असम के हैलाकांडी जिला से उठी एक ध्वनि ने पूरे राज्य की सियासत में हलचल मचा दिया है। कांग्रेस सेवा दल की एक बैठक में कथित तौर पर बांग्लादेश का राष्ट्रगान गाए जाने का आरोप लगा है, और देखते ही देखते यह मुद्दा पूरे राजनीतिक अखाड़े में चर्चा का केंद्र बन गया है। राज्य सरकार ने तुरंत जांच के आदेश देकर माहौल और गंभीर कर दिया है।
घटना श्रीभूमि इलाके की है, जहां कांग्रेस सेवा दल की बैठक आयोजित की गई थी। कुछ उपस्थित लोगों की शिकायत के बाद यह मामला चर्चा में आया। आरोप यह है कि बैठक की शुरुआत के दौरान जो गीत गाया गया, वह भारत का नहीं बल्कि बांग्लादेश का राष्ट्रगान था। जैसे ही वीडियो और बयान सामने आया, सरकार की ओर से प्रतिक्रिया आना तय था। मंत्री कृष्णेंदु पॉल ने जांच के आदेश जारी किया और कहा कि राष्ट्र से जुड़ी भावनाओं के साथ कोई भी खिलवाड़ सहन नहीं किया जाएगा।
लेकिन कांग्रेस की सफाई भी उतनी ही तेज आई। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह गीत नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था और “आमार सोनार बांग्ला” बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। उनके अनुसार, इसे एक सांस्कृतिक प्रस्तुति के रूप में गाया गया था, न कि किसी राष्ट्रगान के रूप में। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि यह आरोप राजनीति से प्रेरित है और गलत समझ के आधार पर माहौल गर्म किया जा रहा है।
यहां बहस का दिलचस्प हिस्सा इतिहास में छिपा है। रवींद्रनाथ टैगोर ने “जन गण मन” और “आमार सोनार बांग्ला” दोनों ही रचनाएँ की थीं। एक भारत का राष्ट्रगान बना और दूसरा बांग्लादेश का। यानि गीत की जड़ें भारतीय साहित्य में हैं, भले आज वह दूसरे देश का राष्ट्रीय गीत हो। यही जगह है जहां राजनीति भावनाओं से मिलती है और विवाद जन्म लेता है।
इस मामले ने फिर याद दिलाया है कि गीत सिर्फ सुर और शब्द नहीं होता है। वह पहचान, संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन जाता है। प्रश्न यह नहीं है कि टैगोर का गीत महान है या नहीं, बल्कि यह कि किसी राजनीतिक कार्यक्रम में कौन सा गीत, किस संदर्भ में गाया गया। सार्वजनिक मंच पर प्रतीकों का अपना भार होता है और गलतफहमी भी तेजी से फैलती है।
सरकार की जांच से साफ होगा कि यह मामला सच में एक गलती थी या किसी सांस्कृतिक प्रस्तुति की अनचाही राजनीतिक व्याख्या। पर फिलहाल, असम की हवा में आरोप और जवाब के सुर तैर रहे हैं। यह प्रकरण यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक जल्दबाजी कितनी आसानी से सामान्य सांस्कृतिक घटनाओं को विवाद में बदल सकती है।
जब तक जांच पूरी नहीं होती है, तब तक प्रश्न उठता रहेगा कि क्या यह एक चूक थी, राजनीति का रंग था, या सिर्फ एक गीत जो इतिहास की सीमा रेखा में फंस गया?
