महाकाल मंदिर हुआ डिजिटल - अब श्रद्धालु क्यूआर कोड से कर सकेंगे दान और प्रसाद की खरीदारी

Jitendra Kumar Sinha
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उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में अब भक्तों को नकदी साथ लेकर चलने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कैशलेस भुगतान प्रणाली शुरू की है। इस नई व्यवस्था के तहत भक्तगण मंदिर में दान देने और लड्डू प्रसाद खरीदने के लिए अब केवल क्यूआर कोड स्कैन कर भुगतान कर सकेंगे।


श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति ने यह सुविधा आधुनिक डिजिटल युग के अनुरूप शुरू की है। मंदिर के प्रशासक प्रथम कौशिक ने बताया कि अब श्रद्धालु मंदिर परिसर में लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर यूपीआई आधारित किसी भी भुगतान ऐप, जैसे कि भीम, फोनपे, गूगल पे या पेटीएम, के माध्यम से भुगतान कर सकते हैं। क्यूआर कोड मंदिर के दान काउंटरों, लड्डू प्रसाद काउंटरों और अन्य प्रमुख स्थलों पर लगाए गए हैं, ताकि भक्तों को भुगतान में किसी तरह की असुविधा न हो।


इस नई व्यवस्था से मंदिर प्रशासन और श्रद्धालुओं दोनों को ही लाभ मिलेगा। अब भक्तों को नकदी रखने या छुट्टे पैसों की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा, डिजिटल भुगतान से लेनदेन का पूरा रिकॉर्ड स्वतः बन जाएगा, जिससे दान प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहेगी। प्रशासन के अनुसार, क्यूआर कोड से किया गया भुगतान सीधे मंदिर समिति के बैंक खाते में जमा होगा, जिससे किसी तरह की गड़बड़ी या देरी की संभावना नहीं रहेगी।


महाकाल मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। त्यौहारों या विशेष अवसरों पर यह संख्या लाखों तक पहुँच जाती है। पहले भक्तों को दान करने या प्रसाद खरीदने के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता था। नकद लेनदेन में समय लगने के कारण भीड़ बढ़ जाती थी। अब डिजिटल भुगतान से लेनदेन तेजी से होगा, जिससे काउंटरों पर लगने वाली कतारें छोटी होगी और व्यवस्थापन में भी आसानी होगी।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “डिजिटल इंडिया” अभियान के अनुरूप यह पहल धार्मिक स्थलों पर भी डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन देगी। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि नकदी रहित व्यवस्था से सुरक्षा और स्वच्छता भी बनी रहेगी।


महाकाल मंदिर प्रशासन की यह पहल तकनीक और श्रद्धा का सुंदर संगम है। इससे मंदिर की व्यवस्थाएं आधुनिक बनेगी और भक्तों का अनुभव और भी सहज एव सुखद होगा। यह कदम यह साबित करता है कि आस्था और डिजिटल नवाचार साथ-साथ चल सकता है, और भविष्य में देश के अन्य धार्मिक स्थलों के लिए भी यह एक प्रेरणादायक उदाहरण बनेगा।

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