अद्भुत शिल्प - बागवानी के साधारण औजार से जन्मा कला का रूप

Jitendra Kumar Sinha
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रूस की राजधानी मॉस्को अपनी ऐतिहासिक भव्यता और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसी शहर में स्थित जीईएस-2 हाउस ऑफ कल्चर के बाहर एक ऐसा कला-आकर्षण है, जो पहली नजर में किसी विशाल औद्योगिक यंत्र जैसा लगता है, परंतु जब पास जाते हैं, तो यह एक साधारण बागवानी के औजार  ट्रॉवेल (Plant Trowel) का विराट रूप लिए सामने खड़ा दिखाई देता है। इस अद्भुत शिल्प का नाम है ‘प्लांटॉयर’ (Plantoir), जिसे अमरीकी कलाकारों क्लेस ओल्डेनबर्ग (Claes Oldenburg) और कूस्जी वैन ब्रुगेन (Coosje van Bruggen) ने रचा है।

कलाकारों का उद्देश्य था यह दिखाना कि कला केवल चित्रों या मूर्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के रोजमर्रा के साधारण वस्तुओं में भी उसका स्वरूप छिपा है। बागवानी में प्रयुक्त छोटा-सा ट्रॉवेल, जो सामान्यतः मिट्टी खोदने और पौधे लगाने के लिए उपयोग होता है, जब इस रूप में प्रस्तुत किया गया तो वह मानव रचनात्मकता और कल्पनाशीलता का प्रतीक बन गया।

यह शिल्प लगभग विशाल आकार में निर्मित है, जिसकी ऊँचाई और अनुपात इसे शहर के व्यस्त जीवन के बीच एक अलग पहचान देता है। जब लोग इसके पास से गुजरते हैं, तो उनके भीतर यह विचार जन्म लेता है कि क्या वास्तव में एक साधारण उपकरण भी कला का माध्यम बन सकता है?

जहाँ यह शिल्प स्थित है, वह स्थान स्वयं परिवर्तन का प्रतीक है। पहले यह एक पावर स्टेशन था, जिसने मॉस्को को बिजली दी; आज यही भवन कला और संस्कृति की ऊर्जा का केंद्र बन चुका है। इसका पुनर्निर्माण और रूपांतरण आधुनिक रूस के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक माना जाता है। ‘प्लांटॉयर’ को इस इमारत के बाहर स्थापित करना प्रतीकात्मक भी है, जैसे यह विशाल ट्रॉवेल इस नई सांस्कृतिक मिट्टी में रचनात्मकता के बीज बो रहा हो।

क्लेस ओल्डेनबर्ग और कूस्जी वैन ब्रुगेन की कला शैली को ‘पॉप आर्ट मूर्तिकला’ (Pop Art Sculpture) कहा जाता है। वे साधारण वस्तुओं जैसे पिन, कांटा, टूथब्रश, या बागवानी के औजार को विशाल रूप में गढ़कर यह दर्शाते हैं कि हमारी दिनचर्या में छिपी वस्तुएँ भी कला का विस्तार बन सकती हैं।

‘प्लांटॉयर’ में भी यही दर्शन झलकता है। यह न केवल आकार और संरचना से दर्शकों को आकर्षित करता है, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर करता है कि कला केवल देखने की नहीं, अनुभव करने की चीज है।

यह शिल्प एक गहरा संदेश देता है कि कला जीवन से अलग नहीं है, बल्कि जीवन का ही विस्तार है। एक साधारण उपकरण को जब कल्पना की ऊँचाई दी जाती है, तो वह सांस्कृतिक प्रतीक बन जाता है। यह सिखाता है कि सृजनशीलता कहीं भी, किसी भी रूप में हो सकता है, बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए। इस प्रकार, ‘प्लांटॉयर’ केवल एक मूर्तिकला नहीं है, बल्कि यह एहसास कराता है कि साधारण वस्तुएँ भी असाधारण अर्थ रख सकता है



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