आर्यभट्ट की कर्मभूमि ‘तारेगना’ बनेगा - “एस्ट्रो टूरिज्म हब”

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार का ऐतिहासिक कस्बा तारेगना, जिसे प्राचीन काल से खगोलीय अध्ययन का केंद्र माना जाता है, अब एक बड़े टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सोमवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक उच्चस्तरीय टीम ने मसौढ़ी के प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण किया, जिससे क्षेत्र में उत्साह और उम्मीदों का नया सवेरा दिखाई देने लगा है।

तारेगना को आर्यभट्ट की कर्मभूमि कहा जाता है। यहां सदियों पहले खगोलविद आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण और तारों की गति का गहन अध्ययन किया था। इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को आधार बनाते हुए सरकार यहां आर्यभट्ट वेधशाला और एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट को विकसित करने की दिशा में कार्य कर रही है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जॉइंट सेक्रेटरी मनजीत कुमार, संयुक्त निदेशक, एसडीओ अभिषेक कुमार, बीडीओ प्रभाकर कुमार, सीओ प्रभात रंजन सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र का भौतिक सत्यापन किया। टीम ने तारेगना को एक आधुनिक “एस्ट्रो टूरिज्म हब” बनाने की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की।

निरीक्षण के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि परियोजना का दायरा बेहद व्यापक है। योजना है कि 50 से 100 एकड़ भूमि पर एक अत्याधुनिक वैज्ञानिक कैंपस तैयार किया जाए, जिसमें विशाल खगोल विज्ञान संग्रहालय (म्यूजियम), अत्याधुनिक शोध केंद्र (रिसर्च सेंटर), आधुनिक स्टडी सेंटर, समृद्ध लाइब्रेरी और ओपन एयर एस्ट्रो व्यूइंग जोन,  का निर्माण किया जाएगा। यह परिसर न केवल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करेगा, बल्कि देश–विदेश के पर्यटकों के लिए भी एक अनोखा गंतव्य बनेगा।

तारेगना में एस्ट्रो टूरिज्म की शुरुआत होने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। होटल, होम-स्टे, रेस्टोरेंट, ट्रैवल गाइड और लोकल हैंडीक्राफ्ट्स जैसे क्षेत्रों में विकास होने की संभावना है। इससे मसौढ़ी और पटना ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

आर्यभट्ट चेतना मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सुनील कुमार गावस्कर भी निरीक्षण के दौरान उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि यह योजना न सिर्फ तारेगना की ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जीवित करेगी बल्कि बिहार को विज्ञान और पर्यटन के क्षेत्र में नई पहचान दिलाएगी।

तारेगना का एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट सिर्फ एक वेधशाला का निर्माण नहीं है, बल्कि भारत को विज्ञान-पर्यटन के विश्व मानचित्र पर स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। आर्यभट्ट की धरोहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की यह पहल आने वाले वर्षों में लाखों पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है।



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