चीन के सिचुआन प्रांत की सुरम्य पहाड़ियों में बसी “लारुंग गार बौद्ध अकादमी” (Larung Gar Buddhist Academy) न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है, बल्कि यह आज दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध शिक्षा संस्थान भी माना जाता है। ऊँचे पहाड़ों के बीच लाल-भूरी झोपड़ियों से सजी यह घाटी दूर से देखने पर मानो किसी लाल सागर जैसी प्रतीत होती है।
इस अद्वितीय अकादमी की स्थापना वर्ष 1980 में प्रसिद्ध तिब्बती संत ‘खेनपो जिगमे फुत्सोक’ (Khenpo Jigme Phuntsok) ने की थी। उनका उद्देश्य था एक ऐसा स्थान बनाना, जहाँ बौद्ध साधक निर्विघ्न होकर ध्यान, दर्शन और आध्यात्मिक अध्ययन कर सके। यह अकादमी धीरे-धीरे इतनी लोकप्रिय हुई कि आज यहां 40,000 से अधिक भिक्षु, भिक्षुणियाँ और विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते हैं।
लारुंग गार में शिक्षा केवल बौद्ध दर्शन तक सीमित नहीं है। यहां तर्कशास्त्र, नैतिकता, संस्कृत, तिब्बती भाषा, ध्यान साधना और जीवन-दर्शन पर भी गहन अध्ययन कराया जाता है। विद्यार्थियों को सादगी और अनुशासन की शिक्षा दी जाती है। उनका दैनिक जीवन ध्यान, प्रार्थना और आत्मचिंतन से भरा होता है।
यहाँ शिक्षा का मूल आधार ‘करुणा’ और ‘ज्ञान’ को एक साथ विकसित करना है। छात्रों को यह सिखाया जाता है कि जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य केवल मुक्ति नहीं है, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए स्वयं को समर्पित करना भी है।
लारुंग गार की सबसे बड़ी पहचान इसकी लाल लकड़ी की असंख्य झोपड़ियाँ हैं। इन्हें भिक्षु और भिक्षुणियाँ स्वयं बनाते हैं। ये झोपड़ियाँ घाटी की हर ढलान और पहाड़ी पर इस तरह फैली हैं कि पूरा दृश्य किसी लाल महासागर की तरह चमकता है। यह दृश्य देखने आने वाले पर्यटकों और फोटोग्राफरों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
आज लारुंग गार केवल चीन या तिब्बतियों तक सीमित नहीं है। यह स्थान दुनियाभर के आध्यात्मिक साधकों, विद्वानों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां आने वाले लोग केवल बौद्ध धर्म का अध्ययन ही नहीं करते, बल्कि आंतरिक शांति और आत्म-बोध की अनुभूति भी करते हैं।
हालांकि, बीते वर्षों में इस क्षेत्र ने कई प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियाँ भी देखी हैं। फिर भी, यहां के भिक्षु और विद्वान अपनी शिक्षा और परंपरा को सुरक्षित रखने में लगे हैं। उनका विश्वास है कि “ज्ञान का दीप चाहे कितनी भी आंधियाँ आएं, बुझ नहीं सकता।”
लारुंग गार बौद्ध अकादमी केवल एक शिक्षा केंद्र नहीं है, बल्कि यह मानवता, करुणा और ज्ञान का जीवंत तीर्थ है। यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वह है, जो न केवल मन को आलोकित करे, बल्कि समाज को भी प्रकाशमान बनाए।
