मासूम क्रश से बदले की आग में बदलती एक प्रेम कहानी है - ‘जिद्दी इश्क’

Jitendra Kumar Sinha
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रिवेंज ड्रामा और रोमांस, दोनों शैलियों को बड़ी खूबसूरती से जोड़ने वाली फिल्म ‘जिद्दी इश्क’ एक ऐसी कहानी पेश करती है जो शुरुआत में मासूम और अंत में दिल दहला देने वाली सच्चाइयों से भरी है। निर्देशक राज चक्रवर्ती ने इस फिल्म में प्रेम, जुनून, रहस्य और बदले की आग को एक ही धागे में पिरोकर दर्शकों के सामने एक ऐसा अनुभव रखा है जिसे लंबे समय तक भुलाया नहीं जा सकेगा।

कहानी की मुख्य किरदार मेहुल, एक साधारण स्कूल गर्ल है। पढ़ाई में अच्छी, सपनों में खोयी रहने वाली और बेहद संवेदनशील। उसकी जिन्दगी तब करवट लेती है जब वह अपने ट्यूटर शेखर दा से एकतरफा प्यार करने लगती है।

जो शुरू में एक मासूम क्रश था हल्की-सी मुस्कान, थोड़ी-सी अपेक्षा, और बहुत सा सपना। वह धीरे-धीरे एक जुनून बन जाता है। मेहुल की नजर में शेखर दा सिर्फ एक शिक्षक नहीं, बल्कि उसके दिल की पहली धड़कन बन चुके होते हैं। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।

एक दिन खबर मिलती है कि शेखर दा ने आत्महत्या कर ली। मेहुल टूट जाती है। लेकिन दिल के किसी कोने में यह शक भी कौंधता है कि कहानी इतनी सीधी नहीं हो सकती। उसकी मासूम आंखें इस सच्चाई को स्वीकार ही नहीं कर पातीं और यही वह पल है जब जिद्दी इश्क एक खतरनाक मोड़ लेता है।

मेहुल तय करती है कि वह खुद जांच करेगी। उसके लिए यह सिर्फ सच्चाई की तलाश नहीं, बल्कि उस प्यार की इज्जत बचाने की लड़ाई भी है, जिसे उसने कभी जुबान पर नहीं लाया था।

जांच शुरू होते ही मेहुल को महसूस होता है कि शेखर दा की मौत एक साधारण घटना नहीं थी। हर कदम पर नए रहस्य खुलते हैं। हर मोड़ पर एक नई परत हटती है। वह ऐसे लोगों से टकराती है, जिनके पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है। कुछ ऐसे राज सामने आता है जो उसकी दुनिया ही नहीं, बल्कि दर्शकों की धड़कनें भी तेज कर देता है। कहानी का रोमांच इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमता है कि क्या मेहुल सच तक पहुँच पाएगी? और क्या वह इस सच्चाई को सह पाएगी?

फिल्म का अभिनय इसकी सबसे मजबूत कड़ी है परमब्रत चट्टोपाध्याय अपनी सादगी और रहस्यपूर्ण अंदाज से शेखर दा के किरदार में जान डाल देता है। अदिति सुधीर पोहनकर मेहुल के किरदार के हर भाव, मासूमियत से लेकर जुनून और डर तक, को बेहद प्राकृतिक तरीके से प्रस्तुत करती हैं। रिया सेन की मौजूदगी कहानी के रहस्य को और गाढ़ा कर देती है।

फिल्म में वातावरण, बैकग्राउंड म्यूज़िक और क्लोज-अप शॉट्स, सभी मिलकर दर्शकों को मेहुल की मानसिक स्थिति से जोड़ता है। राज चक्रवर्ती कहानी को धीमे-धीमे उबाल पर रखते हैं, और फिर अचानक एक ऐसा मोड़ देते हैं जो दर्शकों को झकझोर देता है।

यह फिल्म बताती है कि प्यार कभी-कभी मासूम होकर भी खतरनाक मोड़ ले सकता है। मेहुल की यात्रा यह साबित करती है कि जुनून सच्चाई की राह खोल भी सकता है और सवाल भी खड़े कर सकता है।



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