बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण - मिथिला से मगध तक ‘सेमीफाइनल’ की होगी जंग

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा हो चुकी है। राज्य की राजनीति एक बार फिर जातीय समीकरण, विकास के दावे और गठबंधनों की रणनीतियों के बीच नई दिशा खोज रही है। 06 नवंबर को पहले चरण का मतदान होगा, जो बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 121 सीटों को कवर करेगा। यह चरण इसलिए खास है क्योंकि इसमें नीतीश कुमार का गृह जिला नालंदा, भाजपा का वैचारिक गढ़ बेगूसराय, और राजद का पारंपरिक क्षेत्र मिथिलांचल शामिल हैं।

यह चरण एक तरह से “सेमीफाइनल” कहा जा सकता है, क्योंकि इसके परिणाम राज्य की सत्ता का रुख तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगा। इस चरण में बिहार के मिथिलांचल, तिरहुत, सीमांचल और मगध क्षेत्र आता है, जिनकी राजनीतिक धारा जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन से गहराई से जुड़ी रही है।

पहले चरण में 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, जिनमें शामिल हैं मधेपुरा के आलमनगर, बिहारीगंज, सिहेश्वर (एससी), मधेपुरा। सहरसा के महिषी, सिमरी बख्तियारपुर, सहरसा, सोनबरसा। दरभंगा के कुशेश्वर स्थान (एससी), गौरा बौराम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा, हायाघाट, बहादुरपुर, केवटी, जाले। मुजफ्फरपुर के गायघाट, औराई, मीनापुर, बोचहा (एससी), सकरा (एससी), कुढ़नी, कांटी, पारू, साहेबगंज, मुजफ्फरपुर। गोपालगंज के बैकुंठपुर, बरौली, गोपालगंज, कुचायकोट, भोरे (एससी), हथुआ। सीवान के सीवान, दरौली (एससी), जीरादेई, रघुनाथपुर, दरौंदा, बड़हरिया, गोरियाकोठी, महाराजगंज। सारण के एकमा, मांझी, परसा, बनियापुर, तरैया, मढ़ौरा, छपरा, गरखा (एससी), अमनौर, सोनपुर। वैशाली के वैशाली, महुआ, हाजीपुर, लालगंज, राजापाकड़ (एससी), राघोपुर, महनार, पातेपुर (एससी)। समस्तीपुर के कल्याणपुर (एससी), वारिसनगर, समस्तीपुर, उजियारपुर, मोरवा, सरायरंजन, मोहिउद्दीननगर, विभूतिपुर, रोसड़ा (एससी), हसनपुर। बेगूसराय के चेरिया बरियारपुर, बछवारा, तेघड़ा, मटिहानी, साहेबपुर कमाल, बेगूसराय, बखरी (एससी)। खगड़िया के अलौली (एससी), खगड़िया, बेलदौर, परबत्ता। मुंगेर के तारापुर, मुंगेर, जमालपुर। लखीसराय के सूर्यगढ़ा, लखीसराय। शेखपुरा के शेखपुरा, बरबीघा। नालंदा के अस्थावां, बिहारशरीफ, राजगीर (एससी), इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा, हरनौत। पटना के मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, फतुहा, दानापुर, मनेर, फुलवारीशरीफ, पालीगंज, विक्रम (एससी), मसौढ़ी (एससी)। भोजपुर के संदेश, बरहड़ा, जगदीशपुर, शाहपुर, आरा, अगिआंव (एससी), तरारी। बक्सर के ब्रह्मपुर, बक्सर, डुमरांव, राजपुर (एससी)। 

यह भौगोलिक विस्तार बिहार के सामाजिक ताने-बाने की विविधता को दिखाता है। उत्तर में गंडक और कोसी की धरती, मध्य में ऐतिहासिक मगध, और दक्षिण में औद्योगिक मुंगेर और शेखपुरा, सब एक साथ इस चुनावी समर में शामिल हैं।

मिथिलांचल (दरभंगा, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर) का इलाका सदैव राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील रहा है। यहां की राजनीति यादव-मुस्लिम-अति पिछड़ा गठजोड़ पर टिकी रही है। 2020 में राजद ने इस इलाके में शानदार प्रदर्शन किया था। तेजस्वी यादव ने मिथिलांचल में युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दे को जोरदार ढंग से उठाया था।

दूसरी ओर, नीतीश कुमार ने अपने ‘सात निश्चय’ और महिला सशक्तिकरण योजनाओं को आधार बनाया है। जदयू के ‘मुखिया से मुख्यमंत्री’ अभियान ने गांवों में संगठन को मजबूत किया है। इस बार भी जदयू का फोकस महिला मतदाताओं और लाभार्थी वर्ग पर है, विशेषकर सहायता समूहों, छात्राओं और जल-जीवन-हरियाली मिशन से लाभान्वित महिलाओं पर।

इस चुनाव में कोसी और कमला नदियों के किनारे बाढ़ और विस्थापन का मुद्दा, युवाओं के पलायन और रोजगार की कमी, शिक्षा संस्थानों की बदहाली (खासकर दरभंगा विश्वविद्यालय क्षेत्र) और एनडीए बनाम महागठबंधन की सीधी लड़ाई है।

दरभंगा, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर के 28 विधानसभा क्षेत्रों में राजद को 2020 में 18 सीटें, जबकि एनडीए को 10 सीटें मिली थीं। इस बार भाजपा और जदयू दोनों ने अपनी रणनीति बदली है।  भाजपा हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण और प्रधानमंत्री के नाम पर वोट मांग रही है, जबकि जदयू स्थानीय विकास कार्यों को केंद्र में रख रही है।

मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सीवान, सारण और वैशाली को बिहार की राजनीति का हृदय कहा जाता हैं। गंडक क्षेत्र का यह इलाका भाजपा और जदयू के पारंपरिक प्रभाव वाला रहा है। गोपालगंज और सीवान में राजद की जड़ें गहरी हैं, लेकिन सारण से लेकर मुजफ्फरपुर तक भाजपा का सांगठनिक नेटवर्क बहुत मजबूत है।

राबड़ी देवी, मीसा भारती और तेजप्रताप यादव का इस इलाके से भावनात्मक जुड़ाव अब भी कायम है। राघोपुर और महुआ जैसी सीटें यादव-मुस्लिम समीकरण से बंधी हुई हैं। लेकिन वैशाली, सारण और गोपालगंज के शहरी क्षेत्रों में भाजपा की विचारधारा ने नए मतदाताओं को आकर्षित किया है।

छपरा और हाजीपुर में एनडीए के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है। सीवान-गोपालगंज में राजद बनाम भाजपा का सामाजिक मुकाबला होगा।  युवा वोटर और प्रथम बार मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। 

भाजपा का जोर केंद्र की योजनाओं और पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगने का है। वहीं राजद का फोकस सामाजिक न्याय और गरीबों की आवाज होगी। जबकि जदयू की रणनीति, जातीय संतुलन और महिला वोट रहेगी।

तिरहुत क्षेत्र की राजनीति हमेशा ‘जातीय रसायन’ से तय होती है। राजपूत, भूमिहार, यादव और मुसलमान चारों वर्ग यहां निर्णायक हैं। 2020 में एनडीए ने इस क्षेत्र की 42 सीटों में से 27 जीती थीं। इस बार माहौल कुछ बदला है, भाजपा को एलजेपी (रामविलास पासवान गुट) की दखल से चुनौती मिल सकती है, खासकर वैशाली और समस्तीपुर के इलाकों में।

मगध, नालंदा, पटना, भोजपुर, बक्सर, लखीसराय, शेखपुरा, मुंगेर, बेगूसराय, खगड़िया, यह क्षेत्र जातीय रूप से सबसे विविध है। यहां का सामाजिक समीकरण है भूमिहार और ब्राह्मण यह भाजपा के पारंपरिक समर्थक हैं। वहीं यादव, राजद का वोट बैंक है।  यहां कुशवाहा, पासवान और अति पिछड़ा वर्ग निर्णायक होते हैं। यहां के मुसलमान राजद और वामदलों के साथ होते हैं। 

नीतीश कुमार का गृह जिला नालंदा इस चरण में शामिल है। यह उनके लिए प्रतिष्ठा की सीटें हैं। दूसरी ओर, पटना ग्रामीण और भोजपुर बेल्ट भाजपा के मजबूत किला माना जाता है। बेगूसराय में भाजपा की विचारधारा और संघ की शाखाओं का गहरा असर है। यह इलाका इस बार भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए सबसे बड़ा परीक्षण क्षेत्र होगा। यहां के मतदाता विकास को तो देखते हैं, पर स्थानीय नेतृत्व और जातीय समीकरण दोनों पर विचार करते हैं।

बेरोजगारी और औद्योगिक ठहराव (मुंगेर, बेगूसराय, बक्सर में), कृषि संकट और नदी तटबंध की समस्या (खगड़िया, बेगूसराय), बाढ़ और जलजमाव (पटना ग्रामीण बेल्ट), कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा मुख्य मुद्दा होगा।

2020 में एनडीए ने यहां 40 में से 27 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार विपक्ष ने रणनीति बदली है। महागठबंधन ने कांग्रेस और वामदलों को सक्रिय भूमिका में रखा है। सीपीआई-एमएल ने भोजपुर और बक्सर में अपने जनाधार को मजबूत किया है।

इस चरण में चुनावी लड़ाई पूरी तरह दोध्रुवीय है। एनडीए (भाजपा + जदयू + हम) बनाम महागठबंधन (राजद + कांग्रेस + वामदल)। हालांकि कुछ सीटों पर एलजेपी (पासवान गुट) और वीआईपी (मुखिया गुट) के उम्मीदवार त्रिकोणीय मुकाबला बना सकता है।

एनडीए की रणनीति होगी प्रधानमंत्री मोदी के चेहरा और नीतीश के विकास मॉडल का संयोजन। लाभार्थी योजनाएं (हर घर नल, उज्ज्वला, पीएम आवास) होगी। महिला वोट बैंक पर विशेष फोकस रहेगा। एनडीए एकता का संदेश देगा कि “डबल इंजन सरकार से डबल विकास” हुआ है।

महागठबंधन की रणनीति होगी सामाजिक न्याय और बेरोजगारी का मुद्दा। महंगाई, भ्रष्टाचार और केंद्र की नीतियों पर हमला। वाम दलों की मदद से ग्रामीण इलाकों में मजबूती। “युवाओं की सरकार” और “न्याय यात्रा” का नारा।

एलजेपी (पासवान गुट) का बेगूसराय, समस्तीपुर और खगड़िया में प्रभाव रहेगा। वीआईपी (मुखिया गुट) का मधेपुरा और सहरसा के कुछ इलाकों में असर रहेगा। सीपीआई-एमएल भोजपुर, बक्सर, आरा और जहानाबाद के इलाकों में सक्रिय रहेगा। इन दलों की उपस्थिति कई सीटों पर निर्णायक हो सकती है, खासकर जहां जीत-हार का अंतर 5000 वोटों से कम रहता है।

बिहार की राजनीति में अब महिला वोटर सिर्फ “सहायक” नहीं, बल्कि “निर्णायक” बन चुकी हैं। 2020 के चुनाव में महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से 3.5% अधिक रहा था। नीतीश कुमार ने इस वर्ग पर गहरा निवेश किया है, साइकिल और पोशाक योजना, आरक्षण में 50% तक की भागीदारी, आंगनवाड़ी और सहायता समूहों को सशक्तिकरण। राजद ने भी इस बार “महिला न्याय मंच” बनाकर प्रचार तेज किया है। तेजस्वी यादव की पत्नी रेचल यादव और राबड़ी देवी महिला रैलियों में सक्रिय हैं।

मिथिलांचल और सीमांचल के जिलों में बेरोजगारी एक स्थायी समस्या है। लाखों युवा दिल्ली, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र में पलायन कर चुके हैं। राजद इस मुद्दे को सबसे बड़ा चुनावी हथियार बना रहा है “नौकरी बनाम नौकरी का झांसा”। वहीं, एनडीए कौशल विकास, स्टार्टअप और महिला उद्यमिता योजनाओं पर जोर दे रहा है।

पहले चरण के अधिकांश जिला नदी तटीय हैं। कोसी, गंडक, बागमती, कमला जैसी नदियां हर साल तबाही लाती हैं। बाढ़ नियंत्रण, तटबंध मरम्मत, और राहत वितरण का सवाल बड़ा मुद्दा है। शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालयों और स्कूलों की स्थिति भी मतदाताओं को प्रभावित करती है। सहरसा, दरभंगा, समस्तीपुर, और मधेपुरा में युवा वर्ग इस बार निर्णायक भूमिका में है।

बिहार का यह चुनाव सिर्फ विकास बनाम जातीय राजनीति की बहस नहीं है, बल्कि दोनों का संगम है। एनडीए विकास की बात करता है, पर जातीय संतुलन का ध्यान रखता है। राजद सामाजिक न्याय की बात करता है, पर विकास को नजरअंदाज नहीं करना चाहता। यह द्वंद्व बिहार की राजनीति की असली तस्वीर पेश करता है।

पहले चरण के मतदान के लिए चुनाव आयोग ने विशेष सुरक्षा बंदोबस्त किया है। संवेदनशील इलाकों सीवान, गोपालगंज, दरभंगा, सहरसा में अतिरिक्त अर्धसैनिक बल तैनात रहेंगे। मतदान केंद्रों पर वेबकास्टिंग और सीसीटीवी मॉनिटरिंग की व्यवस्था होगी।

पहला चरण बिहार चुनाव 2025 का निर्णायक मोर्चा है। यह वही क्षेत्र है जहां से सत्ता की दिशा तय होती है दरभंगा से लेकर पटना तक और गोपालगंज से लेकर मुंगेर तक। नीतीश कुमार के लिए यह चरण विश्वास की परीक्षा है क्या उनकी नीतियां अब भी असरदार हैं? तेजस्वी यादव के लिए यह आशा की चुनौती है क्या युवाओं का भरोसा राजद पर कायम है? भाजपा के लिए यह विचारधारात्मक संघर्ष है क्या वह केंद्र के नाम पर वोट दिला पाएगी? कांग्रेस और वामदलों के लिए यह जीवित रहने की जंग है। बिहार का पहला चरण केवल मतदान नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि सत्ता की डगर मिथिला से मगध की ओर किस दिशा में मुड़ेगी।





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