बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। भाजपा, जद (यू), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हम (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा — सभी अपने-अपने हिस्से को लेकर रणनीति बना रहे हैं। अंदरूनी बातचीत के बावजूद कई सीटों पर मतभेद गहराते जा रहे हैं।
एनडीए में फिलहाल दो प्रमुख दल — भाजपा और जद (यू) — अपनी स्थिति को लेकर सबसे ज्यादा सतर्क हैं। जद (यू) चाहती है कि उसका सीट हिस्सा पिछली बार जैसा ही रहे या उसमें थोड़ी बढ़ोतरी हो, जबकि भाजपा अब बराबरी की स्थिति चाहती है। दोनों दलों के बीच यह भी तय नहीं हो पा रहा कि किन क्षेत्रों को “लॉक सीट” माना जाए, यानी वे सीटें जिन पर दूसरे दल दावा नहीं कर सकते।
एलजेपी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने सीट बंटवारे पर नया मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि उन्हें ज्यादा सीटों की नहीं, बल्कि “जीतने योग्य सीटों” की जरूरत है। चिराग का कहना है कि पार्टी का फोकस गुणवत्ता पर होगा, मात्रा पर नहीं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि जनता का समर्थन रहा, तो वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में भी सामने आ सकते हैं।
दूसरी ओर, जितन राम मांझी की हम (सेक्युलर) पार्टी ने करीब 22 सीटों की मांग रखी है। इनमें से लगभग आधी सीटें वे पहले से चिन्हित कर चुके हैं, जैसे इमामगंज, जहानाबाद, कुटुम्बा और टेकारी। मांझी ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि एनडीए में कोई बड़ी फूट नहीं है, लेकिन अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि उनके समर्थक भी सीट संख्या को लेकर असंतोष जता रहे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी “सम्मानजनक” हिस्सेदारी की मांग पर अड़ी हुई है। वे चाहते हैं कि उन्हें कम से कम 8 से 10 सीटें दी जाएं।
सूत्रों के अनुसार, दो संभावित फॉर्मूले चर्चा में हैं। पहले फॉर्मूले में भाजपा को 120 सीटें, जद (यू) को 123 सीटें देने की बात है, जिनमें से जद (यू) अपने सहयोगियों हम और आरएलएम को कुछ सीटें दे सकता है। दूसरे फॉर्मूले में भाजपा और जद (यू) को लगभग बराबर सीटें — भाजपा को 101 और जद (यू) को 102 — दी जा सकती हैं, जबकि शेष 40 सीटें छोटे सहयोगियों में बांटी जाएंगी।
इन सबके बीच चिराग पासवान अपनी सियासी चालें बड़ी सटीकता से चल रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थकों के बीच “चिराग का चौपाल” नाम से अभियान शुरू करने की योजना बनाई है, जिससे वे सीधे जनता तक पहुंच बनाकर अपने लिए दबाव का माहौल तैयार कर सकें। एलजेपी ने यह भी कहा है कि यदि उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे “स्वतंत्र पहचान” के साथ चुनाव लड़ेंगे।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एनडीए के लिए यह सीट बंटवारा 2020 के मुकाबले कहीं अधिक पेचीदा साबित हो सकता है। हर दल अपने को “निर्णायक” बताने की कोशिश कर रहा है, और ऐसे में तालमेल बैठाना आसान नहीं होगा। उम्मीद है कि 10 अक्टूबर तक सीट बंटवारे का अंतिम फॉर्मूला घोषित कर दिया जाएगा, लेकिन तब तक बिहार की राजनीति में सस्पेंस और सियासी बयानबाजी जारी रहेगी।
