“विरजाक्षेत्र शक्तिपीठ” (देवी सती का नाभि गिरा था)

Jitendra Kumar Sinha
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भारत को देवी की भूमि कहा गया है। यहाँ की मिट्टी में शक्ति की सुवास रची-बसी है। उत्तर में माता वैष्णोदेवी, पश्चिम में अंबामाता, दक्षिण में कामाक्ष्या और पूर्व में विमला। यह सभी भारत के चार कोनों में स्थित दिव्य शक्तिपीठ हैं। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है “विरजाक्षेत्र शक्तिपीठ”, जो उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) में स्थित है। यह वही पावन भूमि है जहाँ माता सती की नाभि गिरी थी, और जहाँ देवी का रूप विमला के नाम से पूजित है। इस स्थल का भैरव जगन्नाथ कहलाते हैं। यह वही जगन्नाथ हैं, जिनकी महिमा पूरे जग में गूँजती है। विरजाक्षेत्र केवल एक शक्तिपीठ नहीं है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक संस्कृति, भक्ति, शक्ति और वैष्णव परंपरा के अद्भुत संगम का केंद्र है।


विरजाक्षेत्र उड़ीसा के जाजपुर (Jajpur) जिले में स्थित है। जाजपुर को पुराणों में “विरजाक्षेत्र” या “नाभिक्षेत्र” भी कहा गया है। यहाँ की धरती चंपा फूल-सी कोमल है, परंतु इसकी आध्यात्मिक आभा अग्नि-सी प्रखर है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता सती के जले हुए शरीर को लेकर शोकाकुल होकर विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंगों को विभक्त किया। माता सती की नाभि इस स्थान पर आकर गिरी थी। इसी कारण यह स्थान “नाभिक्षेत्र” या “विरजाक्षेत्र” कहलाया।


माँ विमला यहाँ शुद्धता, संतुलन और चैतन्य की प्रतीक हैं। “विमला” शब्द का अर्थ ही है, जो मलरहित हो, यानि निर्मल, निष्कलंक। देवी विमला न केवल एक शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री हैं, बल्कि जगन्नाथ धाम की भी अभिन्न अंग हैं। जगन्नाथ मंदिर के भीतर देवी विमला का मंदिर स्थित है, और बिना उनकी पूजा के भगवान जगन्नाथ की आराधना अधूरी मानी जाती है।


कालिका पुराण, स्कंद पुराण, देवी भागवत पुराण और तंत्र चूड़ामणि में विमला का उल्लेख मिलता है। विमला को यहाँ जगन्माता का शुद्ध स्वरूप बताया गया है, जो सृष्टि, स्थिति और लय, तीनों का संतुलन करती हैं। विमला की उपासना को “विरजा साधना” कहा गया है, जिसमें भक्ति और ज्ञान दोनों का समन्वय होता है।


विरजाक्षेत्र का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि यहाँ शक्ति और विष्णु, दोनों का एकाकार होता है। यहाँ के भैरव स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं। अर्थात, यहाँ की शक्ति हैं, विमला देवी, और भैरव हैं जगन्नाथ। यह एक अद्भुत आध्यात्मिक संकेत है। सामान्यतः शक्ति पीठों में भैरव किसी शिवरूप में पूजित होते हैं, लेकिन यहाँ विष्णु स्वयं भैरव के रूप में उपस्थित हैं। यह एकता दर्शाता है कि शक्ति और विष्णु भिन्न नहीं हैं, बल्कि एक ही दिव्यता के दो पक्ष हैं।


उड़ीसा की धार्मिक परंपरा में इसे “वैष्णव-शाक्त संगम” कहा गया है। जगन्नाथ धाम पुरी में भी देवी विमला का मंदिर स्थित है, जहाँ बिना विमला की पूजा के भगवान जगन्नाथ को न तो भोग लगाया जाता है, न रथयात्रा का उत्सव पूर्ण माना जाता है।


विरजाक्षेत्र का इतिहास हज़ारों वर्षों पुराना है।nपुराणों में इसे “उत्कल देश का आध्यात्मिक केंद्र” कहा गया है। जाजपुर पहले “वर्णपुर” या “यजपुर” के नाम से प्रसिद्ध था, जहाँ हजारों यज्ञ किए जाते थे। राजा ययाति के नाम पर “यजपुर” है। कहा जाता है कि राजा ययाति ने यहाँ यज्ञ किया था, जिससे यह भूमि “यजपुर” कहलायी। गुप्तकाल और सोमवंश काल में विमला देवी की पूजा के प्रमाण मिले हैं। केशरी वंश (8वीं–12वीं शताब्दी) में राजा ययाति केसरी ने यहाँ विमला मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और इसे उत्कल की धार्मिक राजधानी बनाया। इस काल में जाजपुर में 108 मंदिर, 36 तीर्थ और सैकड़ों सरोवर थे। इसे “उड़ीसा का काशी” कहा जाने लगा।


विमला मंदिर उड़ीसा के प्राचीन केशरी स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की रचना पत्थर से की गई है, जिसमें सुंदर नक़्क़ाशी और अलंकरण हैं। गरभगृह (Sanctum Sanctorum) जहाँ विमला देवी की प्रतिमा स्थित है, जिसे शिलामूर्ति कहा गया है। नाटमंडप जहाँ भक्त नृत्य-कीर्तन करते हैं। अर्धमंडप और भोगमंडप जहाँ भोग तैयार किया जाता है। मुख्य द्वार जहाँ परंपरागत सिंहद्वार के रूप में निर्मित है, जिसके दोनों ओर द्वारपाल स्थित हैं। मंदिर की मूर्तियाँ देवताओं, नर्तकियों, पुष्पमालाओं और पौराणिक दृश्यों को उकेरती हैं, जो ओडिशा की मूर्तिकला परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं।





माँ विमला का स्वरूप त्रिनेत्रा और अष्टभुजा वाला बताया गया है। उनके हाथों में त्रिशूल, कमल, शंख, चक्र, वरमुद्रा, अभयमुद्रा, खड्ग और घंटा धारण है। वे सिंहवाहिनी हैं और उनके चरणों में भक्त झुके रहते हैं। कहा जाता है कि माँ विरजा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं, रोग से मुक्ति देती हैं, भय दूर करती हैं, ज्ञान और वैराग्य प्रदान करती हैं और जीवन में संतुलन लाती हैं।


विरजाक्षेत्र के चारों ओर अनेक पवित्र तीर्थ और सरोवर हैं। इसे पंचतीर्थ कहा गया है। भक्त सबसे पहले इन तीर्थों में स्नान करके विमला के दर्शन करते हैं। मुख्य तीर्थ हैं  ब्रह्म कुंड, रुद्ध कुंड, पापनाशिनी कुंड, रत्नकुंड और गोमती तीर्थ। इन सरोवरों में स्नान करने से पापों का नाश होता है, ऐसा विश्वास है।


विरजा मंदिर में पूजा शाक्त परंपरा के अनुसार की जाती है, परंतु यहाँ वैष्णव रीति का भी मेल है। प्रत्येक दिन अभिषेक, आरती, भोग और चंडीपाठ होता है। नवरात्र के समय मंदिर में अत्यधिक भीड़ रहती है। नौ दिन तक चंडी हवन और देवी नवरूपों की पूजा होती है। दुर्गापूजा और कोजागरी पूर्णिमा को विमला महाभोज का आयोजन होता है। जगन्नाथ रथयात्रा के समय विशेष अनुष्ठान होता है क्योंकि विमला और जगन्नाथ का संबंध अभिन्न माना गया है। माघ सप्तमी के दिन विशेष स्नान और पूजन का विधान है।


पुरी के जगन्नाथ मंदिर के भीतर विमला देवी का मंदिर स्थित है। वहाँ एक धार्मिक नियम है जब तक माँ विमला को भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद का अर्पण नहीं किया जाता है, तब तक वह भोग भक्तों के लिए “महाप्रसाद” नहीं कहलाता है। यह संबंध दर्शाता है कि उड़ीसा की संस्कृति में शक्ति और विष्णु दोनों समान रूप से पूजनीय हैं।


विरजाक्षेत्र को तांत्रिक साधना का केंद्र माना गया है। यहाँ की साधना में “कुंडलिनी जागरण” की अवधारणा नाभि से जुड़ी हुई है। क्योंकि यहाँ सती की नाभि गिरी थी, इसलिए साधक इसे “कुंडलिनी शक्ति का मूल स्रोत” मानते हैं। “तंत्र चूड़ामणि” में कहा गया है कि “नाभिक्षेत्रे विराजाख्या विमला शक्तिरूपिणी।”  अर्थात  “नाभिक्षेत्र में विरजा नाम की देवी विमला शक्ति के रूप में विद्यमान हैं।” यह क्षेत्र योगियों के लिए भी ध्यान-साधना का विशेष स्थल है।


स्थानीय जनमानस में विमला माता को “मा बिरजा” कहा जाता है। भक्तों का विश्वास है कि माता सच्चे मन से पुकारने पर तुरंत सहायता करती हैं। रात में जब मंदिर बंद होता है, तब भी देवी का दीपक स्वयं जलता रहता है। विमला माता के मंदिर में कोई भी दुष्ट शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पाती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति यहाँ एक बार दर्शन कर लेता है, उसे जीवन में पुनर्जन्म का भय नहीं रहता है।


विरजाक्षेत्र शक्तिपीठ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि भारत की अखंड आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। यहाँ शक्ति और विष्णु का अद्वैत रूप दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में भेद नहीं है, एकत्व की अनुभूति ही सर्वोच्च है। माँ विमला के दर्शन करने से ऐसा अनुभव होता है मानो स्वयं नाभि से जीवन की ऊर्जा प्रवाहित हो रही हो। यहाँ की वायु में भक्ति का माधुर्य है, यहाँ के मंदिरों में वैदिक मंत्रों की गूँज है और यहाँ की मिट्टी में माँ के आशीर्वाद की शीतलता है।

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