भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। यहाँ हर नागरिक की आवाज वोट के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था को दिशा देती है। लेकिन जब यही वोटर सूची त्रुटिपूर्ण हो जाए, नाम छूट जाएँ, दोहराव हों या मृत व्यक्तियों के नाम बने रहें, तब लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। इसी पृष्ठभूमि में भारत निर्वाचन आयोग ने एक बड़ा और दूरगामी कदम उठाया है “मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण” (Special Intensive Revision - SIR)। यह प्रक्रिया बिहार के बाद अब देश के अन्य राज्यों में लागू होने जा रही है। प्रथम चरण में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी जैसे चुनावी दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्यों में इसे शुरू करने की तैयारी है।
मतदाता सूची केवल एक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा है। इसमें किसी भी त्रुटि का सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है। मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग नियमित रूप से पुनरीक्षण करता है, लेकिन “विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)” सामान्य प्रक्रिया से कहीं अधिक व्यापक और सघन होता है।
इस प्रक्रिया के तहत प्रत्येक मतदान केंद्र स्तर पर मतदाता सूची की भौतिक जांच होती है, मृत, स्थानांतरित या डुप्लिकेट नामों को हटाया जाता है, नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं और सभी रिकॉर्ड को डिजिटल रूप से अपडेट किया जाता है। यह कार्य न केवल पारदर्शिता को बढ़ाता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया में नागरिकों के विश्वास को भी मजबूत करता है।
बिहार पहला राज्य था जहाँ एसआईआर को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया है। आयोग को इस प्रक्रिया से उम्मीद से अधिक सकारात्मक परिणाम मिला है। कई जिलों में पाया गया है कि मतदाता सूची में मृत व्यक्तियों के नाम, स्थानांतरित मतदाता और डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ बड़ी संख्या में थीं। एसआईआर के दौरान इन सबको हटाकर एक “शुद्ध और अद्यतन मतदाता सूची” तैयार की गई है। बिहार के इस प्रयोग ने निर्वाचन आयोग को यह भरोसा दिया है कि यदि इस तरह का गहन पुनरीक्षण देश के सभी राज्यों में किया जाए, तो 2029 के आम चुनाव तक मतदाता सूची लगभग त्रुटिरहित हो सकती है।
चुनाव आयोग ने अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इन राज्यों को पहले चरण में शामिल किया है। इन राज्यों की कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं:
पश्चिम बंगाल राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। पिछले चुनावों में मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों, नकली पहचान और बाहरी मतदाताओं के आरोप लगते रहे हैं। एसआईआर से आयोग इस राज्य की चुनावी पारदर्शिता को सुनिश्चित करना चाहता है।
असम में नागरिकता और मताधिकार का मुद्दा दशकों से जटिल रहा है। एनआरसी प्रक्रिया और बांग्लादेशी घुसपैठ के प्रश्न ने मतदाता सूची को लेकर कई विवाद पैदा किया है। एसआईआर से असम में वास्तविक और वैध मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
तमिलनाडु राज्य में तकनीकी दृष्टि से उन्नत निर्वाचन प्रणाली है, परन्तु शहरी प्रवास और बड़ी जनसंख्या के कारण नामों के दोहराव या स्थानांतरण की समस्या बनी रहती है। यहाँ डिजिटल सत्यापन और आधार-लिंक्ड अपडेट प्रक्रिया प्रभावी हो सकती है।
केरल में प्रवासी नागरिकों की बड़ी संख्या है। विदेशों में रहने वाले मतदाताओं के नामों की स्थिति को लेकर अक्सर संशय रहता है। एसआईआर से इनका रिकॉर्ड भी साफ किया जा सकेगा।
पुदुचेरी छोटा राज्य होने के बावजूद यहाँ प्रशासनिक विविधता और चुनावी प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है। इसलिए आयोग इसे “मॉडल स्टेट” बनाकर अन्य राज्यों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता है।
चुनाव आयोग ने इसके लिए एक संरचित कार्ययोजना तैयार की है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के निर्देश पर सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को दिशानिर्देश जारी किया जा चुका है। प्रत्येक मतदाता का डेटा आधार, जनगणना रिकॉर्ड, और स्थानीय निकाय के नागरिक रजिस्टर से मिलान किया जाएगा। इससे डुप्लिकेट या फर्जी प्रविष्टियों की पहचान आसान होगी। बूथ लेवल अधिकारी (BLO) हर घर जाकर मतदाताओं की उपस्थिति और पहचान की जांच करेंगे। मृत या स्थानांतरित मतदाताओं की जानकारी एकत्र करेंगे। मतदाता सूची के प्रारूप को सार्वजनिक किया जाएगा ताकि नागरिक अपनी प्रविष्टियों की जाँच कर सकें। यदि कोई त्रुटि या नाम छूटने की शिकायत हो, तो तय अवधि में आपत्ति या दावा दर्ज किया जा सकेगा। इस बार आयोग विशेष रूप से “E-Roll Management System 2.0” का उपयोग करेगा। यह सिस्टम मतदाता सूची को रियल-टाइम अपडेट करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में सक्षम है। सभी आपत्तियों का निस्तारण कर अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। यह सूची चुनाव से पहले आधार बनेगी।
जब सूची सटीक होगी तो पात्र मतदाताओं को अपने नाम जुड़ने में आसानी होगी, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। मृत या दोहराए गए नाम हटने से फर्जी मतदान की संभावना घटेगी। चुनावी परिणामों पर विवाद कम होंगे। सभी सूचियाँ डिजिटल रूप से सुरक्षित होगी और जनसुलभ रहेगी। 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले युवाओं के नाम स्वतः शामिल किए जा सकेंगे।
जहाँ यह पहल लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने का प्रयास है, वहीं कुछ बड़ी चुनौतियाँ भी सामने हैं। जहाँ स्थानीय निकाय या विधानसभा चुनाव पहले से तय हैं, वहाँ प्रशासनिक अमले की कमी के कारण एसआईआर का संचालन कठिन होगा। कई क्षेत्रों में लोग अब भी दस्तावेजों के प्रति उदासीन रहते हैं। BLO को लोगों के घर-घर जाकर समझाना एक चुनौती होगी। गाँवों और पिछड़े क्षेत्रों में इंटरनेट या तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण डिजिटल सत्यापन प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है। मतदाता सूची से नाम हटाने या जोड़ने पर राजनीतिक दल अक्सर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं, जिससे प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल उठ सकता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने अपने पदभार ग्रहण करने के बाद से ही मतदाता सूची सुधार को शीर्ष प्राथमिकता दी है। उन्होंने बार-बार यह दोहराया है कि “लोकतंत्र की विश्वसनीयता सूची की शुद्धता पर निर्भर करती है।” उन्होंने राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ कई बैठकें कर इस परियोजना के क्रियान्वयन की दिशा तय की है। उनका मानना है कि यदि 2026 तक देश के सभी राज्यों में एसआईआर पूरा हो गया, तो 2029 का लोकसभा चुनाव अब तक का सबसे पारदर्शी चुनाव होगा।
एसआईआर प्रक्रिया में तकनीक का इस्तेमाल अभूतपूर्व स्तर पर किया जा रहा है। आयोग ने “Voter Helpline App” और “NVSP Portal” के साथ-साथ AI-आधारित मिलान प्रणाली विकसित की है।
इससे डेटा में डुप्लिकेशन का स्वतः पता चलेगा, मृत मतदाताओं के रिकॉर्ड हटाने में सटीकता आएगी, आधार और जनगणना डेटा से वास्तविक मतदाता की पुष्टि होगी और हर नागरिक अपने नाम की स्थिति ऑनलाइन देख सकेगा।
मतदाता सूची केवल आयोग की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रविष्टि की जांच करे। अक्सर लोग चुनाव के दिन जाकर पता लगाते हैं कि उनका नाम सूची में नहीं है। इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। हर नागरिक को NVSP पोर्टल या वोटर हेल्पलाइन ऐप से अपना नाम जांचना चाहिए। यदि नाम गलत है या छूट गया है तो फॉर्म-6 भरकर सुधार करना चाहिए। BLO के साथ सहयोग करना चाहिए जब वह घर-घर सत्यापन के लिए आए।
एसआईआर की घोषणा के बाद राज्यों में राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल में, विपक्ष ने इसे “मतदाता सूची सुधार के नाम पर सरकारी हस्तक्षेप” बताया है, जबकि सत्तारूढ़ दल ने इसे “लोकतांत्रिक मजबूती” कहा है। असम में, इसे नागरिकता-संबंधी पारदर्शिता का अवसर बताया गया है। तमिलनाडु में, सभी दलों ने इस पहल का स्वागत करते हुए पारदर्शिता की आवश्यकता मानी है। केरल और पुदुचेरी में यह प्रक्रिया बिना विरोध के सुचारू रूप से आगे बढ़ने की उम्मीद है।
सूत्रों के अनुसार, एसआईआर को आगामी तीन चरणों में पूरे देश में लागू करने की योजना है। पहला चरण (2025-26) में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल, पुदुचेरी। दूसरा चरण (2026-27) में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और तीसरा चरण (2027-28) में महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, गोवा और पूर्वोत्तर राज्य। इस तरह 2028 तक भारत के सभी राज्यों की मतदाता सूचियाँ अद्यतन और एकीकृत हो जाएँगी।
भारत का यह प्रयास अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है। कई देशों जैसे ब्राज़ील, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका में भी डिजिटल मतदाता रजिस्टर प्रणाली लागू है। लेकिन भारत का पैमाना सबसे बड़ा है। 97 करोड़ से अधिक मतदाताओं की सूची का गहन पुनरीक्षण किसी प्रशासनिक चमत्कार से कम नहीं है।
मतदाता सूची का शुद्धिकरण केवल तकनीकी कार्य नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य की सुरक्षा है। भारत निर्वाचन आयोग का यह कदम न केवल चुनावी पारदर्शिता बढ़ाएगा, बल्कि नागरिकों में लोकतांत्रिक विश्वास को भी पुनर्जीवित करेगा। जब हर योग्य नागरिक का नाम सूची में दर्ज होगा और कोई भी फर्जी या दोहराया नाम उसमें नहीं रहेगा, तब ही कहा जा सकेगा कि भारत का लोकतंत्र वास्तव में “जन-जन का शासन” है।इसलिए यह विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान केवल एक प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को स्वच्छ और सशक्त करने की प्रक्रिया है।
