पटना हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और प्रशंसनीय कदम उठाते हुए वर्षों पुरानी परंपरा को समाप्त कर दिया है, जिसके तहत अदालत में किसी भी मुकदमे की याचिका या दस्तावेज़ में मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के पदनाम के साथ-साथ उनका व्यक्तिगत नाम भी लिखा जाता था। अब इस प्रथा को समाप्त करते हुए स्पष्ट निर्देश जारी किया गया है कि भविष्य में दायर होने वाले सभी मामलों में केवल “मुख्य न्यायाधीश” (Chief Justice) लिखा जाएगा, न कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश का नाम।
यह निर्णय पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बजंथरी ने लिया है। उनके निर्देश पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने आधिकारिक रूप से सभी अधिवक्ताओं और संबंधित पक्षों को सूचना जारी की है। इस परंपरा का पालन कई दशकों से किया जा रहा था। किसी भी प्रकार की याचिका, चाहे वह जनहित याचिका (PIL) हो, रिट याचिका हो या अन्य दीवानी-फौजदारी अपील, दायर करते समय "माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री (नाम)" लिखना अनिवार्य माना जाता था। लेकिन अब यह व्यवस्था समाप्त हो गई है।
इस कदम के पीछे मुख्य न्यायाधीश का उद्देश्य न्यायिक प्रणाली में संस्थागत पहचान को प्राथमिकता देना है। न्यायालय एक संस्था है, न कि किसी व्यक्ति की पहचान पर निर्भर। इसलिए “मुख्य न्यायाधीश” का पद स्वयं में पर्याप्त है। मुख्य न्यायाधीश का नाम लिखना न केवल अनावश्यक था, बल्कि कभी-कभी यह संस्थागत गरिमा से अधिक व्यक्तिगत पहचान को प्रमुखता दे देता था। अब यह परंपरा खत्म होने से न्यायपालिका की निष्पक्षता और गरिमा को और बल मिलेगा।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि “अब से हाईकोर्ट में दायर किए जाने वाले सभी प्रकार के मामलों में ‘मुख्य न्यायाधीश’ शब्द का ही प्रयोग किया जाएगा। किसी भी दस्तावेज़ या आवेदन में मुख्य न्यायाधीश का नाम लिखने की आवश्यकता नहीं है।” सभी अधिवक्ताओं और वादकारियों को इस दिशा-निर्देश का पालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है। यह निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि न्यायिक संस्थानों में एकरूपता (uniformity) और संस्थागत सम्मान की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव है। सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट्स में भी धीरे-धीरे ऐसी व्यवस्थाओं की आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि न्यायपालिका व्यक्ति-केंद्रित न होकर पूरी तरह संस्थान-केंद्रित बनी रहे।
पटना हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक परंपराओं के आधुनिकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल मुकदमों की प्रक्रिया में सरलता आएगी, बल्कि न्यायालय की गरिमा और संस्थागत सम्मान भी और बढ़ेगा।
