पश्चिम बना रहा इंटरनेट को नियंत्रण का उपकरण “पावेल डुरोव की चेतावनी”

Jitendra Kumar Sinha
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टेलीग्राम के संस्थापक और सीईओ पावेल डुरोव ने अपने 41वें जन्मदिन पर पश्चिमी देशों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि अब इंटरनेट स्वतंत्रता का मंच न रहकर “नियंत्रण का उपकरण” बनता जा रहा है। डुरोव ने कहा है कि पश्चिमी निगरानी तंत्र, सरकारी सेंसरशिप और बड़ी टेक कंपनियों की नीतियां मिलकर डिजिटल आजादी को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है।

एक समय था जब इंटरनेट को विचारों की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक संवाद और नवाचार का प्रतीक माना जाता था। लेकिन अब, डुरोव के अनुसार, पश्चिमी सरकारें इसे निगरानी और नियंत्रण का माध्यम बना रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बढ़ती सेंसरशिप, उपयोगकर्ताओं की गतिविधियों पर निगरानी और निजी डेटा के व्यापार ने इस चिंता को और गहरा किया है।

डुरोव ने कहा है कि जो देश ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के सबसे बड़े समर्थक होने का दावा करते हैं, वहीं अब ‘डिजिटल सेंसरशिप’ में सबसे आगे हैं। उनका इशारा अमेरिका और यूरोपीय देशों की ओर था, जहां सोशल मीडिया कंपनियों पर राजनीतिक और सरकारी दबाव के चलते अनेक अकाउंट्स ब्लॉक किया गया है।

टेलीग्राम के संस्थापक के रूप में डुरोव हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि टेलीग्राम किसी भी सरकार के दबाव में झुककर डेटा साझा नहीं करता और उपयोगकर्ताओं की निजता सर्वोपरि है। डुरोव के अनुसार, “यदि इंटरनेट कंपनियां सरकारों के आदेश पर सामग्री हटाने और डेटा साझा करने लगेगी, तो आने वाले समय में ऑनलाइन दुनिया केवल एक निगरानी नेटवर्क बन जाएगी।” उन्होंने यह भी कहा है कि टेलीग्राम का उद्देश्य किसी विचारधारा को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि लोगों को स्वतंत्र संवाद का मंच देना है।

डुरोव ने यह भी आरोप लगाया है कि पश्चिमी शक्तियां “डिजिटल उपनिवेशवाद” की नीति पर काम कर रही हैं। इसका मतलब यह है कि वे दुनिया भर के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को अपने सर्वरों, ऐप्स और डेटा नीतियों के जरिए नियंत्रित करना चाहती हैं। यूरोप और अमेरिका में लागू कड़े डेटा नियम (जैसे डीएसए और जीडीपीआर) के जरिए वे न सिर्फ कंपनियों को नियंत्रित करता हैं, बल्कि स्वतंत्र प्लेटफॉर्मों पर भी दवाब डालता है।

डुरोव की चेतावनी इस बात की ओर इशारा करता है कि आने वाले समय में इंटरनेट का स्वरूप पूरी तरह बदल सकता है। जहां एक ओर एआई और बिग डेटा जैसी तकनीकें मानव जीवन को आसान बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे सरकारों और कॉरपोरेट कंपनियों को नागरिकों की हर गतिविधि पर नजर रखने का साधन भी दे रहा है।

पावेल डुरोव की यह टिप्पणी केवल पश्चिम की आलोचना नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक चेतावनी भी है। यदि इंटरनेट पर नियंत्रण और सेंसरशिप का यह सिलसिला जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब “मुक्त इंटरनेट” केवल एक ऐतिहासिक विचार बनकर रह जाएगा। इसलिए जरूरी है कि दुनिया भर के उपयोगकर्ता, टेक कंपनियां और सरकारें मिलकर डिजिटल स्वतंत्रता की रक्षा करें, ताकि इंटरनेट अपने मूल उद्देश्य, यानि “ज्ञान और संवाद की आज़ादी” को बनाए रख सके।



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