बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले “बुर्का में मतदान” को लेकर शुरू हुआ विवाद अब बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। भाजपा ने चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि बुर्का या चेहरे को पूरी तरह ढकने वाले परिधान में मतदान करने वाली महिला मतदाताओं की पहचान की उचित व्यवस्था की जाए ताकि मतदान प्रक्रिया पारदर्शी रहे और कोई फर्जी मतदान न हो सके। पार्टी का तर्क है कि मतदान लोकतंत्र की पवित्र प्रक्रिया है, इसलिए हर मतदाता की पहचान स्पष्ट होनी चाहिए। भाजपा की इस मांग को लेकर विपक्षी दलों, विशेषकर राजद और कांग्रेस, ने तीखा विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह कदम धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ है और इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को डराना तथा उन्हें मतदान से हतोत्साहित करना है।
विवाद बढ़ने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बयान दिया कि आयोग किसी भी तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं देगा और मतदाता पहचान संबंधी प्रक्रियाएँ सिर्फ चुनाव आयोग की मौजूदा गाइडलाइन के अनुसार ही चलेंगी। आयोग के अनुसार, यदि किसी मतदाता के चेहरे की पहचान आवश्यक समझी जाती है, तो वह कार्य महिला कर्मी द्वारा निजी रूप से किया जाएगा ताकि मतदाता की गरिमा बनी रहे। खबरों के अनुसार, आयोग ने इस व्यवस्था में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद लेने का सुझाव दिया है, जो मतदान केंद्रों पर महिला मतदाताओं की पहचान में सहायता करेंगी।
भाजपा के प्रस्ताव के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि देश में सभी के लिए नियम एक समान होने चाहिए — अगर बुर्के में चेहरा दिखाने की बात है, तो वही नियम उन महिलाओं पर भी लागू होना चाहिए जो घूंघट या अन्य किसी परिधान में चेहरा ढकती हैं। उन्होंने कहा कि यह मांग किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि मतदान की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए है।
दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया है। राजद ने कहा कि यह मुद्दा चुनाव से पहले जानबूझकर उठाया गया है ताकि समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा सके। कांग्रेस और वाम दलों ने भी कहा कि बुर्का पहनना व्यक्तिगत और धार्मिक अधिकार है, और किसी को इसे हटाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह न तो किसी समुदाय को निशाना बनाएगा और न ही किसी मतदाता के साथ भेदभाव की अनुमति देगा। आयोग का ध्यान मतदान सूची की शुद्धता, बूथों की निगरानी, और मतदान प्रक्रिया को सुरक्षित और तेज़ बनाने पर है। बताया गया कि इस बार 17 नई पहलें लागू की जा रही हैं, जिनमें मतदाता सूची की “शुद्धि” (purification), नकद लेनदेन पर निगरानी, और मोबाइल डिपॉजिट सुविधा जैसी व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
बुर्का विवाद ने चुनावी माहौल में एक नई बहस छेड़ दी है — एक ओर पारदर्शिता और सुरक्षा की दलील दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक स्वतंत्रता और महिला गरिमा की रक्षा का सवाल उठ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह मुद्दा सावधानी से नहीं संभाला गया, तो यह बिहार चुनाव के राजनीतिक समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
