बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के बीच पांच सीटों पर घमासान, मुख्यमंत्री चेहरे पर भी अटका फैसला

Jitendra Kumar Sinha
0

 



बिहार की राजनीति में इस समय गठबंधन के भीतर की लड़ाई बाहरी विपक्ष से ज्यादा भारी पड़ती दिख रही है। आरजेडी और कांग्रेस के बीच पांच सीटों पर सियासी जंग खुलकर सामने आ गई है — बायसी, बहादुरगंज, रानीगंज, कहलगांव और सहरसा। ये वे सीटें हैं जहां दोनों दलों का पुराना दावा है और कोई भी एक इंच पीछे हटने को तैयार नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने रानीगंज, सहरसा और बायसी से चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस को कहलगांव और बहादुरगंज दी गई थीं। इस बार समीकरण पलटे हुए हैं। आरजेडी अब कहलगांव और बहादुरगंज को भी अपने हिस्से में चाहती है, जबकि कांग्रेस रानीगंज, सहरसा और बायसी छोड़ने के मूड में नहीं है।


इन पांच सीटों को लेकर दोनों दलों के बीच बातचीत कई दौर में हुई, लेकिन कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया। आरजेडी का तर्क है कि इन इलाकों में पार्टी की पकड़ मजबूत है और 2020 के मुकाबले उनका वोट शेयर काफी बढ़ा है। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि पिछली बार मिली दो सीटों पर उसने सम्मानजनक प्रदर्शन किया और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश है, इसलिए अब उन्हें और सीटें मिलनी चाहिए। यही खींचतान अब गठबंधन के लिए सिरदर्द बन चुकी है।


आंतरिक विवाद यहीं तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय करने पर भी मतभेद उभर आए हैं। आरजेडी चाहता है कि महागठबंधन तेजस्वी यादव को स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करे, ताकि जनता के बीच संदेश साफ जाए। कांग्रेस, हालांकि, इस प्रस्ताव पर अब तक हामी नहीं भर पाई है। कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि फिलहाल किसी एक चेहरे पर दांव लगाने से गठबंधन के अन्य सहयोगियों की नाराजगी बढ़ सकती है, इसलिए इसे चुनाव के बाद तय किया जाए।


पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस खींचतान ने ग्राउंड लेवल कार्यकर्ताओं में असमंजस पैदा कर दिया है। कई जिलों में दोनों दलों के स्थानीय नेता अपने-अपने प्रत्याशियों की तैयारी में जुट गए हैं, जिससे तालमेल की जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी है। अगर यही स्थिति रही, तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ के लिए यह आंतरिक संघर्ष भारी पड़ सकता है।


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन पांच सीटों पर झगड़ा सिर्फ सीट शेयरिंग का नहीं, बल्कि वर्चस्व का प्रतीक बन चुका है। बिहार की राजनीति में जहां जातीय समीकरण और क्षेत्रीय प्रभुत्व निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहां किसी भी दल के लिए अपनी पकड़ वाले क्षेत्र छोड़ना आसान नहीं होता। आरजेडी की रणनीति है कि ज्यादा सीटें लेकर महागठबंधन में अपनी स्थिति और मजबूत की जाए, जबकि कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।


इस बीच, जमीनी स्तर पर बीजेपी और जेडीयू गठबंधन अपनी रणनीति को धार दे रहे हैं और विपक्षी खेमे के भीतर मची इस उथल-पुथल का फायदा उठाने की कोशिश में हैं। एनडीए नेताओं का मानना है कि अगर आरजेडी और कांग्रेस के बीच ये खींचतान लंबी चली, तो कई सीटों पर विपक्षी वोटों का बिखराव तय है, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन को सीधा लाभ मिलेगा।


अब सारी निगाहें अगले एक-दो हफ्तों पर टिकी हैं, जब महागठबंधन की सीट शेयरिंग को अंतिम रूप देने की उम्मीद है। अगर समझौता नहीं हुआ, तो ये पांच सीटें चुनाव से पहले ही महागठबंधन में दरार की वजह बन सकती हैं, जिसका असर पूरे बिहार में देखने को मिलेगा।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top