सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक थे - “लाल बहादुर शास्त्री”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की स्वतंत्रता संग्राम की लंबी यात्रा में अनेक महापुरुषों ने अपने अद्वितीय योगदान से राष्ट्र को नई दिशा दी। भारतीय जनमानस में गहरी छाप छोड़ने वालों में है, लाल बहादुर शास्त्री। सादगी, ईमानदारी, त्याग, और कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री जी ने अल्प समय के लिए प्रधानमंत्री का पद सँभाला, लेकिन अपनी नीतियों और निर्णयों से वे आज भी करोड़ों भारतीयों के हृदय में जीवित हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन एक साधारण व्यक्ति के असाधारण कार्यों की कहानी है। गरीबी में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने उच्च आदर्शों और राष्ट्र सेवा को सर्वोपरि रखा। उन्होंने देश को ‘‘जय जवान जय किसान’’ का ऐसा अमर नारा दिया, जिसने भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरो दिया।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिला के समीप मुगलसराय नामक छोटे से कस्बे में हुआ। उनका जन्म महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर ही हुआ था, मानो नियति ने उन्हें भारत के राजनीतिक इतिहास में विशेष भूमिका निभाने के लिए चुना हो।

उनके पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे और बाद में राजस्व विभाग में कार्य करने लगे। माँ रामदुलारी देवी धार्मिक और संस्कारवान महिला थी। दुर्भाग्यवश, लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता का निधन तब हो गया जब वे मात्र डेढ़ वर्ष के थे। पिता के साये के बिना उनका बचपन कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन माँ ने हिम्मत और धैर्य से उन्हें पाला।

गरीबी और अभाव के बीच पले लाल बहादुर शास्त्री जी ने प्रारंभिक शिक्षा मुगलसराय और वाराणसी से प्राप्त की। बचपन से ही वे अत्यंत ईमानदार, मेहनती और गंभीर स्वभाव के थे। पढ़ाई में भले वे औसत रहे हों, लेकिन सत्य और नैतिकता उनके जीवन का आधार था।

लाल बहादुर शास्त्री ने वाराणसी के हरिश्चंद्र हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे काशी विद्यापीठ से जुड़े, जहाँ उन्हें महान शिक्षकों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के विचारों का संग मिल सका। काशी विद्यापीठ से उन्होंने "शास्त्री" की उपाधि प्राप्त की। यही उपाधि आगे चलकर उनके नाम के साथ स्थायी रूप से जुड़ गया। यहीं से उनके विचारों में राष्ट्रीयता, त्याग और सेवा की भावना और प्रबल हुई। महात्मा गांधी के विचारों और आंदोलन ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने गांधी जी के सत्य, अहिंसा और स्वदेशी के सिद्धांतों को आत्मसात किया। 20 वर्ष की आयु में वे सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

लाल बहादुर शास्त्री का युवावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में गहरा जुड़ाव था। 1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और ब्रिटिश शासन का बहिष्कार करने में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद वे बार-बार ब्रिटिश सरकार की नीतियों के विरोध में जेल जाते रहे। कुल मिलाकर वे लगभग साढ़े नौ वर्ष जेल में रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने गहन अध्ययन किया और राजनीति, दर्शन, अर्थशास्त्र तथा साहित्य की पुस्तकों का अध्ययन कर अपने व्यक्तित्व को और मजबूत किया। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी को सार्वजनिक जीवन में कार्य करने का अवसर मिला। उन्होंने विभिन्न स्तरों पर अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का परिचय दिया। स्वतंत्रता के बाद वे उत्तर प्रदेश सरकार में शामिल हुए। पुलिस विभाग के मंत्री रहते हुए उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार का प्रयोग शुरू किया। यह मानवीय दृष्टिकोण आज भी उपयोग में आता है। परिवहन मंत्री के रूप में उन्होंने महिला कंडक्टरों की नियुक्ति का निर्णय लिया, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कदम था। इससे महिलाओं के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में अवसर खुले।

1951 में वे केंद्र की राजनीति में आए और पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों रेलवे, परिवहन, वाणिज्य और गृह मंत्रालय में कार्य किया। रेलवे मंत्री रहते हुए एक गंभीर रेल दुर्घटना हुई, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। शास्त्री जी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। यह भारतीय राजनीति में नैतिक आदर्श का अनूठा उदाहरण माना जाता है। उन्होंने मंत्रिमंडल में रहते हुए किसानों, मजदूरों और आम जनता के हितों को प्राथमिकता दी।

27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उस समय देश अनेक चुनौतियों से जूझ रहा था। चीन युद्ध (1962) की पीड़ा ताजा थी। खाद्यान्न की भारी कमी थी। पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच रहा था। ऐसे कठिन समय में लाल बहादुर शास्त्री जी ने दृढ़ता और साहस के साथ देश का नेतृत्व संभाला।

लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत को ‘‘जय जवान जय किसान’’ का नारा दिया। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा जवानों पर और भोजन किसानों पर निर्भर है। इस नारे ने जवानों और किसानों दोनों को नई ऊर्जा दी और भारतीय समाज को एकजुट किया। आज भी यह नारा भारत के राजनीतिक और सामाजिक जीवन का प्रेरक सूत्र है।

लाल बहादुर शास्त्री जी के नेतृत्व में 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत कश्मीर में घुसपैठ की, लेकिन भारतीय सेना ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया। 22 दिन तक चले इस युद्ध में भारत ने शानदार विजय प्राप्त की। भारतीय सेना के अदम्य साहस और लाल बहादुर शास्त्री जी के दृढ़ नेतृत्व ने पाकिस्तान को झुका दिया। इस युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी का व्यक्तित्व राष्ट्रनायक के रूप में उभरा।

युद्ध के बाद शांति स्थापित करने के लिए शास्त्री जी ताशकंद (सोवियत संघ) गए। वहाँ 10 जनवरी 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ। लेकिन समझौते के अगले ही दिन, 11 जनवरी 1966 की रात, शास्त्री जी का अचानक निधन हो गया। उनकी मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है।

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन त्याग, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श है। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भले छोटा रहा हो, लेकिन उनकी उपलब्धियाँ अमर हैं। ‘‘जय जवान जय किसान’’ का नारा, 1965 के युद्ध में विजय और नैतिक राजनीति की परंपरा उनकी महान धरोहर है।



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