वैष्णव, शैव और ब्रह्म तिलक का महत्व

Jitendra Kumar Sinha
0

 


आभा सिन्हा, पटना,

भारत की संस्कृति और परंपराएं अपनी गहराई और विविधता के लिए जानी जाती हैं। इनमें तिलक का विशेष महत्व है। तिलक केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के संप्रदाय, उसकी आस्था, उसके जीवन-मूल्य और उसकी आध्यात्मिक दिशा को भी दर्शाता है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। तिलक लगाने से मन में श्रद्धा, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह केवल माथे पर चंदन, रोली या भस्म लगाने का कार्य नहीं है, बल्कि यह शरीर और आत्मा को दिव्यता से जोड़ने का एक माध्यम है। हिन्दू धर्म में तिलक के अनेक प्रकार बताए गए हैं, परंतु मुख्यतः तीन तिलक प्रमुख माने जाते हैं, वह है वैष्णव तिलक, शैव तिलक और ब्रह्म तिलक। 

वेदों और उपनिषदों के अनुसार, तिलक को "तिलकं लक्षणं पुण्यं" कहा गया है, जिसका अर्थ है कि तिलक पुण्य का प्रतीक है। प्राचीन काल में तिलक केवल धार्मिक चिन्ह नहीं है, बल्कि योद्धाओं की पहचान भी होता था। राजपूत और क्षत्रिय युद्ध से पहले विशेष तिलक लगाते थे। तिलक को आज्ञा चक्र यानि तीसरे नेत्र से जोड़ा जाता है, जिससे व्यक्ति की एकाग्रता और ध्यान शक्ति बढ़ती है। तिलक से यह भी पता चलता है कि व्यक्ति किस संप्रदाय या परंपरा से संबंधित है वैष्णव, शैव या ब्रह्म। 

माथे पर बीच में तिलक लगाने से आज्ञा चक्र सक्रिय होता है, जिससे विचारों में स्पष्टता आती है। तिलक लगाने से मस्तिष्क शीतल होता है और मानसिक तनाव कम होता है। ज्योतिषीय मान्यता है कि तिलक से ग्रहों का संतुलन होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। चंदन का तिलक ठंडक देता है, भस्म का तिलक त्वचा की रक्षा करता है, और रोली का तिलक रक्त संचार को बेहतर बनाता है।

जो लोग भगवान विष्णु और उनके अवतारों (राम, कृष्ण, नृसिंह, वामन आदि) की पूजा करते हैं, वे वैष्णव तिलक धारण करते हैं। वैष्णव तिलक सामान्यतः चंदन से लगाया जाता है। यह पीले या हल्के मिट्टी जैसे रंग का होता है। इसका आकार "U" या दो खड़ी रेखाओं जैसा होता है, जो भगवान विष्णु के चरणों का प्रतीक माना जाता है। यह भक्त को विष्णु भक्ति में स्थिर करता है। तिलक को "ऊर्ध्वपुण्ड्र" भी कहते हैं। इसे धारण करने से माना जाता है कि जीव आत्मा भगवान विष्णु के चरणों से जुड़ा रहता है। दक्षिण भारत के श्रीवैष्णव संप्रदाय में तिलक का विशेष महत्व है। कई जगह इसे "रामानुज तिलक" भी कहते हैं।

जो भक्त भगवान शिव के उपासक होते हैं, वे शैव तिलक लगाते हैं। शैव तिलक को त्रिपुंड कहा जाता है। यह तीन क्षैतिज रेखाओं का होता है, जिसे भस्म, राख या चंदन से बनाया जाता है। इसके बीच में कभी-कभी लाल बिंदी भी लगाई जाती है। तीन रेखाएं तीन गुणों (सत्त्व, रज और तम) का प्रतीक हैं। यह शिव के त्रिनेत्र और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की ओर भी संकेत करता है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति स्वयं को शिव का अंश मानता है और भस्म का प्रयोग कर अहंकार का नाश करता है। काशी, उज्जैन और हिमालयी क्षेत्रों में शैव तिलक का विशेष महत्व है। नागा साधु और संन्यासी विशेष रूप से भस्म का तिलक धारण करते हैं।

ब्रह्म देव (सृष्टिकर्ता) और ज्ञान की साधना करने वाले लोग ब्रह्म तिलक लगाते हैं। यह सामान्यतः सफेद रोली या चंदन से लगाया जाता है। इसका आकार सीधी रेखा या गोल बिंदु जैसा होता है। इसे "प्राचीन ब्राह्मण तिलक" भी कहा जाता है। यह शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है। पुजारी जब पूजा करते हैं तो सबसे पहले यही तिलक धारण करते हैं। यह व्यक्ति को धार्मिक अनुशासन और तपस्या से जोड़ता है। गाँव और कस्बों में लोग पुजारियों और ब्राह्मणों को उनके तिलक से ही पहचान लेते हैं। यह विद्या, शुद्धता और पवित्रता का चिह्न माना जाता है।




नहाए बिना तिलक नही लगाना चाहिए क्योंकि कि शुद्धता आवश्यक है। तिलक लगाकर सोना वर्जित है क्योंकि तिलक ईश्वर की उपस्थिति का प्रतीक है। पहले भगवान को तिलक, फिर स्वयं को यह भक्ति का नियम है। स्वयं को तिलक लगाने में अनामिका (रिंग फिंगर) का प्रयोग करना चाहिए। दूसरों को तिलक लगाते समय अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए। तिलक हमेशा श्रद्धा और एकाग्रता से लगाना चाहिए क्योंकि कि यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि साधना है।

कुमकुम तिलक माता लक्ष्मी और शक्ति का प्रतीक। चंदन तिलक शीतलता और विष्णु भक्ति का प्रतीक। भस्म तिलक शिव भक्ति और वैराग्य का प्रतीक। हल्दी तिलक शुभता और मंगल कार्य का संकेत है।

आज भले ही लोग तिलक को केवल धार्मिक या पारंपरिक चिह्न समझते हों, लेकिन यह अभी भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए तिलक लगाने से मस्तिष्क शीतल रहता है और तनाव कम होता है। आत्मविश्वास के लिए यह व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा देता है। आध्यात्मिक जुड़ाव के लिए यह मनुष्य को उसकी जड़ों और संस्कृति से जोड़े रखता है। सामाजिक पहचान के विवाह, त्योहार, मंदिर और अनुष्ठानों में तिलक अभी भी अनिवार्य है।

तिलक केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक साधना, सांस्कृतिक पहचान और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैष्णव तिलक भगवान विष्णु के चरणों की भक्ति का प्रतीक है। शैव तिलक शिव के वैराग्य और तीन गुणों का स्मरण कराता है। ब्रह्म तिलक ज्ञान, शुद्धता और सृष्टि की साधना का प्रतीक है।
तिलक लगाने से न केवल व्यक्ति की श्रद्धा प्रकट होती है, बल्कि उसका मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। यही कारण है कि तिलक की परंपरा हजारों वर्षों बाद भी जीवित है और आने वाली पीढ़ियों तक इसे संजोकर रखा जाएगा।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top