26 नवंबर का दिन भारत के इतिहास में केवल एक स्मृति-चिह्न मात्र नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय चेतना, लोकतांत्रिक संकल्प और संवैधानिक गौरव का प्रतीक है। आज के दिन हम न केवल अपने संविधान को याद करते हैं, बल्कि उन महान विभूतियों को भी नमन करते हैं जिनकी दूरदर्शिता, धैर्य, विद्वता और राष्ट्रनिष्ठा के बल पर दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान बना।
भारतीय संविधान "भारत का धड़कता हृदय" ने इस देश को दिशा दी, मर्यादा दी, अधिकार दिए, कर्तव्य दिए, और एक ऐसी लोकतांत्रिक संरचना दी जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दुर्लभ है।
भारतीय संविधान केवल नियमों और उपबंधों का संग्रह नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता, विविधता और सांस्कृतिक समन्वय का जीवंत दस्तावेज है। यह वह संविधान है जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को जन्म दिया, दिशा दी और मजबूत आधार प्रदान किया।
विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें लगभग 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 100 से अधिक संशोधन है, इतनी विस्तृत व्यवस्था किसी देश के संविधान में नहीं है। उदार लोकतांत्रिक सोच का प्रतीक है, न्याय- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, स्वतंत्रता- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, उपासना, समानता- अवसरों की और कानून के समक्ष, बंधुत्व- व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता। विविधता में एकता का अद्वितीय उदाहरण है, 900+ भाषाएँ, 28 राज्य, अनेक धर्म, जातियाँ और संस्कृतियाँ, सबको समाहित करने वाला संविधान है। मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का सामंजस्य है नागरिक को शक्ति भी, दायित्व भी। भारतीय संविधान किसी भी राष्ट्र के लिए एक आदर्श मॉडल है कि कैसे विविधता को एकजुट रखकर लोकतांत्रिक विकास की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है।
संविधान निर्माण एक साधारण प्रक्रिया नहीं थी। यह एक राष्ट्रीय तपस्या थी, एक बौद्धिक यज्ञ था जिसके पुरोहित वे थे जिनके हाथों में भारत का भविष्य था। ब्रिटिश शासन के अंतिम वर्षों में भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित होने लगी थी। इसी क्रम में 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा का गठन हुआ। 207 निर्वाचित और 93 नामित सदस्यों से बनी यह सभा विविध विचारधारा का संगम थी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, स्वतंत्रता संग्राम के कर्मयोगी, विद्वान, संत स्वभाव वाले नेता थे, संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए। उनकी निष्पक्षता, स्वभाव की मधुरता और प्रशासनिक क्षमताओं ने संविधान निर्माण को सहज बनाया।
प्रारूप समिति के अध्यक्ष चुने गए डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें इतिहास "भारत का संविधान निर्माता" कहता है। उनकी कानूनी प्रखरता, सामाजिक न्याय की गहरी समझ और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता ने संविधान को वास्तविक स्वरूप दिया।
संविधान सभा ने संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत किया। यही दिन आज संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संविधान सभा ने घोषणा की कि "हम, भारत के लोग..." यही शब्द भारत की संप्रभुता की उद्घोषणा हैं।
24 जनवरी 1950 को संविधान पर 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। संविधान केवल स्वीकृत नहीं हुआ, बल्कि इसे राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर कर भारत के भविष्य की शपथ ली।
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। वही दिन, जो 1930 के पूर्ण स्वराज घोषणा दिवस के रूप में ऐतिहासिक था। भारत एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, गणतंत्र राष्ट्र बना।
भारतीय संविधान किसी एक व्यक्ति का कार्य नहीं है, बल्कि सामूहिक बुद्धि का श्रेष्ठतम परिणाम है। ड्राफ्टिंग कमेटी (प्रारूप समिति) के अध्यक्ष थे डॉ. भीमराव आंबेडकर। आंबेडकर जी की भूमिका सबसे निर्णायक थी। उन्होंने कहा था कि “संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, उसे चलाने वाले अच्छे या बुरे होते हैं।”
प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष थे सरदार वल्लभभाई पटेल।देशी रियासतों का एकीकरण और संघीय व्यवस्था का ढाँचा पटेल जी की दूरदर्शिता का प्रमाण है।
संविधान सभा के अध्यक्ष थे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद। उन्होंने पूरे संयम, शांति और गंभीरता से सभा का संचालन किया।
अन्य उल्लेखनीय सदस्य थे जवाहरलाल नेहरू, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भी.एन. राव, कृष्ण स्वामी अय्यर, पुरुषोत्तम दास टंडन, हंसा मेहता और सरोजिनी नायडू। संविधान में महिला सदस्यों का विशेष योगदान रहा। उन्होंने अधिकारों में समानता और गरिमा सुनिश्चित करवायी।
संविधान के मूल स्तंभ है- न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। न्याय (Justice) के तहत सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय। भारत में समान अवसर का वादा और सामाजिक न्याय की सार्थकता इसी सिद्धांत में निहित है। स्वतंत्रता (Liberty) के तहत विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, उपासना, यह आधुनिक लोकतंत्र का आधार है। समानता (Equality) के तहत कानून के समक्ष समानता और अवसरों की समानता की गारंटी है। जाति, धर्म, वर्ण, लिंग के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है। बंधुत्व (Fraternity) के तहत राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक है। व्यक्ति की गरिमा का सम्मान है।
संविधान ने नागरिकों को छह मुख्य मौलिक अधिकार दिया है जिसमें, समानता का अधिकार (Right to Equality)- हर व्यक्ति को समान अवसर और कानून के समक्ष बराबरी का अधिकार है। स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)- विचार, अभिव्यक्ति, व्यवसाय, आंदोलन, निवास की स्वतंत्रता है। शोषण के खिलाफ अधिकार (Right Against Exploitation)- बेगार, मानव तस्करी, बाल-श्रम, शोषण पर रोक है। धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)- भारत में धर्म किसी पर थोपा नहीं जा सकता है। सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural & Educational Rights)- अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बचाने का अधिकार है। संवैधानिक उपचार का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)- डॉ. आंबेडकर इसे "संविधान की आत्मा" कहते थे। नागरिक अपने अधिकारों के हनन पर सीधे सर्वोच्च या उच्च न्यायालय जा सकते हैं।
मौलिक कर्तव्य नागरिक को राष्ट्र के प्रति जागरूक करता है संविधान का पालन, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान, महिलाओं का सम्मान, पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा और हिंसा से दूर रहना। कर्तव्यों का पालन ही अधिकारों को मजबूत बनाता है।
भारतीय लोकतंत्र आज जितना सशक्त है, उसके पीछे संविधान के द्वारा स्थापित संस्थाओं की बड़ी भूमिका है, संसद, न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), वित्त आयोग, UPSC, राज्यसभा और लोकसभा, संघीय ढाँचा- राज्यों की स्वायत्तता। प्रत्येक संस्था संविधान की मर्यादाओं और शक्तियों से संचालित होती है।
इतनी बड़ी सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक तथा भौगोलिक विविधता के बावजूद भारत का एक रहना चमत्कार नहीं है, बल्कि संविधान का चमत्कार है। भारत के संविधान ने एक ऐसा ढाँचा दिया जिसमें केंद्र मजबूत है, राज्य स्वायत्त हैं, नागरिक स्वतंत्र हैं, अधिकार सुरक्षित हैं, न्याय प्रणाली स्वतंत्र है और चुनाव निष्पक्ष हैं। यही कारण है कि दुनिया भारत को स्थायी लोकतंत्र का चमत्कार कहती है।
संविधान केवल अतीत का दस्तावेज़ नहीं है बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक भी है। आधुनिक समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है तकनीकी परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, वैश्विक अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक समरसता की चुनौतियाँ। भारत का संविधान इतना लचीला है कि समय की आवश्यकताओं के अनुसार, संशोधन कर प्रगति की राह पर चल सके।
भारतीय संविधान केवल अधिकार नहीं देता है, बल्कि दायित्व, मर्यादा, दिशा और पहचान देता है। यह संविधान लोकतंत्र की आत्मा है, सामाजिक न्याय का प्रहरी है, सांस्कृतिक सौहार्द का रक्षक है, राष्ट्र की एकता और अखंडता का सबसे बड़ा आधार है।
भारतीयों का सबसे बड़ा दायित्व है कि संविधान का पालन करना, संविधान का सम्मान करना, और संविधान के आदर्शों को आगे बढ़ाना। 9 दिसंबर 1946, 26 नवंबर 1949, 24 जनवरी 1950 और 26 जनवरी 1950 यह तिथियाँ केवल कैलेंडर पर दर्ज दिन नहीं है, यह राष्ट्रीय पुनर्जागरण के ध्वज-वाहक हैं।
