भारतीय लोकतंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए संसद ने उन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों पर विचार के लिए बुधवार को संयुक्त समिति का गठन कर दिया है, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर आरोपों में लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहने की स्थिति में पद से हटाने का प्रावधान किया गया है। यह निर्णय सत्ता की ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों के लिए जवाबदेही का नया पैमाना तय कर सकता है।
लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी बुलेटिन के अनुसार, इस 31 सदस्यीय संयुक्त समिति का नेतृत्व भाजपा सांसद अपराजिता सारंगी करेगी। समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल किए गए हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सारंगी को समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह समिति इन तीनों विधेयकों के प्रावधानों की गहन समीक्षा करेगी और आवश्यक संशोधनों या सिफारिशों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
इन विधेयकों में स्पष्ट रूप से यह प्रस्ताव है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहता है, तो उसे स्वतः पदमुक्त माना जाएगा। यह कदम इस उद्देश्य से उठाया गया है कि शासन के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्ति किसी भी स्थिति में कानून से ऊपर न समझे जाएं।
इसके अतिरिक्त, विधेयकों में यह भी प्रस्ताव है कि ऐसी स्थिति में उस पद का दायित्व अंतरिम रूप से किसी वरिष्ठ मंत्री या निर्दिष्ट अधिकारी को सौंपा जाएगा ताकि प्रशासनिक निरंतरता बनी रहे।
संसद में इन विधेयकों को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल तेज है। जहां एक ओर विपक्ष इसे पारदर्शिता की दिशा में स्वागत योग्य कदम बता रहा है, वहीं कुछ दलों का कहना है कि यह प्रावधान राजनीतिक दुरुपयोग का माध्यम भी बन सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस कानून को संतुलित रूप से लागू किया गया तो यह शासन में “नैतिक शुचिता” (Ethical Integrity) की नई परंपरा स्थापित करेगा।
ओडिशा की पूर्व आईएएस अधिकारी रह चुकी और वर्तमान में भुवनेश्वर से भाजपा सांसद अपराजिता सारंगी को समिति की अध्यक्ष बनाए जाने को भी एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है। प्रशासनिक अनुभव और संसदीय सक्रियता के कारण उनसे निष्पक्ष समीक्षा की उम्मीद जताई जा रही है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों जैसे उच्च पदों के लिए जवाबदेही तय करने वाला यह कदम भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत बना सकता है। यदि समिति इन विधेयकों को व्यवहारिक रूप में सशक्त ढंग से तैयार करती है, तो यह देश के शासन तंत्र में “स्वच्छ राजनीति और पारदर्शी प्रशासन” की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
