बरसात की बूंदों से भी होगा रोशनी - चीन ने बनाया पानी पर तैरने वाला उपकरण

Jitendra Kumar Sinha
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पृथ्वी पर ऊर्जा के नए स्रोतों की खोज हमेशा से विज्ञान की प्राथमिकताओं में रही है। कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे पारंपरिक स्रोत सीमित हैं और पर्यावरण प्रदूषण का बड़ा कारण भी। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा, सौर, पवन, जल और भू-तापीय, दुनिया की उम्मीद बनकर उभरी है। इसी श्रृंखला में एक नई, चौंकाने वाली और बेहद उपयोगी खोज सामने आई है “बारिश की बूंदों से बिजली उत्पादन”।

चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी ऑफ एरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स ने ऐसा अनोखा, हल्का-फुल्का, तैरने वाला उपकरण बनाया है जो प्रत्येक बारिश की बूंद से 250 वोल्ट तक का इलेक्ट्रिक पल्स उत्पन्न कर सकता है। यह तकनीक ऊर्जा जगत में क्रांति ला सकती है।

मानव जाति ने सदियों से बारिश को जीवन के प्रतीक के रूप में देखा है कृषि के लिए, पेयजल के लिए, पर्यावरण के लिए। लेकिन कभी कल्पना भी नहीं की गई थी कि आसमान से गिरती साधारण पानी की बूंदें बिजली भी दे सकती हैं। पिछले कुछ वर्षों में वैज्ञानिकों ने बारिश की ऊर्जा को उपयोग में लाने की दिशा में शोध किया है। लेकिन अब चीन के वैज्ञानिकों ने इसे व्यावहारिक रूप में बदल दिया है। नानजिंग यूनिवर्सिटी की टीम ने इस तकनीक को एक ऐसे स्तर पर पहुंचा दिया है जहां यह सिर्फ प्रयोगशाला की अवधारणा नहीं है, बल्कि वास्तविक जीवन में उपयोगी डिवाइस बन चुकी है।

जब बारिश की बूंद किसी सतह पर गिरती है, तो बूंद का आकार बदलता है।पानी के कण फैलते हैं। आयनों की गति बदलती है। सतह पर विद्युत आवेश उत्पन्न होता है। इसी ड्रॉप इम्पैक्ट एनर्जी + आयन मोशन के संयोजन से बिजली बनती है। चीन के वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को तकनीक का रूप दिया है।

यह उपकरण बेहद हल्का, पानी की सतह पर तैरने योग्य, पारदर्शी-सा पतला प्लेटफॉर्म, अंदर लगे हुए नैनो-मैकेनिकल सेंसर और आयन-आधारित इलेक्ट्रिक जनरेशन यूनिट है। यह झील, तालाब या समुद्र की सतह पर तैर सकता है, जिससे बारिश की हर बूंद सीधे इस डिवाइस पर गिरती है।

इस उपकरण का काम करने की प्रक्रिया बेहद वैज्ञानिक और दिलचस्प है। जब आकाश से कोई बूंद गिरकर डिवाइस की सतह पर टकराती है, तो एक छोटा-सा झटका या इम्पैक्ट बनता है। क्योंकि डिवाइस पानी पर तैर रहा है, इसलिए सतह पर गिरने वाली बूंद का झटका नीचे के पानी से संतुलित हो जाता है। इससे डिवाइस स्थिर रहता है और टूटने की संभावना नहीं होती है। बारिश की बूंद टकराकर फैल जाती है और सतह पर फैले आयनों से संपर्क करती है। बूंद में मौजूद हाइड्रोजन एव ऑक्सीजन आयन, तथा डिवाइस में मौजूद इलेक्ट्रोएक्टिव सामग्री के बीच परस्पर क्रिया होती है, जिससे इलेक्ट्रिक पल्स उत्पन्न होता है। जो भी वोल्टेज उत्पन्न होता है उसे बैटरी में, सुपरकैपेसिटर में या सीधे किसी उपकरण को भेजा जा सकता है।

250 वोल्ट सुनकर बड़ी मात्रा लग सकती है, लेकिन यह एक पल्स वोल्टेज है। इसका उपयोग कम पावर वाले उपकरणों या बैटरी चार्जिंग के लिए किया जा सकता है। यह इसलिए संभव है क्योंकि बूंद के फैलाव से उत्पन्न ऊर्जा को वैज्ञानिकों ने अधिकतम दक्षता से कैप्चर करने की तकनीक विकसित की है।

आने वाले समय में यह तकनीक शहरों की बारिश, समुद्री तूफानों, पहाड़ी वर्षा, झील और तालाब क्षेत्रों से अनंत ऊर्जा प्राप्त कर सकती है। धुआं नहीं, प्रदूषण नहीं, तापमान बढ़ोतरी नहीं, कार्बन उत्सर्जन शून्य, यह 100% हरित ऊर्जा है। जहां बिजली पहुंचना मुश्किल है पहाड़ी गांव, जंगल क्षेत्र, समुद्री तट और हिमालयी क्षेत्र। वहां यह तकनीक जीवन बदल सकती है।

आज दुनिया ऊर्जा संकट से जूझ रही है जीवाश्म ईंधन खत्म हो रहे हैं, बिजली की मांग तेज गति से बढ़ रही है और नवीकरणीय ऊर्जा की सीमाएं हैं।  सौर ऊर्जा सिर्फ धूप में, पवन ऊर्जा सिर्फ हवा में और जल विद्युत सिर्फ बड़े बांध में मिलती है, लेकिन बारिश हर जगह होती है शहरों में भी, पहाड़ों पर भी, समुद्र में भी, गांवों में भी। इसलिए यह तकनीक दुनिया के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

जैसे आज सोलर पैनल लगाए जाते हैं, वैसे ही भविष्य में रेन-एनर्जी पैनल लगाए जा सकते हैं। समुद्र में हर साल करोड़ों लीटर बारिश होती है। इस तकनीक का बड़े स्तर पर उपयोग करके बारिश आधारित बिजली संयंत्र बनाया जा सकता है। भविष्य का स्मार्ट शहर इस तकनीक पर चल सकता है। CCTV, सिग्नल सेंसर, सड़क लाइटें और मौसम उपकरण। सब बारिश से चार्ज हो सकेगा। जहां वज्रपात और बारिश अधिक होती है वहां यह तकनीक सैनिकों के लिए ऊर्जा का बड़ा स्रोत बनेगा। पहाड़ों में तैनात सेना, वैज्ञानिक अभियान और रिसर्च स्टेशंस, सबको इससे फायदा होगा।

सौर ऊर्जा की सीमाएं हैं, रात में काम नहीं करती, बादल होने पर दक्षता गिरती है और वर्षा ऋतु में उपयोग कम
होता है, जबकि बारिश की ऊर्जा का पीक मौसम वही है जब सौर ऊर्जा कमजोर होती है। अर्थात दोनों तकनीकें एक-दूसरे को पूरा कर सकती हैं। एक बारिश में काम करेगी, दूसरी धूप में। इससे भविष्य की “हाइब्रिड एनर्जी सिस्टम” की नींव रखी जा सकती है।

250 वोल्ट पल्स अच्छा है, लेकिन निरंतर करंट अभी कम है। भविष्य में पावर आउटपुट बढ़ाने पर काम किया जा सकता है। प्रारंभिक कीमत अधिक हो सकती है। लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन से यह सस्ता हो जाएगा। समुद्र के खारे पानी, तूफानों और मलबे से इसे बचाना होगा। बारिश हर जगह होती है, लेकिन नियमित नहीं। इसे ऊर्जा के अन्य स्रोतों के साथ जोड़ा जाएगा।

भारत एक मानसून प्रधान देश है। यहां 70% वर्षा कुछ महीनों में होती है। यह तकनीक भारत में बहुत उपयोगी हो सकता है। पश्चिमी घाट, असम, मेघालय, कश्मीर, उत्तराखंड और झारखंड, इन क्षेत्रों में बारिश-ऊर्जा परियोजनाएं लगाई जा सकती हैं। भारत में हर घर की छत सोलर के साथ रेन एनर्जी से भी लैस किया जा सकता है। किसानों के लिए मोबाइल चार्जिंग, सिंचाई पैनल, स्मार्ट फार्मिंग उपकरण चलाने में मदद मिलेगी। यह तकनीक दूर-दराज क्षेत्रों में बिजली की बड़ी समस्या हल कर सकती है।

नानजिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक इस तकनीक को और उन्नत बनाना चाहते हैं। हर बूंद से 250 वोल्ट पल्स को स्थिर वोल्टेज में बदलना। सोलर पैनलों की तरह बड़े रेन पैनल तैयार करना। बारिश, लहरों और हवाओं, तीनों से संयुक्त ऊर्जा उत्पादन। तूफानों एव आंधियों में भी सुरक्षित रह सके।

फ्री में गिरने वाली बारिश से बिजली बनेगी तो उपभोक्ता को कम भुगतान करना पड़ेगा। रेन पैनल इंस्टॉलेशन और मेंटेनेन्स में लाखों नौकरियां पैदा होगी। बिजली की कमी वाले गांवों में जीवन सुधरेगा। बारिश के मौसम में बिजली बाधित होने पर भी यह तकनीक काम करेगा।

यह तकनीक पर्यावरण के लिए बहुत अनुकूल है क्योंकि कोयला खदानों की जरूरत घटेगी, कार्बन उत्सर्जन कम होगा, जलवायु परिवर्तन की गति धीमी होगी और प्रदूषण शून्य होगा। यह भविष्य की सस्टेनेबल एनर्जी रेवोल्यूशन का हिस्सा है। DRDO, ISRO, IITs और अन्य संस्थान इस तकनीक को अपने तरीके से सुधारकर भारत के अनुकूल बना सकते हैं।

बारिश की बूंदों को अब केवल पानी नहीं, बल्कि ऊर्जा का स्रोत समझा जाएगा। चीन के वैज्ञानिकों ने यह दिखा दिया है कि नवाचार की कोई सीमा नहीं होती है। यह उपकरण न सिर्फ वैज्ञानिक चमत्कार है, बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक नया ऊर्जा अध्याय है। यह खोज बताती है कि भविष्य में ऊर्जा का संकट खत्म हो सकता है।



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