गरीबी को केवल पैसों से नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा से भी मापा जाना चाहिए।” इसीलिए राज्य सरकार ने गरीबी की परिभाषा में चार प्रमुख मानक जोड़े, भोजन की उपलब्धता और पोषण स्तर, आय और रोजगार की स्थिरता, स्वास्थ्य और स्वच्छता तक पहुँच तथा आवास की सुरक्षा और सामाजिक गरिमा। इस बहुआयामी दृष्टिकोण ने केरल के प्रयासों को मात्र आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि एक सामाजिक पुनर्जागरण का स्वरूप दे दिया।
यह मिशन वर्ष 2021 में राज्य सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना के रूप में शुरू हुआ था। इसे ‘एक्सट्रीम पावर्टी एराडिकेशन प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया। शुरुआत में यह लक्ष्य असंभव सा प्रतीत हुआ, क्योंकि 2021 के सर्वेक्षण में लगभग 64,000 परिवार राज्य में अत्यंत गरीबी रेखा से नीचे दर्ज किया गया था। राज्य सरकार ने तय किया कि केवल अनुदान या नकद सहायता से यह समस्या खत्म नहीं होगी। इसके बजाय हर परिवार के सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल का गहन अध्ययन किया गया। स्थानीय निकायों, स्वयंसेवी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों ने घर-घर जाकर डेटा एकत्र किया। सरकार ने इसे “लक्ष्य नहीं, जनआंदोलन” कहा। यही कारण है कि यह मिशन कागजी योजना न रहकर एक व्यापक सामाजिक अभियान बन गया।
केरल का यह अभियान केवल सरकारी प्रयास नहीं था, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना का भी परिणाम था। राज्य की 1,034 ग्राम पंचायतों और 93 नगरपालिकाओं ने इस मिशन में सीधा सहयोग दिया। ‘कुडुम्बश्री मिशन’ जो कि राज्य की महिला स्व-सहायता समूहों का नेटवर्क है, ने इस मुहिम में निर्णायक भूमिका निभाई। कुडुम्बश्री की कार्यकर्ता महिलाएँ गांव-गांव जाकर न केवल सर्वे करती रहीं, बल्कि परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण भी देती रहीं। स्वयंसेवी संस्थाएँ जैसे केरला सोशल सर्विस फोरम, मिशन इंडिया ट्रस्ट, और रेड क्रॉस सोसाइटी ने मिलकर गरीब परिवारों को स्वास्थ्य बीमा, शिक्षा सामग्री, पोषण आहार और आत्मरोजगार योजनाओं से जोड़ा। राज्य के स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों ने भी सर्वेक्षण कार्य में स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया। इस प्रकार, यह मिशन ‘सरकार की योजना’ से आगे बढ़कर ‘जनभागीदारी का आंदोलन’ बन गया।
केरल सरकार ने इस मिशन को चार प्रमुख स्तंभों पर आधारित किया। (क) भोजन और पोषण- राज्य ने सुनिश्चित किया कि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए। इसके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को तकनीकी रूप से सशक्त किया गया। ‘अन्नम पथया योजना’ के तहत अत्यंत गरीब परिवारों को घर-घर राशन और पौष्टिक भोजन पहुंचाने की व्यवस्था की गई। सामाजिक रसोईघरों और सामुदायिक भोजन केंद्रों (जैसे जनकैन्टीन) ने भी इस प्रयास को गति दी। (ख) स्वास्थ्य और चिकित्सा- स्वास्थ्य क्षेत्र में केरल पहले से ही देश में अग्रणी रहा है। इस मिशन में प्रत्येक अत्यंत गरीब परिवार के लिए ‘कायाकल्प स्वास्थ्य बीमा कार्ड’ जारी किया गया। इसमें सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क इलाज, प्राथमिक स्वास्थ्य जांच और दवा वितरण की सुविधा दी गई। स्वास्थ्यकर्मी नियमित रूप से इन परिवारों के घरों का दौरा करते रहे। (ग) आय और रोजगार- आर्थिक आत्मनिर्भरता पर विशेष ध्यान दिया गया। ‘कुडुम्बश्री एंटरप्राइज’ के तहत महिलाओं को लघु उद्योग, हस्तशिल्प, बागवानी और मछली पालन के क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया गया। राज्य सरकार ने इन समूहों को जीरो इंटरेस्ट लोन और बाजार उपलब्धता की गारंटी दी। इससे हजारों परिवार स्थायी रोजगार से जुड़े और गरीबी रेखा से ऊपर उठे। (घ) आवास और गरिमा- ‘लाइफ मिशन’ के तहत हर परिवार को पक्का घर देने का लक्ष्य रखा गया। राज्य में झुग्गी बस्तियों को चरणबद्ध तरीके से हटाकर आधुनिक सामुदायिक आवास बनाए गए। आवास को केवल छत नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा का प्रतीक माना गया।
इस अभियान की सफलता में टेक्नोलॉजी का विशेष योगदान रहा। राज्य सरकार ने ‘पावर्टी ट्रैकिंग पोर्टल’ विकसित किया, जिसमें प्रत्येक परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का डेटा अपडेट किया जाता रहा। यह पोर्टल पंचायत स्तर से लेकर सचिवालय तक पारदर्शी निगरानी प्रणाली बना। किसी भी सहायता योजना का लाभ सीधे बैंक खाते में भेजा गया, इससे बिचौलियों और भ्रष्टाचार पर लगाम लगी।
केरल की शिक्षा नीति हमेशा से समावेशी रही है। गरीबी उन्मूलन मिशन के दौरान राज्य ने अत्यंत गरीब परिवारों के बच्चों के लिए ‘मिशन एजुकेट एवरी चाइल्ड’ अभियान चलाया। सभी बच्चों को डिजिटल लर्निंग उपकरण, मुफ्त किताबें और यूनिफॉर्म दी गईं। इसके अलावा, स्कूल ड्रॉपआउट दर को शून्य करने का लक्ष्य रखा गया। शिक्षा को गरीबी के खिलाफ सबसे सशक्त हथियार माना गया।
भारत में सबसे उच्च ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) वाला राज्य केरल है। यहां शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, और औसत जीवन प्रत्याशा—सभी राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। अत्यंत गरीब परिवारों की पहचान होने के बाद उन्हें ‘फ्री मेडिकल कैंप्स’ और ‘मोबाइल क्लिनिक’ से जोड़ा गया। इससे बीमारियों के कारण होने वाली आर्थिक तबाही को रोका गया।
केरल के सामाजिक सुधार आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका हमेशा अग्रणी रही है। इस मिशन में भी महिला स्व-सहायता समूहों ने नेतृत्व किया। कुडुम्बश्री की महिलाएँ न केवल आर्थिक सशक्तिकरण की प्रतीक बनीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की वाहक भी बन गईं। उन्होंने गाँवों में ‘गरिमा सभा’ आयोजित कर यह सुनिश्चित किया कि कोई भी महिला या परिवार समाज से अलग-थलग न रहे।
इस मिशन में चर्च, मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारा समितियों तक ने भाग लिया। उन्होंने जरूरतमंद परिवारों को सामुदायिक सहयोग दिया — चाहे वह शिक्षा हो, भोजन हो या आवास निर्माण। इस धार्मिक एकता ने केरल की सांप्रदायिक सौहार्द की छवि को और भी मजबूत बनाया। इसी कारण इसे “सोशल हार्मोनी के साथ सोशल जस्टिस का मॉडल” कहा जा रहा है।
किसी भी सामाजिक अभियान की तरह, इस मिशन को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कुछ आलोचकों ने कहा कि यह सफलता आंशिक है, क्योंकि गरीबी केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक संरचना से भी जुड़ी है। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान बेरोजगारी में बढ़ोतरी ने अस्थायी संकट पैदा किया। फिर भी, राज्य सरकार ने स्थानीय स्तर पर ‘रोजगार गारंटी स्कीम’ और ‘कम्युनिटी हेल्प ग्रुप्स’ के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान किया।
भारत में गरीबी उन्मूलन की कई केंद्रीय योजनाएँ चल रही हैं, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा, आयुष्मान भारत, और खाद्य सुरक्षा अधिनियम। लेकिन केरल की सफलता इस बात में है कि उसने इन योजनाओं को एकीकृत ढंग से लागू किया। जहाँ अन्य राज्यों में योजनाएँ विभागीय सीमाओं में बँटकर रह जाती हैं, वहीं केरल ने इन्हें ‘एक परिवार, एक योजना’ मॉडल में बदला। इसके अलावा, राज्य की उच्च साक्षरता दर (96%), बेहतर स्वास्थ्य ढांचा और लोकतांत्रिक स्थानीय शासन प्रणाली ने भी इस उपलब्धि को संभव बनाया।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने घोषणा की है कि 1 नवंबर 2025 को राज्य औपचारिक रूप से “अत्यंत गरीबी मुक्त” होने की घोषणा करेगा। यह दिन केरल पिरवी दिवस (राज्य स्थापना दिवस) भी है, यानि वही दिन जब 1956 में केरल राज्य अस्तित्व में आया था। इस प्रकार, केरल अपने जन्मदिन पर एक नया अध्याय जोड़ेगा
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने केरल मॉडल की सराहना करते हुए कहा है कि “केरल ने बहुआयामी गरीबी उन्मूलन का नया मानक स्थापित किया है।” विश्व बैंक ने भी इस मॉडल को ‘पीपल-सेंट्रिक डेवलपमेंट फ्रेमवर्क’ बताया है। अब उम्मीद है कि भारत के अन्य राज्य भी इस दिशा में प्रेरणा लेंगे और अपने-अपने सामाजिक ढांचे के अनुरूप मॉडल तैयार करेंगे।
केरल अब अपनी अगली योजना ‘Sustainable Livelihoods for All’ पर काम कर रहा है। इसका उद्देश्य केवल गरीबी खत्म करना नहीं है, बल्कि लोगों को “सतत विकास और गरिमापूर्ण जीवन” प्रदान करना है। राज्य सरकार डिजिटल स्किल डेवलपमेंट, ग्रीन एनर्जी जॉब्स, और स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा देकर गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में भी कदम बढ़ा रही है।
