बिहार एक बार फिर लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव की तैयारी में है। 2025 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही राजनीति का तापमान तेजी से बढ़ गया है। चुनाव आयोग ने दो चरणों में मतदान कराने का निर्णय लिया है। पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा। दोनों चरणों की मतगणना 14 नवंबर को होगी और चुनाव संबंधी सभी कार्य 16 नवंबर तक पूरे कर लिए जाएंगे।
इन तिथियों के साथ ही बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ली है। सत्ता, समीकरण, जाति, विकास और युवा आकांक्षाओं का संगम इस बार का चुनाव पहले से कहीं अधिक जटिल और दिलचस्प बना रहा है।
पहला चरण में 121 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा। इसकी अधिसूचना 10 अक्टूबर को जारी होगा। नामांकन की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर है, नामांकन पत्रों की जांच 18 अक्टूबर को और नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर है। इसका मतदान 6 नवंबर को होगा।
दूसरा चरण में 122 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा। इसकी अधिसूचना 13 अक्टूबर को जारी होगा। नामांकन की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर है, नामांकन पत्रों की जांच 21 अक्टूबर को और नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 23 अक्टूबर है। इसका मतदान 11 नवंबर को होगा। मतगणना दोनों चरणों की 14 नवंबर को होगी और 16 नवंबर को चुनाव प्रक्रिया समाप्त होगी।
चुनाव आयोग का यह दो-चरणीय मॉडल सुरक्षा, रसद प्रबंधन और निष्पक्षता के मद्देनजर तैयार किया गया है। बिहार में भौगोलिक विविधता, नक्सल प्रभावित इलाके और राजनीतिक तनाव को देखते हुए यह चरणबद्ध मॉडल सबसे उपयुक्त माना जा रहा है।
2025 के चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में कई अप्रत्याशित फेरबदल देखने को मिल रहा है।
ऐसे देखा जाए तो मुख्य मुकाबला तीन ध्रुवों में बंटता दिख रहा है। पहला एनडीए (भारतीय जनता पार्टी + जेडीयू + सहयोगी दल), दूसरा महागठबंधन (राष्ट्रीय जनता दल + कांग्रेस + वाम दल) और तीसरा मोर्चा या जननायक विकल्प (एलजेपी, उपेंद्र कुशवाहा, ओवैसी की एआईएमआईएम आदि)।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर भाजपा के साथ तालमेल कायम रखा है, लेकिन जनता दल (यू) की संगठनात्मक स्थिति पहले जैसी मजबूत नहीं दिख रही है। भाजपा इस बार अधिक सीटों पर दावेदारी कर रही है, क्योंकि उसके कार्यकर्ता मानते हैं कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता अब उतनी नहीं रही है। भाजपा का फोकस “विकास और स्थिरता” पर है, जबकि जेडीयू “सामाजिक न्याय के साथ सुशासन” के नारे पर चुनाव में उतरने जा रही है। भाजपा के लिए यह चुनाव केवल बिहार की सत्ता का नहीं है, बल्कि केंद्र में 2029 की रणनीति का ट्रायल रन भी माना जा रहा है।
तेजस्वी यादव इस चुनाव में महागठबंधन का चेहरा बने हुए हैं। 2020 में महज कुछ सीटों से सत्ता से बाहर रह गई आरजेडी इस बार अधिक परिपक्व रणनीति के साथ मैदान में है। तेजस्वी की राजनीति का केंद्र “रोजगार, शिक्षा और पलायन” है।
कांग्रेस सीमित प्रभाव के बावजूद अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव और उच्च वर्ग के वोट बैंक को बचाने में जुटी है, जबकि वाम दलों का फोकस युवाओं और गरीबों पर है। तेजस्वी इस बार ‘युवा बनाम व्यवस्था’ के नैरेटिव पर जोर दे रही है।
चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) अकेले चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। एलजेपी (रामविलास) का नारा “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” एक बार फिर गूंज रहा है। उधर, उपेंद्र कुशवाहा और ओवैसी की पार्टियाँ सीमित इलाकों में प्रभाव डालने की कोशिश में लगा हुआ दिख रहा है, खासकर सीमांचल और मध्य बिहार के कुछ हिस्सों में। कहीं ऐसा न हो कि यह तीसरा मोर्चा वोट काटने का काम कर बैठे। अगर ऐसा होता है तो सत्ता का संतुलन बदल सकता है, यह समय बतायेगा।
बिहार में चुनावी गणित का आधार आज भी जातीय समीकरण ही है। यादव-मुस्लिम गठजोड़ आरजेडी की रीढ़ है। कुर्मी-कोइरी (लव-कुश समीकरण) जेडीयू का पारंपरिक आधार है। ऊँची जातियों (राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण) पर भाजपा की पकड़ मजबूत है। दलित और अति पिछड़ा वर्ग (मल्लाह, नाई, तेली, लुहार) वोट निर्णायक भूमिका में रहता है।
इस बार दिलचस्प यह लगता है कि युवा मतदाता जातीय नारा से थोड़ा ऊपर उठकर “रोजगार” और “स्थानीय विकास” जैसे मुद्दों पर सोच रहा है। यही कारण है कि दोनों प्रमुख गठबंधन युवा वोटरों को लुभाने के लिए नये वादे कर रहे हैं। जैसे “10 लाख रोजगार” (तेजस्वी यादव का वादा) और “स्टार्टअप फंड” (भाजपा का एजेंडा)।
राज्य से लाखों युवाओं का पलायन हर चुनाव में चर्चा का केंद्र रहा है। तेजस्वी यादव ने इसे मुख्य एजेंडा बना लिया है। उनका कहना है कि “बिहार में रोजगार होगा तो पलायन रुकेगा।” वहीं भाजपा का कहना है कि केंद्र की नीतियों से बिहार को उद्योगों का नया अवसर मिला है, जैसे पटना और हाजीपुर के बीच नया औद्योगिक कॉरिडोर। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली विपक्ष का मुख्य हथियार है। नीतीश सरकार ने ‘मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना’ और ‘डिजिटल क्लासरूम’ जैसी योजनाओं को आगे रखकर इसका जवाब देने की कोशिश की है।
राज्य के कुछ दक्षिणी जिले अब भी नक्सली प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है। भाजपा और जेडीयू इसे अपने शासन की सफलता बता रहे हैं कि हिंसा के ग्राफ में गिरावट आई है। वहीं विपक्ष का आरोप है कि अपराध और भ्रष्टाचार की घटनाएँ बढ़ रही हैं, विशेषकर थाने और ब्लॉक स्तर पर।
महिलाओं को 50% पंचायत आरक्षण देने का श्रेय नीतीश सरकार को है। लेकिन महागठबंधन का कहना है कि “सत्ता में नीतियाँ तो बनीं, पर जमीनी बदलाव अधूरा है।” लगता है कि दोनों गठबंधन महिला सशक्तिकरण को लेकर घोषणापत्र में बड़े वादे करेंगे, जैसे स्कॉलरशिप, सेफ्टी ऐप, और महिला उद्यमिता फंड।
ग्रामीण बिहार, जो राज्य की आत्मा है, वहाँ चुनाव का स्वरूप कुछ अलग होता है। पंचायत राजनीति, जातीय समीकरण और स्थानीय विकास कार्य, तीनों मिलकर जनता का मूड तय करता है।
पहले चरण के अधिकतर क्षेत्र मगध, भोजपुर और कोसी बेल्ट में आता है, जहाँ विकास की तुलना में जातीय पहचान का असर ज्यादा होता है। दूसरे चरण में सीमांचल, मिथिलांचल और उत्तर बिहार के इलाका है, जहाँ बाढ़, सड़कों और रोजगार के मुद्दे प्रमुख हैं।
2025 का बिहार चुनाव अब डिजिटल फील्ड में भी लड़ा जा रहा है। भाजपा ने ‘मोदी फॉर बिहार’ नाम से ऑनलाइन कैम्पेन लॉन्च किया है। आरजेडी का ‘बदलाव की हवा, बिहार हमारा’ युवाओं में वायरल है। फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम अब बूथ लेवल प्रचार का हिस्सा बन चुका है। राजनीतिक पार्टियाँ अब सोशल मीडिया टीमों को गाँव-गाँव भेज रही हैं, जो मोबाइल डेटा के माध्यम से जनता की भावना को मापती हैं। डिजिटल वॉर रूम्स का प्रभाव इस बार निर्णायक साबित हो सकता है।
नीतीश सरकार का दावा है कि पिछले पाँच वर्षों में सड़कों, पुलों, बिजली और जल आपूर्ति के क्षेत्र में ऐतिहासिक कार्य हुए हैं। वहीं विपक्ष कहता है कि “सड़क बनी है, लेकिन रोजगार नहीं आया।” चुनाव में भाजपा हर जिले में टेक्नोलॉजी पार्क, 2 लाख सरकारी नौकरियाँ, स्मार्ट गाँव योजना को। आरजेडी 10 लाख नौकरी योजना, शिक्षकों की भर्ती, किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को। जेडीयू महिला सशक्तिकरण और कौशल विकास मिशन को। उठा सकती है।
इस बार लगभग 40 लाख नये मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। इनमें बड़ी संख्या 18–24 वर्ष के युवाओं की है, जो रोजगार और अवसरों को लेकर बेहद सजग हैं। राजनीतिक दलों ने इन्हें केंद्र में रखते हुए टिकट वितरण और प्रचार रणनीति बनाई जा रही है। तेजस्वी यादव की रैलियों में युवा भीड़ यह संकेत दी है कि यह वर्ग परिवर्तन चाहता है, जबकि भाजपा का कहना है कि “युवा स्थिरता चाहता है, प्रयोग नहीं।”
राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि 2025 का चुनाव बहुत क्लोज कांटेस्ट होने जा रहा है। एनडीए को सत्ता विरोधी लहर की चिंता है। महागठबंधन को मुस्लिम-यादव वोटों के साथ अन्य वर्गों में पैठ बनानी है। तीसरे मोर्चे का प्रदर्शन यह तय करेगा कि परिणाम किसकी झोली में जाता है। यदि सीमांचल और मगध में महागठबंधन अच्छा प्रदर्शन करता है, तो भाजपा-जेडीयू गठबंधन को झटका लग सकता है। वहीं अगर पटना, गया, मुजफ्फरपुर और भागलपुर जैसी शहरी सीटों पर भाजपा ने लहर बनाई, तो सत्ता फिर से उनके पास जा सकता है।
यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा, लेकिन यह तय है कि बिहार 2025 का चुनाव राज्य के राजनीतिक चरित्र को नई दिशा देगा। यह चुनाव विकास और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन की परख होगी। यह चुनाव तय करेगा कि बिहार की जनता परंपरा को चुनेगी या परिवर्तन को। लोकतंत्र के इस महासमर में जनता का ही अंतिम निर्णायक होगा।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल सत्ता परिवर्तन का अवसर नहीं है, बल्कि राज्य के विकास की दिशा तय करने वाला युगांतकारी क्षण है। राजनीतिक दलों के वादे, गठबंधनों के समीकरण और नेताओं के भाषण सब जनता के सामने हैं, लेकिन अंततः लोकतंत्र में निर्णायक मतदाता ही होता है। 6 और 11 नवंबर को जब करोड़ों मतदाता अपने वोट डालेंगे, तब केवल सरकार नहीं, बल्कि बिहार की नई कहानी लिखी जाएगी। 14 नवंबर को आने वाले नतीजे बताएँगे कि बिहार स्थिरता चाहता है या बदलाव। बिहार का लोकतंत्र बार-बार यह साबित करता है कि जनता हर समीकरण से ऊपर है। जाति, धर्म, या पार्टी, सब पीछे छूट जाता है जब मतदाता अपने भविष्य के लिए बटन दबाता है।
